पिछले 85 बरसों की गाथा अपने अंदर समेटे खड़ा संसद भवन, संसद के दोनों सदनों का संचालन स्थल बना रहेगा और इसके लिए एक नई इमारत बनाने की योजना फिलहाल टाल दी गई है. आजादी से पहले और बाद के इतिहास और विरासत के धनी संसद भवन के लिए नई इमारत बनाने की योजना का लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने विरोध किया.
योजना रद्द किए जाने के बारे में हालांकि आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है लेकिन संसद भवन के लिए वैकल्पिक स्थान के बारे में कोई बात नहीं कर रहा है. संसद भवन को मरम्मत की दरकार है. न सिर्फ राजनीतिज्ञों ने बल्कि संरक्षणवादियों ने भी संसद भवन स्थानांतरित किए जाने के विचार का विरोध किया है और इसे ‘पूरी तरह अर्थहीन’ बताया है. उनकी राय थी कि ढांचे को मजबूत करने के लिए संरक्षणवादियों से सुझाव लेने चाहिए.
यह चर्चा तब शुरू हुई जब लोकसभा के महासचिव टी.के. विश्वनाथन ने वर्ष 1927 में निर्मित इमारत की ढांचागत स्थिरता को लेकर आशंका जताते हुए एक वैकल्पिक परिसर का सुझाव देने के लिए उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित करने की बात कही. यह आशंका मुंबई में महाराष्ट्र सरकार के मंत्रालय में लगी भीषण आग के संदर्भ में उठी थी.
समस्या संसद भवन के रसोईघर की वजह से और बढ़ गई जहां करीब 30 गैस सिलिंडरों का इस्तेमाल किया जाता था और यह सुरक्षा के नजरिये से खतरनाक था. मूल डिजाइन में परिवर्तन के अलावा अतिक्रमण भी ढांचे की सुरक्षा के लिए उचित नहीं था. विश्वनाथन ने कहा था कि वैकल्पिक परिसर के स्थान, आकार और ढांचे के बारे में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा गठित की जाने वाली उच्च अधिकार प्राप्त समिति फैसला करेगी.
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि वह संसद भवन की इमारत की सुरक्षा पर विचार करने तथा नए परिसर की जरूरत संबंधी अध्ययन करने के लिए उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित करने के बारे में उप राष्ट्रपति से बात करेंगी. राजनीतिक नेताओं का कहना है कि संसद भवन में भीड़ कम करने के लिए हरसंभव कोशिश करनी चाहिए और दोनों सदनों का कामकाज यहीं से होते रहना चाहिए. इन नेताओं में ज्यादातर लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य हैं.
संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने वैकल्पिक संसद भवन के विचार पर आक्रोश जताया था. उनका विचार है कि मौजूदा विरासत इमारत को बनाये रखा जाना चाहिए. बंसल ने हालांकि जोर देकर कहा था कि ये उनके निजी विचार हैं. एक अन्य मंत्री ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि सरकार में कोई भी बदलाव के पक्ष में नहीं है.
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि इस कदम के बारे में सुन कर उन्हें आश्चर्य हुआ लेकिन इस मुद्दे पर जो लोग निर्णय करेंगे, उनके बारे में उनके मन में बहुत सम्मान है. संसद भवन से अपने भावनात्मक लगाव के चलते चटर्जी ने कहा कि अगर इस इमारत में संसद न हो तो उन्हें बहुत अखरेगा क्योंकि यह इमारत राष्ट्रीय एकता और संसदीय प्रणाली की प्रतीक है.
विभिन्न दलों के नेताओं की राय का समर्थन करते हुए सपा नेता मोहन सिंह ने कहा 'यह कदम दुखद है. संसद भवन एक स्मारक की तरह है और इसका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव है. जो लोग इसे स्थानांतरित करना चाहते हैं वह लोग इसकी गरिमा के खिलाफ हैं. हम इस विचार के पक्ष में नहीं हैं.' पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी अचारी ने कहा कि स्थानांतरण एक भूल होगी.
अचारी ने कहा 'संसद भवन भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक है. यह आम इमारत नहीं है. एडविन लुटियन्स और हर्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन की गई यह इमारत परंपरागत भारतीय कला और वास्तुशिल्प का बेहतर उदाहरण पेश करती है.' यहां तक कि पिछले सप्ताह संसद की विरासत समिति की बैठक में संसद के लिए वैकल्पिक स्थान और इमारत के विचार को कई सदस्यों का समर्थन नहीं मिला. समिति में लालकृष्ण आडवाणी और करण सिंह जैसे वरिष्ठ नेता हैं.
अब लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की अगुवाई वाली संसद की विरासत समिति ने केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) द्वारा कंसलटेंट की सेवाएं लेने का फैसला किया है जो एक मास्टर प्लान तैयार करेगा. मास्टर प्लान में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि 85 साल पुरानी इस इमारत में केवल 'जरूरी गतिविधियां' ही संचालित की जाएं. प्रख्यात वास्तुविद, शहरी योजनाकार और संरक्षण सलाहाकार प्रो ए.जी.के. मेनन ने इस विचार को पूरी तरह अर्थहीन करार दिया है.
वर्तमान में 'स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्कीटेक्चर' में प्राध्यापक प्रो. मेनन ने कहा 'सिर्फ इसलिए ही संसद को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता कि इमारत कमजोर है. इससे अधिक पुरानी इमारतों की मरम्मत और उनके संरक्षण के उदाहरण हैं. मैं नहीं जानता कि संसद को स्थानांतरित करने का विचार कहां से आया.' उन्होंने कहा कि अत्तारा कचेरी 125 साल पुरानी इमारत है जहां फिलहाल कर्नाटक हाई कोर्ट है. संसद भवन से पुरानी इस इमारत की मरम्मत की गई और अब यह अच्छी स्थिति में है.
एक अन्य संरक्षणवादी और ‘आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर इन इंडिया’ के परियोजना निदेशक रतीश नन्दा ने कहा कि यह भारत की प्रतीकात्मक ऐतिहासिक इमारतों के नवीनीकरण और वास्तु आधारित डिजाइन के लिए मानक तय करने का अच्छा अवसर है.