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मां दुर्गा की अराधना का पर्व है नवरात्रि

नवरात्रि मां दुर्गा की आराधना और उपासना का नौ दिवसीय पर्व है. इन नौ दिनों में श्रद्धालु और भक्त पूरी आस्था और श्रद्धा से मां के नौ रूपों की आराधना करते हैं.

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दुर्गा पूजा
दुर्गा पूजा

नवरात्रि हिंदूओं का एक प्रमुख त्योहार है. नवरात्रि संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 9 रातें. यह त्योहार साल में दो बार आता है. एक शारदीय नवरात्रि, दूसरा है चैत्रीय नवरात्रि. परन्तु शारदीय नवरात्र का महत्व अधिक माना जाता है. नवरात्रि के नौ रातों में तीन हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रूपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है.

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शक्ति की उपासना
शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है. सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की. तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा.

आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है. मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है. ये सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली हैं. इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं. नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है.

ये तो आप जानते ही होंगे कि नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली प्रमुख हैं. भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएं अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं. दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं. देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना अधूरे हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से की गई है. सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं.

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नवरात्रों में माता की पूजा का विधान

नवरात्रों के बारे में मान्यता है कि देवता भी मां भगवती की पूजा किया करते है. नवरात्रों में मां भगवती के नौ विभिन्न रुपों की पूजा की जाती है. मां भगवती को शक्ति कहा गया है. नवरात्रों में माता की पूजा करने के लिये मां भगवती की प्रतिमा के सामने किसी बड़े बर्तन में रेत भरकर उसमें जौ उगने के लिये रखे जाते हैं. इस के साथ एक पानी से भरा कलश स्थापित किया जाता है. कलश पर कच्चा नारियल रखा जाता है.

कलश स्थापना के बाद मां भगवती की अंखंड ज्योति जलाई जाती है. सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है. उसके बाद श्री वरूण देव, श्री विष्णु देव की पूजा की जाती है इसके बाद नवग्रह की पूजा भी की जाती है.

नवरात्रों के दौरान प्रतिदिन उपवास रख कर दुर्गा सप्तशती और देवी का पाठ किया जाता है. इन दिनों में इन पाठों का विशेष महत्व है. नवरात्रि के नौ दिनों में नौ ग्रहों की शान्ति पूजा की जाती है. दुर्गासप्तशती में सात सौ महामंत्र होने से इसे सप्तशती कहते है. सप्तशती उपासना से असाध्य रोग दूर होते है. और आराधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.

नवरात्र पर प्रचलित कथाएं
नवरात्र पर कई कथाएं और किवदंतियां प्रचिलित हैं. इनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं:

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राम और रावण का चंडी पूजन
लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा. उन्होंने जा कुछ बताया उसके अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था की गई. वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया. यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए. इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा. भय इस बात का था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं.

दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि लोग उन्हें 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए. प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर और अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट होकर राम का हाथ पकड़ा और कहा- राम मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूं. इसके साथ ही देवी ने राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया.

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देवी-महिषासुर संग्राम
नवरात्र से जुड़ी एक कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया. उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता होने लगी. देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ा. तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की. ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था.

महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी. इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं. किस दिन किस रूप की करें उपासना और क्या लगाएं भोग
नवरात्र के नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं. ये देवियां भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर उनकी कामनाएं पूर्ण करती हैं. हो सके तो देवी को भोग उन चीजों का लगया जाना चाहिए जो देवी को पसंद हो. इसके पीछे यह मान्यता है कि अगर हम भगवान को उनकी पसंद की चीजों का भोग लगाते हैं तो वे बड़े ही चाव से उन व्यंजनों को ग्रहण करते हैं और उपासक को मनवांछित फल देते हैं.

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प्रथम शैलपुत्री- पहले स्वरूप में मां पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान हैं. नंदी नामक बैल पर सवार 'शैलपुत्री' के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है. शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया. इस दिन मंगल ग्रह की शांति कराने के लिए विशेष पूजा कराई जा सकती है. इस दिन उपवास करने के बाद माता के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

द्वितीय ब्रह्मचारिणी- दूसरी दुर्गा 'ब्रह्मचारिणी' को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया है. इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है. यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है. कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पार्वती स्वरूप में थीं. अगर राहु ग्रह की शान्ति करने संबन्धी कोई पूजा करना हो तो यह दिन सबसे उत्तम है. इस दिन माता ब्रह्माचारिणी को प्रसन्न करने के लिये शक्कर का भोग लगाया जाता है.

तृतीय चंद्रघंटा- शक्ति के रूप में विराजमान मां चंद्रघंटा मस्तक पर घंटे के आकार के चंद्रमा को धारण किए हुए हैं. देवी का यह तीसरा स्वरूप भक्तों का कल्याण करता है. इन्हें ज्ञान की देवी भी माना गया है. बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के चारों तरफ अद्भुत तेज है. यह तीन नेत्रों और दस हाथों वाली हैं. इनके दस हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र हैं. कंठ में सफेद पुष्पों की माला और शीर्ष पर रत्नजडित मुकुट विराजमान हैं. तृतीया के दिन बृहस्पति ग्रह की शान्ति के लिए पूजा कर्म करने चाहिए. इस दिन इन माता की पूजा करते समय माता को दूध या दूध से बनी मिठाई अथवा खीर का भोग माता को लगाया जाता है.

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चतुर्थ कुष्मांडा- चौथे स्वरूप में देवी कुष्मांडा भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं. यह बाघ की सवारी करती हुईं अष्टभुजाधारी, मस्तक पर रत्नजडित स्वर्ण मुकुट पहने उज्जवल स्वरूप वाली दुर्गा हैं. अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा. कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी, तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार था. ऐसे में देवी ने अपनी हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की. चतुर्थी के दिन अगर किसी व्यक्ति को अपना शनि शान्ति कराना हो तो यह दिन उनके लिए अच्छा है और ऐसा करके वे लोग शनि के अशुभ प्रभाव से बच सकते हैं. माता कुष्माण्डा की पूजा करने के बाद माता को इस दिन मालपुओं का भोग लगाया जाता है.

पंचम स्कन्दमाता- भगवान स्कन्द यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है. यह कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है. इनका वाहन सिंह है. इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है. इस दिन पूरे दिन उपवास करने के बाद माता को केले का भोग लगाया जाता है.

षष्ठी कात्यायनी- यह दुर्गा देवताओं और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं. उनकी पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा. देवी कात्यायनी दानवों तथा पापी जीवियों का नाश करने वाली हैं. यह सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं. इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाएं हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा है. इस दिन माता को भोग में शहद दिया जाता है.

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सप्तम कालरात्रि- सातवां स्वरूप देखने में भयानक है, लेकिन सदैव शुभ फल देने वाला होता है. इन्हें 'शुभंकरी' भी कहा जाता है. 'कालरात्रि' केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं. यह काले रंग-रूप वाली, केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं. यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं. एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं. इस दिन साधक को पूरे दिन का उपवास करने के बाद माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है.

अष्ठमी महागौरी- आठवें दिन महागौरी की उपासना की जाती है. इससे सभी पाप धुल जाते हैं. देवी ने कठिन तपस्या करके गौर वर्ण प्राप्त किया था. भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं, इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है. यह धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं. यह एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लिए हुए हैं. गायन और संगीत से प्रसन्न होने वाली 'महागौरी' सफेद पर सवार हैं. इस दिन माता को भोग में नारियल का भोग लगाया जाता है.

नवंम सिद्धिदात्री- नवीं शक्ति 'सिद्धिदात्री' सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं. इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. कमल के आसन पर विराजमान देवी हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं. भक्त इनकी पूजा से यश, बल और धन की प्राप्ति करते हैं. सिद्धिदात्री की पूजा के लिए नवाहन का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए. इस तरह नवरात्र का समापन करने वाले भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती हैं. नवमी के दिन चन्द्रमा की शांति के लिए विशेष रूप से पूजा की जाती है. माता की पूजा आराधना करने के बाद माता को तिल का भोग लगाना चाहिए.

नवरात्रों में क्या करें और क्या ना करें
1. नवरात्रों की पूजा करते समय ध्यान देने योग्य यह विशेष बात है कि एक ही घर में तीन शक्तियों की पूजा नहीं करनी चाहिए. देवी को कनेर और सुगन्धित फूल प्रिय है. इसलिये पूजा के लिये इन्ही फूलों का प्रयोग करें.

2. कलश स्थापना दिन में ही करें, मां की प्रतिमा को लाल वस्त्रों से ही सजायें. साधना करने वाले को लाल वस्त्र या गर्म आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए.

3. नवरात्रों का व्रत करने वाले उपासक को दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए. मांस, मदिरा का त्याग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नवरात्रों में बाल कटवाना, नाखून काटना आदि कार्य भी नहीं करने चाहिए. ब्रह्मचार्य का पूर्णत: पालन करना चाहिए. नवरात्रे की अष्टमी या नवमी के दिन दस साल से कम उम्र की नौ कन्याओं और एक लड़के को भोजन करा कर साथ ही दक्षिणा देनी चाहिए.

4. लड़के को भैरव का रूप माना जाता है. कंजकों को भोजन करवाने से एक दिन पूर्व रात्रि को हवन कराना विशेष शुभ माना जाता है. कंजकों को भोजन करवाने के बाद उगे हुए जौ और रेत को जल में विसर्जित कर दिया जाता है. कुछ जौं को जड़ सहित उखाड़कर समृद्धि हेतू घर की तिजौरी या धन रखने के स्थान पर रखना चाहिए.

5. कलश के पानी को पूरे घर में छिड़क देना चाहिए. इससे घर से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है. और नारियल को माता दुर्गा के प्रसाद स्वरूप खा लिया जाता है.

क्षत्रिय का सबसे बड़ा त्योहार
चौमासे में जो कार्य स्थगित किए गए होते हैं, उनके आरंभ के लिए साधन इसी दिन से जुटाए जाते हैं. क्या आप जानते हैं कि यह त्योहार क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व है. इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं. यह तो आप जानते ही होंगे कि विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व है. अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय 'विजयकाल' रहता है.

यह सभी कार्यों को सिद्ध करता है. अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है. दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग, शमी पूजन तथा नवरात्र-पारण इस पर्व के महान कर्म हैं. एक बात आपको बता देना चाहता हूं कि इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी के दर्शन को शुभ माना गया है. क्षत्रिय लोग इस दिन प्रातः संकल्प मंत्र लेते हैं. इसके पश्चात पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है.

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