पर्यावरण मंत्रालय ने मुंबई के कोलाबा इलाके में स्थित विवादास्पद आदर्श आवासीय सोसायटी की 31 मंजिला इमारत को अनाधिकृत करार देते हुए उसे गिरा देने की आज कड़ी सिफारिश की और कहा कि कानून का नजरअंदाज हो जाना उसका पालन नहीं करने का बहाना नहीं हो सकता.
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के दस्तखत वाले इस आदेश में कहा गया, ‘पूरे ढांचे को हटा दिया जाये क्योंकि यह अनाधिकृत है और इसके निर्माण के लिये तटीय नियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना 1999 के तहत कोई मंजूरी हासिल नहीं की गयी है.’ मंत्रालय ने अपने आदेश में सख्ती से कहा कि ‘अनाधिकृत ढ़ांचे’ को गिरा दिया जाये और तीन महीने के भीतर उस क्षेत्र को उसकी मूल स्थिति में ला दिया जाये.
कोलाबा स्थित इस इमारत के लिये मूल रूप से छह मंजिलों का निर्माण होना था और इसमें कारगिल युद्ध के शहीदों के परिजनों को आवास दिये जाने थे. पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जरूरी मंजूरी लिये बगैर 31 मंजिलें बना दी गयीं.
पर्यावरण मंत्रालय ने आदर्श सोसायटी को उसकी 31 मंजिला इमारत के निर्माण के बारे में पिछले वर्ष 12 नवंबर को एक कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए कहा था कि क्यों न उसकी अवैध मंजिलों को गिरा दिया जाये.{mospagebreak}
बहरहाल, रमेश ने पर्यावरण मंत्रालय के दो पृष्ठीय अंतिम आदेश में कहा कि इमारत को गिरा देने के अलावा दो अन्य विकल्पों पर भी विचार किया गया. एक विकल्प यह था कि अगर उपयुक्त प्राधिकार से जरूरी मंजूरी ली गयी होती तो इमारत की अतिरिक्त मंजिलों को हटाने को कहा जा सकता था.
रमेश ने कहा कि कुछ मंजिलों को गिराने के विकल्प को इसलिये खारिज करा दिया गया क्योंकि ऐसा करने का सुझाव देना सीआरजेड अधिसूचना 1991 के बेहद गंभीर उल्लंघन का नियमितीकरण करने या उसे माफ कर देने जैसा होता.
पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि इस एक और विकल्प पर भी विचार किया गया कि सरकार को इस इमारत का नियंत्रण लेने की सिफारिश की जाये ताकि बाद में इमारत का किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिये इस्तेमाल करने के बारे में विचार किया जा सके.
रमेश ने कहा कि इस विकल्प पर भी विचार किया गया लेकिन इसे भी खारिज कर दिया गया क्योंकि अंतिम उपयोग भले ही जनहित में होता, लेकिन फिर भी इससे सीआरजेड अधिसूचना 1999 के उल्लंघन का नियमितीकरण हो जाता.
उन्होंने कहा, ‘‘इस मामले में (इमारत को गिरा देने की सिफारिश के इतर) कोई अन्य फैसला करना उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा उनके निर्णयों में स्थापित किये गये कड़े पूर्व उदाहरणों के मुकाबले नर्मी बरतने जैसा होता.’{mospagebreak}
मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है, ‘आदर्श आवासीय सोसायटी ने सीआरजेड अधिसूचना 1999 की मूल भावना का उल्लंघन किया है. सोसायटी ने इस अधिसूचना के तहत मंजिलों के निर्माण के लिये मंजूरी लेने की जरूरत को भी नहीं पहचाना.
इस तरह की जरूरत होने के बारे में सोसायटी अवगत थी या नहीं थी, यह मायने नहीं रखता क्योंकि कानून का नजरअंदाज हो जाना उसका अनुपालन नहीं करने का कोई बहाना नहीं हो सकता.’ मंत्रालय ने आदर्श सोसायटी को दिये अपने निर्देश में साफ तौर पर कहा कि 31 मंजिला इमारत को गिरा दिया जाये और उस क्षेत्र को तीन महीने के भीतर उसकी मूल स्थिति में ला दिया जाये.
मंत्रालय ने कहा कि इमारत को नहीं गिराये जाने की स्थिति में वह अपने निर्देशों को कानूनन लागू कराने के लिये कदम उठाने को मजबूर हो जायेगा. रमेश ने इस रिपोर्ट के जरिये यह भी स्पष्ट किया कि सात जनवरी से अमल में आयी नयी सीआरजेड अधिसूचना 2011 से आदर्श आवासीय सोसायटी जैसे मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा और ऐसे मामलों से पूर्व की अधिसूचना के अनुरूप ही निपटा जायेगा.
राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण की 11 नवंबर को हुई बैठक में आदर्श आवासीय सोसायटी द्वारा तटीय नियमन क्षेत्र अधिसूचना का कथित उल्लंघन करने के बारे में विचार हुआ था.
इस बैठक के अगले ही दिन 12 नवंबर को मंत्रालय ने सोसायटी को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. इसके बाद सोसायटी को जवाब दाखिल करने के लिये समय दिया गया और उसे एक बार के लिये आगे भी बढ़ाया गया.
बीती चार जनवरी को सोसायटी को मंत्रालय की सलाहकार डॉ. नलिनी भट्ट के समक्ष अपनी बात रखने का मौका दिया गया. इसके बाद सोसायटी ने अपनी लिखित दलीलें 10 जनवरी को सौंपीं. डॉ. भट्ट ने 13 जनवरी को अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपी.