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UP निकाय चुनाव: अटल के घर में BJP की प्रतिष्ठा दांव पर

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वयोवृद्घ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने समय में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को भाजपा का गढ़ बना दिया था. लेकिन बीते विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी (सपा) के पक्ष में चली आंधी में समीकरण इस कदर बदले की भाजपा का यह अभेद्य गढ़ भी ढह गया.

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भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनता पार्टी

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वयोवृद्घ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने समय में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को भाजपा का गढ़ बना दिया था. लेकिन बीते विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी (सपा) के पक्ष में चली आंधी में समीकरण इस कदर बदले की भाजपा का यह अभेद्य गढ़ भी ढह गया.

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विधानसभा चुनाव में लखनऊ में बुरी तरह पिटी भाजपा अब निकाय चुनाव में अटल के गढ़ में प्रतिष्ठा बचाने में जुटी हुई है. इस बार भाजपा प्रत्याशी दिनेश शर्मा और कांग्रेस के उम्मीदवार नीरज बोरा आमने-सामने हैं.

इतिहास पर गौर करें तो वर्ष 1995 से अब तक सूबे के इस प्रतिष्ठित नगर निगम सीट पर भाजपा का ही कब्जा रहा है. शर्मा से पहले अटल के नजदीकी माने जाने वाले एस. सी. राय दो बार यहां से महापौर रहे. वर्ष 2006 में राय की जगह शर्मा चुनाव में उतरे और महापौर बने.

भाजपा ने एक बार फिर शर्मा पर दाव खेला है, और अब यह कयास लगाया जा रहा है कि शमा, राय का इतिहास दोहरा पाएंगे या नहीं.

भाजपा प्रत्याशी के लिए इस बार चुनौतियां भी बहुत अधिक हैं. पार्टी के भीतर भी उनका विरोध हो रहा है. विरोध यहां तक पहुंचा कि उनके खिलाफ भाजपा के ही तीन लोगों ने दावेदारी ठोंक दी. वरिष्ठ नेताओं के समझाने के बाद उन्होंने नाम तो वापस ले लिए लेकिन उनके लोग अभी भी शर्मा के खिलाफ प्रचार में जुटे हैं.

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अटल अब न तो लखनऊ से सांसद हैं और न ही उनकी लखनऊ वापसी की कोई उम्मीद है. अटल अंतिम बार वर्ष 2006 के नगर निगम चुनाव में एक दिन के लिए यहां प्रचार करने आए थे. तब वह लखनऊ से सांसद थे.

अटल ने लखनऊ के कपूरथला में सार्वजनिक सभा में कहा था, 'किशोरावस्था से ही लखनऊ के लोगों से हमेशा मांगता रहा हूं और मिलता भी रहा है. अब बूढ़ा हो गया हूं और उम्मीद करता हूं कि किशोर और जवान अटल को सब कुछ देने वाला लखनऊ बूढ़े अटल को भी निराश नहीं करेगा.'

अटल की उन मार्मिक पंक्तियों को याद करते हुए लखनऊ के एक वयोवृद्घ समाजसेवी, 75 वर्षीय रमेश सांगवान कहते हैं, 'अटल जी की पंक्तियां आज भी कानों में गूंजती रहती हैं. लखनऊ के लोगों को कब उनके दर्शन होंगे पता नहीं, लेकिन यदि आज वह चुनावी परिदृश्य में होते तो भाजपा की इतनी फजीहत नहीं होती.'

भाजपा के रणनीतिकारों को भी अटल जैसे प्रखर वक्ता की कमी महसूस हो रही है. अटल की वजह से ही लखनऊ वषरें तक भाजपा का गढ़ रहा, लेकिन अब स्थितियां उलट चुकी हैं. अटल के गढ़ में भाजपा की प्रतिष्ठा बचाने के लिए शर्मा को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा और वह भी ऐसे समय में जब उनके अपने ही उनकी नैया डूबोने में लगे हुए हैं.

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