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जब लक्ष्य हो आसमान, तो क्या करेगा तालिबान!

आजाद-ख्याल लड़कियों के प्रति तालिबान का खौफनाक रवैया दुनिया को मालूम है, पर नई दिल्‍ली एक प्रतिष्ठित फुटबाल टूर्नामेंट में खेलने आई अफगानी लड़कियों के हौसले को देखकर नई उम्मीद बंधती है. ये उस जमात की अफगानी लड़कियां हैं जो तालिबानी खौफ को भी हराकर आसमान छूना चाहती हैं.

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आजाद-ख्याल लड़कियों के प्रति तालिबान का खौफनाक रवैया दुनिया को मालूम है, पर नई दिल्‍ली एक प्रतिष्ठित फुटबाल टूर्नामेंट में खेलने आई अफगानी लड़कियों के हौसले को देखकर नई उम्मीद बंधती है. ये उस जमात की अफगानी लड़कियां हैं जो तालिबानी खौफ को भी हराकर आसमान छूना चाहती हैं.

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सुब्रतो कप फुटबॉल टूर्नामेंट में खेलने आई अंडर-17 अफगानी महिला टीम की हर सदस्य को पता है कि कठमुल्लों की नजर में उनकी यह आजादी कितनी जोखिम भरी है, पर उन्हें इसकी परवाह नहीं है. काबुल के रबिया बालकाही हाई स्कूल की इन लड़कियों की नजर में उनका फुटबॉल खेलना उनकी आजादी और मुक्ति का सबूत है.

नौवीं कक्षा की छात्रा एवं टीम की सदस्य ज्राफचन निमिय ने कहा, 'जब मैं छोटी थी तो घर से बाहर निकलने में भी खौफ का अहसास होता था. अब देश के हालात बदल रहे हैं. वहां एक लोकतांत्रिक सरकार एवं पुलिस प्रशासन है.' निमिय इस टीम की प्रवक्ता भी हैं. उनका मानना है कि अफगानी लड़कियों का फुटबॉल खेलना महिला सशक्तिकरण का भी सबूत है.

वे कहती हैं, 'फुटबाल हमें अतीत के तल्ख सच को भूल जाने और सुनहरे भविष्य का संदेश देता है. जब शुरू में माता-पिता से इसकी इजाजत मांगी थी तो उन्हें इजाजत देने से साफ इनकार कर दिया था, पर जब हमारे कोच ने उनसे बातचीत की तो मेरे टीम में शामिल होने का रास्ता साफ हो गया. अब वहां के समाज का रवैया भी महिलाओं के प्रति बदल रहा है.'

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टीम की मिडफील्डर मासौमेह कहती हैं, 'तालिबान का खौफ अपनी जगह है. हमारा प्रगतिशील सोच अपनी जगह. वैसे, हमारे पास सुविधाओं का अभाव है. हमें सख्त जमीन पर अभ्यास करना पड़ता है, क्योंकि उपयुक्त मैदान की कमी है, फिर भी फुटबॉल की हमारी दीवानगी बरकरार रहेगी.' देश में दहशत का दौर लंबा चलने के कारण खेल को भारी नुकसान हुआ है. वहां खेल मैदानों, उपकरणों एवं अन्य सुविधाओं की भारी किल्लत है. देश के सिर्फ तीन शहरों-हेरात, काबुल एवं मजारे-शरीफ -तक ही महिला खेल गतिविधियां सिमटी हैं. आसमान छूने की चाहत रखने वाली इन अफगानी लड़कियों की रुचि सिर्फ खेल तक सिमटी नहीं है. वे बॉलीवुड फिल्मों में गहरी रुचि रखती हैं. ज्राफचैन कहती हैं, 'मैं सलमान खान की फैन हूं. मैंने उनकी फिल्म 'तेरे नाम' दस बार देखी है! हमें मालूम है कि लड़कियों के लिए अफगानिस्तान में कैसे हालात हैं, पर हमें जिंदगी के प्रति आशावादी नजरिया रखना ही होगा. इसी में हमारी जीत है.

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