संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु की फांसी के सवाल ने सियासी रंग पकड़ लिया है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जहां इस पर जमकर हंगामा हुआ, वही मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का मानना है कि अफजल की फांसी से घाटी के हालात और बिगड़ेंगे.
जिसने संसद पर हमले की साजिश रची और उसे अंजाम तक पहुंचाया, उसकी फांसी का सवाल जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बवाल का सबब बन गया. बीजेपी और पैंथर्स पार्टी के नेता अफजल की फांसी के प्रस्ताव पर चर्चा के विरोध में खड़े हैं.
राजीव गांधी के हत्यारों की सजा माफ करने का प्रस्ताव तमिलनाडु विधानसभा में पास हुआ था. उसके बाद ही संसद पर आतंकी हमले के गुनहगार अफजल गुरु की फांसी पर भी राजनीति तेज हो गयी. खुद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ये मानते रहे हैं कि फांसी से हालात बिगड़ेंगे और एक बार फिर उन्होंने इसी बात को दोहराया है.
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा कि संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ाए जाने से राज्य में आतंकवादी हमले दोबारा शुरू हो सकते हैं जिसे लेकर वह चिंतित हैं. उमर ने कहा, 'मुझे अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ाए जाने को लेकर चिंतित होना पड़ेगा. अफजल को फांसी देने से राज्य और केंद्र सरकार दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी.'
उन्होंने उल्लेख करते हुए कहा कि जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के नेता मुहम्मद मकबूल भट्ट को वर्ष 1984 में फांसी की सजा देने के बाद कश्मीर में आतंकवादियों की एक फौज तैयार हो गई थी. अब्दुल्ला ने कहा, 'मैं वह भुला नहीं सकता कि मकबूल भट्ट को फांसी देने से आतंकवादियों की एक पूरी पीढ़ी पैदा हो गई. मुझे इस बारे में चिंतित होना होगा कि अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ाए जाने से घाटी में आतंकवादी घटनाएं एक फिर बढ़ जाएंगी जो इस समय काफी कम हैं.'
उन्होंने कहा, 'मैं मृत्युदंड दिए जाने के पक्ष में नहीं हूं. यह हत्यारों अथवा आतंकवादियों को डराने में कामयाब नहीं होगा. इसी साल दिसंबर में संसद पर आतंकी हमले के दस साल पूरे होने हैं. लेकिन हमले के गुनहगार को सजा दिलाने की जगह उसे बचाने के लिए सियासत की टेढ़ी चाल शुरू हो गयी है.