लोकपाल विधेयक पर सरकार और समाज की संयुक्त मसौदा समिति के सदस्यों ने सरकार के मंत्रियों, सांसदों और नौकरशाओं को इस संस्था के दायरे में लाने पर आम सहमति जताई है, जिसके बाद इनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच के लिए लोकपाल को सरकार की अनुमति का इंतजार नहीं करना होगा.
हालांकि प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को इसके दायरे में लाने पर अभी असहमति है. संयुक्त मसौदा समिति की पिछले हफ्ते यहां हुई तीसरी बैठक में इसके सदस्यों ने इस बात पर आम सहमति जताई कि लोकपाल को लोक सेवकों के खिलाफ जांच के लिए या मुकदमा चलाने के लिए अनुमति नहीं मांगनी होगी. लोकपाल को अपने स्तर पर ही जांच शुरू करने का अधिकार देने के लिए मौजूदा कुछ कानूनों में संशोधनों की जरूरत होगी.
बैठक में प्रभावी लोकपाल के लिए बुनियादी सिद्धांतों पर सदस्यों के बीच सहमति हुई लेकिन मौजूदा कानूनों तथा संवैधानिक प्रावधानों पर असर डालने वाले कुछ क्षेत्रों पर अभी और विचार विमर्श की जरूरत महसूस की गयी. अभी तक मंत्रियों पर मुकदमे के लिए अनुमति प्रधानमंत्री से लेनी होती है.
सांसद पर मुकदमा चलाने की अनुमति लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति की ओर से मिलती है. प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है और इस पर 23 मई को होने वाली अगली बैठक में व्यापक बातचीत हो सकती है.
बैठक में प्रस्तावित लोकपाल के अधिकारों पर चर्चा नहीं हुई. अन्ना हजारे के नेतृत्व में समिति में शामिल समाज के सदस्यों द्वारा तैयार जन लोकपाल विधेयक के ताजा संस्करण में लोकपाल को फोन कॉल टैप करने का अधिकार देने और सीबीआई तथा सीवीसी जैसी संस्थाओं को इसकी देखरेख में रखने का प्रस्ताव है.