राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जून माह में रामलीला मैदान में योग गुरु रामदेव के अनशन के दौरान उनके समर्थकों पर हुई पुलिस की कार्रवाई की और जांच नहीं करेगा क्योंकि दिल्ली पुलिस ने अपनी दलील में कहा है कि यह मामला उच्चतम न्यायालय में है.
मामले की जांच कर रहे आयोग ने यह फैसला हाल ही में किया जब उसे दिल्ली पुलिस ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया है और कार्यवाही कर रहा है.
आयोग ने अपने आदेश में कहा है ‘यह मामला उच्चतम न्यायालय में है अत: आयोग इसकी और जांच नहीं करेगा. यदि न्यायालय मामले में कोई और आदेश देता है तो उसकी प्रति आयोग के पास भी भेजी जानी चाहिए.’ बहरहाल, आयोग ने राजबाला के स्वास्थ्य को लेकर गहरी चिंता जताते हुए दिल्ली के मुख्य सचिव से उनके स्वास्थ्य की स्थिति पर जानकारी भी मांगी थी. पुलिस की कथित कार्रवाई के दौरान गंभीर रूप से घायल राजबाला का पिछले सप्ताह देहांत हो गया.
आयोग ने अपने आदेश में मुख्य सचिव से जानना चाहा था कि क्या दिल्ली सरकार ने राजबाला को कोई अनुग्रह राहत राशि दी है. राजबाला के स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में आयोग ने 23 सितंबर तक रिपोर्ट मांगी थी लेकिन दिल्ली सरकार इस समय सीमा का पालन नहीं कर सकी. 26 सितंबर को राजबाला की अस्पताल में मौत हो गई.
रामलीला मैदान में रामदेव समर्थकों पर पुलिस की कथित कार्रवाई चार जून को हुई थी. आयोग ने छह जून को केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस से इस बारे में दो सप्ताह में रिपोर्ट देने के लिए कहा था.
दिल्ली पुलिस ने 17 जून और 23 जून को दो रिपोर्टों राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंपी जिनमें कहा गया था कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया है. इसके बाद आयोग ने और आगे जांच न करने का फैसला किया.
जून में नोटिस जारी करते हुए आयोग ने कहा था कि उसे मीडिया की खबरों और इन शिकायतों से गहरी पीड़ा हुई है कि आधी रात को पंडाल में सो रहे लोगों पर असंवैधानिक पुलिस कार्रवाई की गई, आंसू गैस के गोले छोड़े गए, लाठीचार्ज किया गया और उन्हें खदेड़ा गया.
दूसरी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस ने कहा कि भारत स्वाभिमान ट्रस्ट को कुछ शर्तों के साथ 4,000 से 5,000 लोगों के लिए योग प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने की अनुमति दी गई थी. एक जून से 20 जून तक यह शिविर बाबा रामदेव को संचालित करना था. रिपोर्ट में पुलिस ने कहा ‘‘लेकिन यह आयोजन सत्याग्रह में तब्दील हो गया और लोगों की संख्या 50,000 से अधिक हो गई. खुफिया रिपोर्टों से यह भी संकेत मिला कि बाबा रामदेव को खतरा था.
साथ ही इलाके के आसपास सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील बस्तियां होने के कारण शांति भंग होने की आशंका भी थी.’ इसमें कहा गया है ‘इसीलिए अनुमति रद्द करने और धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू करने का फैसला किया गया. आयोजकों से स्थान से चले जाने का अनुरोध किया गया. लेकिन अनुरोध नहीं माना गया और रामदेव समर्थकों की भीड़ में कूद पड़े जिससे अफरातफरी मच गई. इसी वजह से पुलिस के साथ टकराव और मामूली झड़प की स्थिति बनी.’’ इस दौरान 38 पुलिसकर्मियों सहित 86 लोगों को चोटें आईं.