2014 में भारत का प्रधानमंत्री कौन होगा? कौन है भारत की जनता का सबसे पसंदीदा नेता? ऐसे ही सवाल लेकर इंडिया टुडे और नील्सन की टीम ने पूरे देश की खाक छानी और नतीजे जो आए वो जरा चौंकाने वाले हैं. सर्वे के मुताबिक सबसे ज्यादा लोगों की राय यही है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी साबित होंगे सबसे अच्छे प्रधानमंत्री.
मोदी के निशाने पर दिल्ली का तख्त
नरेंद्र दामोदरदास मोदी. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर दिल्ली का तख्त है तो पब्लिक के मूड पर भी चल रहा है मोदी का मैजिक. बीजेपी में मोदी पीएम इन वेटिंग के सबसे बड़े दावेदार हैं तो देश की ज्यादातर लोग चाहते हैं कि मोदी ही बनें अगले प्रधानमंत्री. ये हम नहीं कहते. ये नतीजे हैं इंडिया टुडे और नील्सन के ताजा सर्वे के. सर्वे के मुताबिक21 फ़ीसदी लोगों की राय में नरेंद्र मोदी देश के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री साबित होंगे. इंडिया टुडे और नील्सन के सर्वे में जनता से एक और सवाल पूछा गया- अगर बीजेपी गुजरात विधानसभा चुनाव जीतती है तो क्या बीजेपी प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी के लिए नरेंद्र मोदी का नाम आगे बढ़ाएगी? इसके जवाब में 55 फीसदी जनता ने कहा हां जबकि 25 फीसदी जनता ने कहा ना.
लोगों पर चला नरेंद्र मोदी का मैजिक
नरेंद्र मोदी का मैजिक किस तरह लोगों पर चला है, ये आप सर्वे के आंकड़ों में देख सकते हैं. प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी पहली पसंद हैं और बाकी लोग तो उनसे बहुत पीछे हैं. प्रधानमंत्री पद के लिए 21 फीसदी जनता की पहली पसंद हैं नरेंद्र मोदी. दूसरे नंबर पर है अटल बिहारी बाजपेयी का नाम. 17 फ़ीसदी लोगों ने अटल बिहारी बाजपेयी को अपनी पहली पसंद बताया है. 10 फीसदी लोग चाहते हैं कि राहुल गांधी अगले प्रधानमंत्री बनें जबकि 8 फीसदी लोग चाहते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी बने देश के अगले प्रधानमंत्री. देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पक्ष में सिर्फ 6 फीसदी लोगों की राय बनी. वहीं यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी को 6 फीसदी जनता ने बताया प्रधानमंत्री पद के लिए पहली पसंद. 4 फीसदी जनता ने पीएम के लिए मायावती को अपनी पहली पसंद बताया तो 4 फीसदी लोगों ने कहा कि मुलायम सिंह यादव हों अगले प्रधानमंत्री.
देश के सबसे अच्छे मुख्यमंत्री हैं मोदी
सर्वे के नतीजे बताते हैं कि रेस में बाकी लोगों से बहुत आगे चल रहे हैं नरेंद्र मोदी. हाल ही में आरएसएस ने नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी से बेहतर मुख्यमंत्री बताया था, उस वक्त नीतीश कुमार शायद बहुत खुश हुए होंगे. लेकिन इंडिया टुडे और नील्सन सर्वे के नतीजे नीतीश कुमार को निराश ही करेंगे. सर्वे के मुताबिक नरेंद्र मोदी देश के सबसे अच्छे मुख्यमंत्री हैं. दूसरे नंबर पर है नीतीश कुमार का नाम. तीसरे नम्बर पर अखिलेश यादव तो दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित हैं चौथे नम्बर पर.
इंडिया टुडे और नील्सन ने 2014 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए देश की जनता का मूड भांपने के लिए ही ये सर्वे किए थे. 6 जुलाई से 20 जुलाई के बीच 19 सूबों के 125 लोकसभा सीटों पर सर्वे किया गया. सर्वे में 15 हजार 827 वोटरों की राय ली गई. सर्वे में हर लोकसभा सीट के दो विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया और सर्वे के दौरान घर-घर जाकर मतदाताओं से बातचीत की गई.
मोदी के रास्ते में कांटे भी कम नहीं
सर्वे के आंकड़े तो मोदी को खुश कर सकते हैं लेकिन सियासत के रास्ते पर उनके लिए फूल कम और कांटे ज़्यादा हैं. गुजरात से हटकर केंद्र सरकार पर हमला बोलने वाले मोदी ने एक तरह से साफ ही कर दिया है उनकी निगाहें दिल्ली के तख्त पर हैं. इंडिया टुडे और नील्सन के सर्वे की मानें तो प्रधानमंत्री पद के लिए देश की ज्यादातर जनता की पसंद भी मोदी ही हैं.
लेकिन मोदी की राहें आसान नहीं हैं. खुद बीजेपी में ही उनके कई विरोधी हैं, जो किसी भी कीमत पर नहीं चाहेंगे कि मोदी का नाम पीएम इन वेटिंग के तौर पर रखा जाए. गुजरात मे ही मोदी के विरोधियों की कमी नहीं, पिछले दिनों मोदी के खिलाफ गुजरात में पोस्टर चिपकाए गए थे, जिसमें उन्हें जुल्मी सास बताया गया था. मोदी का विरोध करने वाले केशुभाई पटेल ने तो अलग पार्टी बना ली, वहीं उनके राजनीतिक विरोधी संजय जोशी को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. साफ मैसेज था कि बीजेपी में सिर्फ नरेंद्र मोदी की चलती है.
सहयोगियों को मनाना नहीं होगा आसान
नरेंद्र मोदी का नाम बीजेपी मंजूर भी कर ले तो एनडीए को उनके नाम पर राजी करना बेहद मुश्किल है. नीतीश कुमार ने उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में घुसने नहीं दिया था तो पिछले दिनों साफ तौर पर कह दिया था कि एनडीए में पीएम पद का उम्मीदवार सेक्युलर होना चाहिए.
नीतीश ने मोदी पर निशाना साधा तो जेडीयू ने बाकायदा मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, एनडीए से नाता तोड़ने तक की धमकी दे डाली. जेडीयू ने जुबानी जंग छेड़ी तो बीजेपी के मोदी खेमे ने भी मोरचा संभाल लिया. एनडीए में मोदी के नाम पर सिर फुटौवल की नौबत आई तो इस गठबंधन के विरोधी भी आग में घी डालने लगे.
नरेंद्र मोदी के नाम पर एनडीए में अक्सर घमासान मच जाती है, तो दूसरी पार्टियों की बात ही क्या करनी. कांग्रेस तो मोदी के नाम पर ही बिदक जाती है. मोदी से परहेज का आलम ये है कि पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के नेता और नई दुनिया उर्दू के संपादक शाहिद सिद्दीकी ने अपने अखबार में नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू छापा. जिसमें मोदी ने कहा था- अगर मैं गुजरात दंगे का गुनहगार हूं तो मुझे फांसी पर लटका दो. ये इंटव्यू छपने के बाद मुलायम सिंह ने शाहिद सिद्दीकी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. शाहिद सफाई देते रह गए.
अपने मिशन में लगे हैं मोदी
इन तमाम विरोधों से अलग नरेंद्र मोदी लगातार अपने मिशन प्राइम मिनिस्टर में लगे हुए हैं. वो एनडीए के घटक दलों के करीब जाना चाहते हैं. पिछले दिनों नवीन पटनायक और जयललिता से उन्होंने कई मुलाकातें कीं. जयललिता को तो मोदी अपने सदभावना मिशन में भी लाने में कामयाब रहे. आरएसएस ने तो हमेशा नरेंद्र मोदी का खुलकर समर्थन किया है. यही मोदी की सबसे बड़ी ताकत है. लेकिन इन सारी कवायदों से मोदी की मुश्किलें कम नहीं हो जातीं. दरअसल 2002 में हुए गुजरात दंगों का भूत उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है. ये भूत 2014 के चुनावों से पहले और ताकत के साथ मोदी के आगे खड़ा होगा.
बीजेपी में मोदी के कद के आसपास भी कोई नहीं
नरेंद्र मोदी का मैजिक पूरे गुजरात पर चला है. उनके विकास का एजेंडा कागज पर दिखा तो हकीकत की जमीन पर भी उतरा. वो बार-बार बात गुजरात के विकास की करते हैं, लेकिन अब ये राज नहीं रहा कि उनकी निगाहें दिल्ली के सिंहासन पर हैं. आरएसएस का उनकी पीठ पर हाथ है और फिलहाल बीजेपी में उनके कद के आसपास भी कोई नहीं है. नरेंद्र मोदी बिंदास हैं, जो मर्जी वो करते हैं, जो मर्जी वो बोलते हैं, उन पर किसी का जोर नहीं है, तो इसके पीछे वजह ये भी है कि आज उन्होंने अपना कद जहां तक पहुंचा दिया है, उसके करीब बीजेपी में कोई और नहीं है.
बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेता हैं लालकृष्ण आडवाणी. उनकी छवि कट्टर हिंदुत्ववादी की है. यही छवि नरेंद्र मोदी की भी है. गुजरात दंगों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी मोदी को हटाना चाहते थे, लेकिन आडवाणी ने आगे आकर मोदी को बचा लिया था. और यहीं मोदी ने आडवाणी को मात दे दी. नरेंद्र मोदी ने गुजरात में खुद को विकास पुरुष के रूप में प्रचारित किया. जबकि आडवाणी की छवि सिर्फ कट्टर हिंदुत्ववादी की ही बनी रही.
2009 में एनडीए की करारी हार का ठीकरा भी पीएम इन वेटिंग आडवाणी के सिर फूटा. बीजेपी में आडवाणी का ग्राफ लगातार गिरता रहा, नेता विपक्ष का पद भी छोड़ना पड़ा, लेकिन नरेंद्र मोदी का ग्राफ लगातार ऊपर चढ़ता रहा. वो आरएसएस और पार्टी के आगे कभी झुके नहीं.
बीजेपी में अगले प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी का नाम भी है, लेकिन मोदी से उनकी तुलना करने पर मोदी ही बीस साबित होते हैं. नरेंद्र मोदी और नितिन गडकरी दोनों के सिर पर आरएसएस का हाथ है. नितिन गडगरी पार्टी के अध्यक्ष हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी ने उन्हें कभी भाव नहीं दिया. नरेंद्र मोदी लखनऊ और दिल्ली की कार्यरारिणी बैठकों में नहीं गए, गडकरी के कहने के बावजूद पांच राज्यों के चुनाव में नहीं गए, गडकरी मोदी का कुछ बिगाड़ नहीं पाए. गडकरी ने अभी तक कोई चुनाव नहीं जीता, लेकिन नरेंद्र मोदी 11 साल से गुजरात में एकछत्र राज कर रहे हैं.
पार्टी में कद और आभामंडल के मामले में गडकरी भी मोदी से काफी पीछे नजर आते हैं. ये बात तय है कि जब भी बीजेपी में प्रधानमंत्री पद के दावेदारों के नाम आएंगे, उसमें सुषमा स्वराज का नाम भी होगा. सुषमा स्वराज अच्छा बोलती हैं, लेकिन उनमें मोदी जैसा आभामंडल नहीं है. लोकसभा में सुषमा भले ही विपक्ष की नेता हों, लेकिन लोकप्रियता के मामले में मोदी उन पर भारी पड़ते हैं. बीजेपी में इसके अलावा भी जितने नेता हैं, उनमें से किसी का भी राजनीतिक कद मोदी के आसपास नहीं है. यही वजह है कि मोदी मनमाने हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि जहां वो खड़े हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है.
जो करते हैं डंके की चोट पर करते हैं मोदी
नरेंद्र मोदी ने आरएसएस की पाठशाला में सियासत की शिक्षा ली है. वो न तो कुछ बोलने में डरते हैं और न ही कुछ करने में. सब कुछ करते हैं डंके की चोट पर. ये भी नहीं देखते कि कौन विरोध में है और कौन समर्थन में, यही वजह पार्टी में भी उनके विरोधी बढ़ते गए. हालांकि मोदी इसकी परवाह नहीं करते, क्योंकि पार्टी में तो सिर्फ मोदी की दबंगई चलती है. जब नरेंद्र मोदी ने पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी तो कोई नहीं जानता था कि उनके इरादे क्या हैं. नरेंद्र मोदी को अब देखकर लगता है कि उनके सपने दिल्ली सल्तनत तक जा रहे हैं.
नरेंद्र मोदी ने गुजरात में बड़ी सधी हुई राजनीति की. लोग 2002 के गुजरात दंगों पर अटके रहे, लेकिन मोदी अपने तेवर में रहे. उन्होंने अपनी हर बदनामी की पूरी कीमत वसूल की. 2005 में अमेरिका ने जब नरेंद्र मोदी को वीजा देने से इनकार किया तो मोदी ने उलटे अमेरिका से कहा कि वो वीजा मांगने नहीं जाएंगे. यही नहीं नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में बैठकर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये अमेरिका में बैठे भारतीयों से बात की. नरेंद्र मोदी तो गुजरात में बैठकर दिल्ली को ललकारते हैं, गुजरात को निजी संपत्ति की तरह समझते हैं. नरेंद्र मोदी के राज में सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड हुआ. सारे सुबूत इस तरफ इशारा करते हैं कि ये मुठभेड़ फर्जी थी. लेकिन नरेंद्र मोदी हमेशा इस मुद्दे पर अकड़े ही रहे.
नरेंद्र मोदी संघ की पैदाइश हैं, अल्पसंख्यकों के विरोध में उनका कोई सानी नहीं है. वो कुछ छुपाते नहीं, क्योंकि उनके मिजाज में ही कुछ दबंगई है. मोदी जानते हैं कि उनके मुंह से जो बात निकलेगी वो बड़ी दूर तलक जाएगी. अल्पसंख्यक विरोध और राष्ट्रवाद ही उनकी यूएसपी है, लिहाजा वो जब बोलते हैं तो डंके की चोट पर बोलते हैं. नरेंद्र मोदी को एक बड़ा तबका नायक मानता है तो वहीं उन्हें सियासत में खलनायक मानने वालों की तादात कुछ कम नहीं है. लेकिन कोई कुछ भी माने, दबंग मोदी को कभी इसकी परवाह नहीं रही है.