रेल मंत्री मुकुल राय के लम्बे-लम्बे समय तक मंत्रालय से गायब रहने के मद्देनजर विभागीय अधिकारियों को रेलवे की सुरक्षा को लेकर चिंता सता रही है. अधिकारियों का कहना है कि उनकी अनुपस्थिति के कारण महत्वपूर्ण फैसलों में देरी हो रही है.
रेल मंत्रालय को आम तौर पर तृणमूल कांग्रेस के लिए सुरक्षित समझा जा रहा है. पहले इस पद पर खुद तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी थीं. उनके बाद दिनेश त्रिवेदी रहे और अब मुकुल राय भी तृणमूल कांग्रेस पार्टी से ही हैं. रेलवे बोर्ड के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा, 'मंत्री की अनुपस्थिति से गलत संदेश जाता है. यह पूरे नेटवर्क को बाधित करता है.'
बोर्ड के कई पूर्व अधिकारियों ने इसी तरह के विचार रखे. उन्होंने कहा कि रेलवे देश की जीवन रेखा है और इसे रिमोट कंट्रोल से नहीं चलाया जा सकता है, क्योंकि इसे गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री आवास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के साथ ताल मेल बनाकर चलना होता है.
राय ने 20 मार्च को मंत्रालय सम्भाला और तब से वह अपनी पूर्ववर्ती बनर्जी की तरह ही पार्टी के काम से लम्बे लम्बे समय तक मंत्रालय से गायब रहते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि वह पार्टी में दूसरे नम्बर पर हैं. रेल मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक बनर्जी की तरह ही महत्वपूर्ण दस्तावेज राय की मंजूरी के लिए कोलकाता भेजा जाता है.
अनुपस्थित रहने के कारण राय कई मंत्रिमंडलीय बैठक में शामिल नहीं रह पाए. वह सूखे पर 31 जुलाई को मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह की बैठक में भी शामिल नहीं हो पाए. पूर्व मंत्रिमंडलीय सचिव नरेश चंद्र ने कहा, "इस स्थिति के लिए बनर्जी जिम्मेदार हैं. यदि उन्होंने राय को रेल मंत्री के रूप में नामित किया है, तो यह उनकी गलती है.'
उन्होंने कहा कि सैद्धांतिक रूप से दस्तावेज को कोलकाता भेजने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन मंत्रालय से अनुपस्थित रहने का मतलब जिम्मेदारी की भावना का अभाव माना जा सकता है. भारतीय रेल से रोजाना 11 हजार रेलगाड़ियों के जरिये करीब 2.2 करोड़ लोग सफर करते हैं.