हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 80 वर्षीय बीमार पाकिस्तानी वायरोलॉजिस्ट मोहम्मद खलील चिश्ती ने अपनी रिहाई के बाद कहा कि वो अब अपने वतन पाकिस्तान लौटना चाहते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1992 के हत्या के एक मामले में राजस्थान के अजमेर जेल में सजा काट रहे चिश्ती को सोमवार को मानवीय आधार पर जमानत दे दी गई थी. चिश्ती अपनी रिहाई से काफी खुश नजर आए.
उन्होंने अपनी रिहाई के बाद कहा, 'मैं 'सरबजीत केस' के बारे में ज्यादा तो नहीं जानता लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि पाकिस्तान सरकार को इस मामले में थोड़ी सहानुभूति दिखानी चाहिए.' पिछले 20 सालों से जेल में सजा काट रहे चिश्ती ने साथ ही कहा, 'मैं जेल से बाहर निकर कर बहुत खुश हूं और अब अपने परिवार के पास वापस पाकिस्तान लौटना चाहता हूं.'
न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की पीठ ने चिश्ती को यह राहत उनकी अधिक उम्र तथा इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए दी कि वह अपने खिलाफ हत्या का मामला दर्ज होने के बाद गत 20 वर्ष से जेल में बंद हैं.
हत्या का मामला तब का है जब वह अपनी मां को देखने अजमेर की यात्रा पर आये थे. तभी उनका विवाद हो गया और झगड़े में एक पड़ोसी की हत्या हो गई और उनका भतीजा घायल हो गया. चिश्ती का जन्म अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह की देखरेख करने वाले एक समृद्ध परिवार में हुआ था.
विभाजन के समय चिश्ती पाकिस्तान में पढ़ाई कर रहे थे और उन्होंने उसी देश का नागरिक बनने का फैसला किया.
चिश्ती ने साथ ही कहा, 'मैं भले ही स्वदेश लौट जाऊं लेकिन कोई ये ना समझे कि मैं अपने वतन लौट कर अजमेर को भूल जाऊंगा.' अजमेर सेंट्रल के जेल सुप्रीटेंडेंट वीके माथुर ने कहा कि मोहम्मद खलील चिश्ती हमेशा ही एक शांत कैदी रहे हैं.
वे अपाहिज हैं और उनकी उम्र भी ज्यादा है इसलिए वे ज्यादातर वक्त वे किताबें ही पढ़ते रहते हैं. राष्ट्रीय राजधानी जाने की अनुमति देने संबंधी चिश्ती की याचिका का राजस्थान सरकार ने विरोध किया. उसने कहा कि चिश्ती को जारी वीजा में उन्हें सिर्फ अजमेर और नजदीकी इलाकों में रहने की अनुमति दी गई है.
न्यायालय ने इसके बाद चिश्ती को अगले आदेश तक अजमेर छोड़कर नहीं जाने को कहा. चिश्ती को जमानत पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के अधिकारियों के बीच उनके मामले पर चर्चा होने के एक दिन बाद मिली है.
सुनवाई के दौरान पीठ ने जरदारी की यात्रा का भी उल्लेख किया था. हत्या के इस मामले में 18 वर्ष चली सुनवाई के बाद अजमेर की सत्र अदालत ने अंत में चिश्ती को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनायी.
सत्र अदालत ने सुनवाई के दौरान चिश्ती को जमानत दे दी थी लेकिन उन्हें अजमेर नहीं छोड़ने का आदेश दिया गया था.
हृदय और बहरेपन समेत कई अन्य बीमारियों से पीड़ित चिश्ती दोषी साबित होने से पहले तक अपने भाई के मुर्गीपालन फार्म में रहते थे.