जब कोई खास मुद्दा लोगों के मस्तिष्क और मीडिया में बढ़-चढ़कर छाने लगे, तो उसकी वस्तुस्थिति की जांच करना लाजिमी हो जाता है. ऐसे में उम्मीदों और संभावना की बजाए इसे व्यावहारिकता की कसौटी पर जांचना जरूरी होता है. क्या ओबामा अपने शांतिकालीन मित्र भारत से अच्छे रिश्ते बनाने के लिए युद्धकालीन मित्र पाकिस्तान को छोड़ देंगे? पाकिस्तान को वाशिंगटन के बाजार से एकमात्र चीज चाहिए और वह है- हथियार. अगर उसे किसी दूसरी चीज की जरूरत है, तो वह है हार्ड कैश. जो हथियार पश्चिमी फ्रंट पर पुराने हो गए मालूम पड़ते हैं, वही हथियार पूर्वी फ्रंट पर सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जहां कश्मीर घाटी का मुददा अभी भी गरम है.
ओबामा ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर की आर्थिक मदद देकर जहां उसे खुश किया है, वहीं भारत से कुछ पल की बातचीत कर रहा है. उम्मीद है कि अमेरिका अगले साल के वसंत तक पाकिस्तान को वित्तीय सहायता की एक और किस्त दे देगा.
सच्चाई यह है कि भारत से कुछ हासिल करने के लिए ओबामा भारत आ रहे हैं. उन्हें अमेरिकी कंपनियों के लिए ऑर्डर चाहिए, ताकि अमेरिका में रोजगार पैदा हो सके. यह बड़ा दिलचस्प है कि ओबामा को भारत और पाकिस्तान में से दोनों की ही जरूरत है. पाकिस्तान की जरूरत है युद्ध के लिए और भारत की जरूरत है रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए. ओबामा को चीन के साथ भी सहयोग बढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं आ रही है, क्योंकि चीन भी भारत की बजाए पाकिस्तान को सशक्त देखना चाहता है. भारत दबाव में तो नहीं है, मगर बीच में जरूर फंसा है. मगर कभी-कभी आलिंगन और दबाव में फर्क आसानी से पता नहीं चलता है.