मोबाइल टावर रेडिएशन के खतरे को कम करने के लिए भले ही केंद्र सरकार ने नए नियम बना दिए हों, लेकिन दिल्ली में खतरे की आशंका इसलिए भी अधिक है क्योंकि यहां करीब 50 फीसदी टावर गैरकानूनी तरीके से लगे हुए हैं.
चिंता की बात ये है कि इनको लगाने की न तो परमिशन है और न ही इन्हें लगाते वक्त गाइडलाइन का पालन किया गया है. मोबाइल टावर के लिए नए नियमों के लागू होने के बाद साफ हो गया है कि ये खतरे के टावर हैं.
भले ही टावर से निकलने वाले इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन से होने वाले नुकसान की पुष्टि न हुई हो, लेकिन सरकार ने नए नियम बनाकर मान लिया है कि रेडिएशन खतरनाक है. लेकिन दिल्ली में तो खतरा और भी बड़ा है, क्योंकि राजधानी में लगे करीब आधे मोबाइल टावर गैरकानूनी तरीके से लगा दिए गए हैं.
नॉर्थ एमसीडी के स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष योगेंद्र चंदोलिया ने बताया, 'हमारे रिकॉर्ड के मुताबिक दिल्ली में आधे टावर गैरकानूनी हैं, क्योंकि टावर लगाने से पहले जो ज़रूरी बाते हैं, जिन्हें देखकर एमसीडी परमिशन देती है, वो नहीं ली गई.
हमने कार्रवाई की है, तो ये लोग कोर्ट चले गए, अब हम एक्शन नहीं ले सकते हैं, लेकिन आधे टावर गैरकानूनी तरीके से लगे हैं. एमसीडी की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में कुल 5656 मोबाइल टावर हैं, इनमें से मोबाइल कंपनियों ने केवल 3000 मोबाइल टावरों के लिए कानूनी तरीके से एमसीडी की अनुमति हासिल की है.
2656 मोबाइल टावर अब भी ऐसे हैं, जो ज़रूरी गाइडलाइन को ताक पर रखकर लगाए गए हैं और एमसीडी ने इसकी इजाजत नहीं दी. फिलहाल ये मामला दिल्ली हाईकोर्ट में है. लेकिन इस बीच रेडिएशन कम करने की कवायद के बीच दिल्ली में एक बार फिर गैरकानूनी मोबाइल टावरों से खतरे की आशंका पैदा हो गई है.
मोबाइटल टावर से निकलने वाले रेडिएशन से खतरे की आशंका हमेशा बनी रहती है. साथ ही बेतरतीब तरीके से लगाए गए मोबाइल टावरों ने इस खतरे को कई गुना और बढा दिया है. अब रेडिएशन कम करने के नए नियम तो बना दिए गए हैं, लेकिन सवाल इन नियमों के सख्ती से पालन का है.
दिल्ली में लगे मोबाइल टावर न सिर्फ स्कूलों और अस्पतालों के आसपास हैं, बल्कि रिहायशी इलाकों में मकानों के एकदम पास लगे हैं, इससे न सिर्फ खतरे की आशंका बनी रहेगी, बल्कि नए नियम भी बेअसर ही साबित होंगे.