वैज्ञानिकों ने पहली बार मंगल ग्रह पर अपनी जगह बदलते बालू के टिब्बों और तरंगों का पता लगाया है जिसका सीधा सा अर्थ है कि इस लाल ग्रह की रेतीली सतह पर तेज हवाएं हमारी पहले की कल्पना से भी कहीं तेज बहती हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि नासा के अंतरिक्ष यान मार्स रिकनेसांस आर्बिटर से मिली तस्वीरों से पता चलता है कि मंगल ग्रह की सतह पर बालू के टिब्बे हवाओं के बहने से अपनी जगह बदलते रहते हैं और कई बार तो एक ही बार में कई गज तक आगे बढ़ जाते हैं.
अमेरिका के जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय की व्यावहारिक भौतिकी प्रयोगशाला के खगोल विज्ञानी और प्रमुख शोधकर्ता नाथन ब्रिजेज ने कहा कि मंगल ग्रह पर या तो हमारी पहले की कल्पना से अधिक तेज हवाएं चलती हैं या हो सकता है कि इन हवाओं के कारण अधिक मात्रा में बालू अपनी जगह बदलती है. स्पेसडॉटकॉम ने ब्रिजेज के हवाले से कहा कि हमारा मानना था कि मंगल ग्रह पर बालू तुलनात्मक तौर पर स्थिर होती है लेकिन इन नये प्रेक्षणों ने हमारी सोच को पूरी तरह बदल डाला है.
वैज्ञानिकों को लंबे समय से यह जानकारी है कि मंगल की लाल धूल कई किस्मों से घूर्णन करने के अलावा बह सकती है लेकिन वैज्ञानिकों का यही मानना था कि मंगल ग्रह के बालू के टिब्बे और बालू की तरंगें या तो स्थिर हैं या वे इतनी धीमी रफ्तार से बढ़ते हैं कि इसे देख पाना मुश्किल है. वैज्ञानिकों के अनुसार मंगल ग्रह पर पाये जाने वाले स्याह बालू के कणों को पृथ्वी के रेगिस्तानों की तुलना में आगे बढ़ पाने में दिक्कत होती है क्योंकि वे बड़े होते हैं और पृथ्वी की तुलना में मंगल ग्रह का वातावरण हल्का है.
वैज्ञानिकों ने परीक्षणों के आधार पर कहा है कि मंगल ग्रह पर बालू के एक ढेर को आगे बढ़ाने के लिए 130 किलोमीटर की रफ्तार से हवाओं का चलना जरूरी है जबकि पृथ्वी पर 16 किलोमीटर प्रति घंटा से बहने वाली हवाओं से ही ऐसा किया जा सकता है.