बिहार सरकार ने इस वर्ष जून से दिसंबर के बीच केंद्र सरकार द्वारा पूरी की जाने वाली बीपीएल परिवारों की गिनती को सरल तथा त्रुटिहीन बनाने की मांग की है.
उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने संवाददाताओं से कहा, ‘बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में बीपीएल परिवारों की होनी वाली गणना की प्रक्रिया को सरल और स्पष्ट बनाने की केंद्र सरकार से मांग की गयी है.’
उन्होंने कहा कि बीपीएल परिवारों की संख्या का निर्धारण सर्वेक्षण के आधार पर होना चाहिए. योजना आयोग के कार्यक्रमों को लागू करने के लिए केंद्र ने तेंदुलकर समिति की सिफारिशों के आधार पर जो बीपीएल संख्या निर्धारित की गयी है वह मनमानी है.
मोदी ने कहा कि मनमाने तरीके से बीपीएल परिवारों की संख्या निर्धारण करने से कई परिवार छूट जाते हैं और राज्यों को अपने पैसे से खाद्यान्न तथा केरोसिन तेल का वितरण करना पड़ता है. केंद्र ने बिहार में 65 लाख परिवारों को ही गरीबी रेखा के नीचे का दर्जा दिया है, जबकि वास्तविक संख्या डेढ़ करोड़ है.
उन्होंने कहा कि ऐसी विसंगतियों के कारण राज्य सरकार को अपने पैसे से करीब 80 लाख परिवारों को खाद्यान्न तथा किरासन तेल देना पड़ रहा है. मोदी ने कहा कि बीपीएल सर्वे के लिए सरकार ने प्रारूप को पेचीदा बनाया है. इसके लिए सर्वेक्षण कार्य में 52 हजार कर्मचारियों को लगाने के निर्देश के संबंध में भी बिहार सरकार ने आपत्ति जताई है.
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने बीपीएल के संबंध में चुनाव आयोग की तर्ज पर एक स्वतंत्र आयोग के गठन की मांग की है. ऐसा नहीं होने पर राज्य सरकार अपने स्तर से बीपीएल आयोग के गठन पर विचार करेगी. इस संबंध में अन्य राजग शासित सरकारों से बातचीत की जाएगी.
उन्होंने कहा कि बीपीएल सर्वे के बाद लोगों को रसीद दिये जाने का निर्णय किया गया है जिसके स्थान पर लोगों को भरे गये प्रारूप की एक प्रति दी जानी चाहिए.
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि इस बीपीएल गणना के साथ-साथ जातिगत गणना का भी निर्णय किया गया है जिसकी विशेषज्ञता ग्रामीण विकास विभाग और आवास तथा शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के पास नहीं है. उन्होंने कहा कि जातिगत गिनती जनगणना निदेशालय द्वारा कराई जानी चाहिए क्योंकि वह जनजातीय तथा अनुसूचित जातियों की गिनती में विशेषज्ञ है.
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