प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को कहा कि भारत के तेज आर्थिक विकास में अंतरराष्ट्रीय हालात के साथ-साथ कुछ हद तक देश के अंदर के हालात भी अड़चन बन रहे हैं.
सोनिया गांधी की अध्यक्षता में दिल्ली के निकट हरियाणा के सूरजकुंड में आयोजित पार्टी नेताओं की एक दिवसीय ‘संवाद बैठक’ में प्रधानमंत्री ने देश की अर्थ व्यवस्था से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की और उनकी सरकार की इस बात के लिए आलोचना किये जाने को भी गलत बताया कि वह सकल घरेलू उत्पाद के वृद्धि दर पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दे रही है.
सिंह ने कहा, ‘हमारे देश में मौजूदा आर्थिक मंदी काफी हद तक खराब अंतरराष्ट्रीय हालात के कारण है और कुछ हद तक हमारे देश की अन्दर की स्थिति की वजह से भी. देश के अंदर जो हालात हमारे तेज आर्थिक विकास में अड़चन बन रहे हैं, हमें उन्हें बदलने की भरपूर कोशिश करनी चाहिये.’
विपक्षी दलों और सिविल सोसाइटी से सहयोग न पाने की अप्रत्यक्ष रूप से शिकायत करते हुए उन्होंने कहा कि शासन के काम में भ्रष्टाचार और गड़बड़ी पर काबू लगना चाहिए और सबसे जरूरी यह है कि कुल मिलाकर देश में ऐसा माहौल बनना चाहिए जिसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के निवेशकों का हौसला बढ़े और देश में ऐसा माहौल तैयार करने के लिए सरकार के सभी विभागों को मिलकर काम करना होगा.
उन्होंने कहा, ‘अच्छा तो यह होगा कि राष्ट्र महत्व के इस काम में हमें राज्य सरकारों, विभिन्न राजनीतिक दलों और सिविल सोसाइटी का सहयोग भी प्राप्त हो. लेकिन ऐसे सहयोग की हमारी अभी तक की कोशिशें पूरी तरह कामयाब नहीं रही हैं.’
एफडीआई की वकालत में उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास का निवेश से सीधा संबंध है. अगर हमारी अर्थव्यवस्था में ज्यादा निवेश होता है तो हमारे आथिक विकास की दर भी ज्यादा तेज हो जाती है. प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में निवेश बढ़ाने के लिए हमें बहुत से क्षेत्रों में एक साथ प्रयास करने की जरूरत है. उन्होंने माना कि मौजूदा वक्त में देश बड़ी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा हे लेकिन साथ ही उम्मीद जताई कि भारत इन चुनौतियों का मुकाबला करने में कामयाब होगा.
उन्होंने कहा, ‘मुझे यह भी यकीन है कि हमारी अच्छी आर्थिक नीतियां अच्छी राजनीत को बल देंगी. जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम अपने आप में विश्वास रखें और मिलकर मेहनत और लगन से काम करें.’
तेज आर्थिक विकास के रास्ते में वित्तीय घाटे को एक बड़ी समस्या बताते हुए उन्होंने कहा कि सरकारी खर्च और आमदनी में यह अंतर पिछले कुछ सालों में बहुत ज्यादा हो गया है. उन्होंने कहा कि 2007-08 में इस वित्तीय घाटे को कम करके उनकी सरकार दो दशमलव पांच प्रतिशत ले आयी थी लेकिन उसके बाद अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकारी खर्च में बढ़ोत्तरी करनी पड़ी और इसलिए हमारा वित्तीय घाटा बढकर 2011-12 में पांच दशमलव 76 प्रतिशत रहा जो बहुत ज्यादा है.
उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि ज्यादा वित्तीय घाटे के नतीजे हमारे देश के लिए बहुत खराब हो सकते हैं, इससे हमारी अर्थव्यवस्था में विश्वास कम होगा. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेश दोनों कम होंगे. इससे आर्थिक विकास की रफ्तार भी कम होगी और नतीजे में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ेगी.
बढ़ती मंहगाई को भी देश के लिए एक बड़ी आर्थिक चुनौती बतते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह एक ऐसी समस्या हे जिसकी वजह से आम आदमी की तरक्की के लिए हमारे कार्यक्रमों में बाधा आती है इसका सबसे बुरा असर गरीबों पर पड़ता है.