अल्पसंख्यक मामलों के नए मंत्री के रहमान खान उप कोटा मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति के बावजूद पिछड़े मुसलमानों और उनके साथ साथ दलित ईसाइयों तथा दलित मुसलमानों को भी आरक्षण देने के पक्ष में हैं.
खान का इरादा देश भर में वक्फ प्रशासन में सुधार का भी है और इसके लिए संसद के शीतकालीन सत्र में एक संशोधित विधेयक लाने का भी है.
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का प्रभार ग्रहण कर चुके खान ने कहा कि आरक्षण हालांकि सभी समस्याओं का हल नहीं है लेकिन यह उन लोगों के लिए सही है जो पिछड़े हुए हैं या भेदभाव के शिकार रहे हैं.
मुसलमानों के लिए 4.5 फीसदी उप कोटे पर न्यायालय के प्रतिकूल फैसले से अप्रभावित खान को लगता है कि यह आदेश सरकार की ओर से हुईं कुछ खामियों के चलते आया है और यह उप कोटे के प्रस्ताव को दरअसल खारिज नहीं करता है.
आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट द्वारा अल्पसंख्यक उप कोटा खारिज किए जाने के बारे में खान ने कहा, ‘यह गलतफहमी है. न्यायालय ने कोटा खारिज नहीं किया. न्यायालय ने सिर्फ यह कहा कि पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया संतोषजनक नहीं है.’
उन्होंने कहा कि कर्नाटक और केरल में अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है. उन्होंने कहा कि कर्नाटक में मुसलमानों के पिछड़ेपन के बारे में पता लगाने के लिए किए गए व्यापक सर्वेक्षणों के निष्कर्ष के आधार पर वहां अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिया गया.
तकनीकी आधार पर कोर्ट में खारिज हुआ कोटा
खान ने कहा, ‘मुझे लगता है कि (4.5 फीसदी उप कोटा के बारे में) कुछ तकनीकी खामियां थीं जिनकी ओर सुप्रीम कोर्ट और आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट के फैसलों में संकेत किया गया. मेरा मंत्रालय फैसलों का व्यापक अध्ययन करेगा और उन तकनीकी कारणों का पता लगाएगा जिन पर कोर्ट ने आदेश में सवाल उठाया था.’
खान ने कहा, ‘हम इन मुद्दों पर ध्यान देंगे और कुछ जवाब के साथ आएंगे. देश के सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन को समझाने के लिए पर्याप्त आंकड़ों के अभाव के चलते कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह एक राजनीतिक कदम है.’ कांग्रेस ने अन्य पिछड़ा वर्ग को दिए गए 27 फीसदी आरक्षण कोटा के तहत मुसलमानों को अलग से एक उपकोटा देने का वादा किया था लेकिन अदालतों की राय इसके विरोध में रही.
खान ने जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने तकनीकी आधार पर उप कोटा को खारिज किया. उन्होंने कहा, ‘कोर्ट ने यह नहीं कहा कि यह असंवैधानिक है. अपनाई गई प्रक्रिया शायद तकनीकी तौर पर गलत हो. मेरा मंत्रालय उन तकनीकी कारणों के हल की कोशिश करेगा जो उपकोटे को खारिज करने का आधार बने.’ क्या खान का मंत्रालय इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में फिर से अपील करेगा? इस पर खान ने सिर्फ इतना कहा कि वह मामले का गहन अध्ययन करने के बाद ही फैसला करेंगे.
उप कोटा पर सरकार के ‘कार्यालय ज्ञापन (ऑफिस मेमोरेंडम) को दिसंबर 2011 में आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था.
कोर्ट ने यह भी कहा था कि उप कोटा मुद्दे पर जारी कार्यालय ज्ञापन को विधायी समर्थन भी हासिल नहीं है. कोर्ट की पीठ ने उप कोटा देने के आधार पर भी सवाल उठाए और जानना चाहा कि क्या 4.5 फीसदी उप कोटा देने के लिए कोई संवैधानिक या वैधानिक समर्थन है.
क्या आरक्षण भेदभाव दूर करने का है उपाय?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग जैसे वैधानिक निकायों से उप कोटा के बारे में परामर्श क्यों नहीं किया.
क्या आरक्षण भेदभाव दूर करने का कारगर उपाय है? इस सवाल पर खान ने कहा कि वह मानते हैं कि आरक्षण अचूक समाधान नहीं है जो समुदाय की सभी समस्याएं हल कर देगा.
लेकिन वह मानते हैं कि आरक्षण एक अधिकार है. खान ने कहा, ‘अगर समाज का कोई वर्ग पिछड़ा हुआ है या भेदभाव का शिकार है तो संविधान सरकार को अनुच्छेद 15 (4) और अनुच्छेद 16 (4) के तहत यह भेदभाव या असमानता दूर करने का अधिकार देता है.’ उन्होंने कहा, ‘इसके अंतर्गत सरकार समुचित व्यवस्था कर सकती है.’
आरक्षण को ‘संवैधानिक अधिकार’ बताते हुए खान ने कहा, ‘इसे सिर्फ इसलिए नहीं नकारा जा सकता कि अगर समाज के एक वर्ग के साथ हुए भेदभाव को दूर करने के लिए इसे एक बार अपना लिया जाए तो दूसरे वर्ग भी इसकी मांग करेंगे.’ दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को आरक्षण देने के जटिल मुद्दे पर खान ने कहा कि वह कोशिश करेंगे कि ऐसा हो जाए.
उन्होंने कहा कि हिन्दू दलित बौद्ध धर्म, सिख धर्म, इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म अपनाते हैं. अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण के लाभ का दायरा 1950 में सरकार के एक आदेश के जरिये बौद्ध धर्म तथा सिख धर्म अपनाने वाले दलितों तक बढ़ाया गया क्योंकि यह महसूस किया गया कि धर्मान्तरण के बाद भी उनकी सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां नहीं बदलतीं.
खान ने कहा, ‘इसीलिए शुचिता और समानता की मांग है कि किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. अगर कुछ लोग एक धर्म विशेष को अपना लेते हैं तो उन्हें लाभ मिल जाता है और जो लोग दूसरे धर्म को अपनाते हैं उन्हें लाभ नहीं मिलता. इसे ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. जिन लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, यह उनका संवैधानिक अधिकार था.’ क्या खान इस मांग का समर्थन करेंगे? उन्होंने कहा, ‘निश्चित रूप से मैं ऐसा करूंगा.’ पर उन्होंने तत्काल यह भी कहा, ‘मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है.’
इस आरोप पर कि सरकार दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को आरक्षण देने की इच्छुक नहीं है, उन्होंने कहा, ‘सरकार ने इसका फैसला कोर्ट पर छोड़ दिया है. कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए.’
वक्फ बोर्ड पर आएगा नया विधेयक
वक्फ सुधार के विवादित मुद्दे पर खान ने कहा कि उनकी प्राथमिकता इस मुद्दे पर 21 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में एक संशोधित विधेयक लाने की है ताकि देश भर में वक्फ बोर्ड का प्रबंधन मजबूत हो सके. खान ने कहा, ‘प्रवर समिति ने अपनी सिफारिशें दे दी हैं. अब नया विधेयक लाना होगा ,जिसे पारित कराने की मैं कोशिश करूंगा. यह मेरी प्राथमिकता है.’
उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय के लिए यह जरूरी है कि वह शिक्षा के लिए अवसंरचना के विकास में निवेश करें और ‘वक्फ वह क्षेत्र है जहां संसाधन उपलब्ध हैं.’ अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने कहा कि अल्पसंख्यकों के विकास के लिए जरूरी योजनाओं की पहचान करने की खातिर वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘राज्यसभा का उप सभापति होने के नाते मैंने संसद में कहा था कि योजनाएं जनता तक नहीं पहुंच रही हैं. सरकार योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए गंभीर है लेकिन कुछ दिक्कतें हैं. सभी योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य सरकारें करती हैं. अगर राज्य सरकार नाकाम होती है तो दोष हम पर मढ़ा जाता है.’
खान ने कहा, ‘मैं यह देखने की कोशिश करूंगा कि योजनाएं लोगों तक पहुंचे. यह भी समीक्षा करूंगा कि क्या योजनाओं से लोगों को सचमुच लाभ हो रहा है.’ उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं के विकास पर और जोर दिया जाना चाहिए और इसके लिए समुदाय को आगे आ कर निवेश करना चाहिए.
खान ने कहा, ‘इसके लिए समुदाय को प्रेरित करना मेरी प्राथमिकता है.’ उन्होंने कहा कि सच्चर आयोग ने भी ऐसा सुझाव दिया था. गौरतलब है कि सच्चर आयोग मुसलमानों के पिछड़ेपन के मुद्दे पर गठित किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘मेरी पार्टी ने चुनाव घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों को जो भी आश्वासन दिए हैं, उनको मैं पूरा करना चाहूंगा.’ खान ने कहा कि अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए योजनाओं में क्या जरूरी है इसका पता लगाने के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है.