अगर बिजली कटौती से आपका इलेक्ट्रॉनिक रेफ्रिजरेटर किसी अलमारी में तब्दील हो जाता है तो अब आपको यह चिंता करने की जरूरत नहीं है कि इसमें रखे खाने-पीने के सामान का क्या होगा.
इस समस्या से आम आदमी को मुक्ति देने के लिये मध्यप्रदेश माटी कला बोर्ड ने देसी फ्रिज तैयार किया है. यह फ्रिज वाष्पीकरण के सिद्धांत पर काम करता है और बिजली के बगैर खाने-पीने के सामान को ‘ठंडा-ठंडा, कूल-कूल’ रखता है.
पहली नजर में ध्यान खींचने वाले इस देसी फ्रिज को यहां बोर्ड की एक प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान पेश किया गया.
झाबुआ जिले के माटी शिल्पकार संजय वेस्ता (32) ने बताया, ‘देसी फ्रिज चाक पर तैयार किया गया है, जो बिजली के बगैर पानी को दिन भर ठंडा और खाने-पीने के सामान को ताजा रखता है.’ वेस्ता के मुताबिक देसी फ्रिज को चिकनी, भूरी व लाल मिट्टी से बनाया गया है और यह लगभग इलेक्ट्रॉनिक फ्रिज की तरह काम करता है. हालांकि, यह देसी उपकरण इलेक्ट्रॉनिक फ्रिज की तरह बर्फ नहीं जमा सकता.
{mospagebreak} देसी फ्रिज की बनावट उसी सदियों पुराने पारंपरिक तरीके पर आधारित है, जिसकी मदद से भारत में गर्मियों के दौरान खाने-पीने के सामान को खराब होने से बचाया जाता रहा है.
उन्होंने बताया कि एक खाने वाले मिट्टी के इस फ्रिज में पानी भरने के लिये छेद बनाया गया है. छेद में भरा जाने वाला पानी फ्रिज की गोलाई में बराबर फैल जाता है. फिर इसमें खाने-पीने का सामान रखकर ऊपर से ढक्कन लगा दिया जाता है.
चूंकि यह फ्रिज मिट्टी का बना है, लिहाजा इसमें असंख्य बारीक छेद होते हैं। इन छेदों से पानी रिस-रिस कर फ्रिज की सतह पर आता रहता है. यह पानी फ्रिज के पानी की गर्मी को सोखकर भाप में बदल जाता है. जब यह भाप फ्रिज की सतह से उड़ती है तो अपने साथ इस देसी उपकरण के भीतर की गर्मी भी ले जाती है. नतीजतन फ्रिज में रखा खाने-पीने का सामान वातावरण की गर्मी से महफूज रहता है और देर तक ताजा-ठंडा बना रहता है.
अब रहा सवाल कीमत का, तो देसी फ्रिज की कीमत अभी तय नहीं की गयी है. मध्यप्रदेश माटी कला बोर्ड इस उपकरण के व्यावसायिक उत्पादन की संभावनाएं तलाश रहा है.