सत्र न्यायालय ने पुणे के घोड़ों के फार्म के मालिक हसन अली खान और उसके साथी काशीनाथ तापुरिया की जमानत याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया.
प्रवर्तन निदेशालय ने दोनों को मार्च में गिरफ्तार कर कहा था कि उन्होंने विदेशी बैंकों में 9 करोड़ 30 लाख डालर जमा कर रहे हैं और उन्होंने राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रची थी.
प्रधान सत्र न्यायाधीश स्वप्ना जोशी ने दोनों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया जिन्होंने अभियोजन पक्ष के इस तर्क से सहमति जतायी कि मुकदमे के इस मोड़ पर उन्हें जमानत देने का कोई औचित्य नहीं है.
जमानत का विरोध करते हुए प्रवर्तन निदेशालय के वकील उज्जवल निकम ने आरोप लगाया कि हसन और तापुरिया ने विदेशी बैंकों में नौ करोड़ तीस लाख रूपये जमा कर रखे हैं.
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि खान को हथियारों की बिक्री से 30 करोड़ रूपये मिले हैं. निकम ने कहा कि यह बात उन दस्तावेजों से जाहिर है जो जांच के दौरान उससे बरामद किये गये थे और इन पर उसके हस्ताक्षर हैं और इन्हें लंदन में सत्यापित कराया गया है.
निकम ने तर्क दिया कि आरोपियों ने अंतरराष्ट्रीय हथियार तस्कर अदनान खाशोगी के साथ हथियारों की तस्करी की साजिश रची. इससे यह तार्किक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उन्होंने राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रची जो भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में एक गंभीर अपराध है.
प्रवर्तन निदेशालय के वकील ने कहा कि हसन ने हैदराबाद, पटना, मुंबई, पुणे और लंदन जैसे क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालयों से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पासपोर्ट बनवाये थे और उसके खिलाफ अनेक अपराधों के सिलसिले में मामले दर्ज हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि हसन ने सात लाख डालर की राशि अपने स्विस बैंक खाते से एसके फाइनेंशियल, लंदन में जमा करवाये थे. निकम ने कहा कि हसन के पास से बरामद सत्यापित दस्तावेजों में कहा गया है कि तापुरिया उसका सलाहकार था.
हसन और तापुरिया के वकील आई बी बागरिया और गिरीश कुलकर्णी ने तर्क दिया कि आरोपियों द्वारा किये गये कथित अपराध धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के लागू होने से पूर्व के हैं.