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23 वीर बच्चों को मिला राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार

आयु मात्र छह वर्ष लेकिन काम ऐसा कि बड़े भी सुनकर दंग रह जाएं. राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए चुने गए 23 वीर बच्चों में दो ऐसे बच्चे भी शामिल हैं जिनकी उम्र मात्र छह वर्ष है लेकिन इसके बावजूद दोनों ने अपनी जान की परवाह किये बिना अन्य बच्चों को बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी.

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आयु मात्र छह वर्ष लेकिन काम ऐसा कि बड़े भी सुनकर दंग रह जाएं. राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए चुने गए 23 वीर बच्चों में दो ऐसे बच्चे भी शामिल हैं जिनकी उम्र मात्र छह वर्ष है लेकिन इसके बावजूद दोनों ने अपनी जान की परवाह किये बिना अन्य बच्चों को बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी.

राजस्थान की कुमारी चम्पा कंवर (छह वर्ष) की अपनी बहन को बचाने के प्रयास में मौत हो गई. उसे मरणोपरांत यह पुरस्कार देने के लिए चुना गया. इसी प्रकार श्रणव कुमार की आयु भी मात्र छह वर्ष है. लेकिन छोटी उम्र होने के बावजूद उसने अपनी जान की बाजी लगाकर दो अन्य बच्चों की जान बचायी.

चम्पा ने हालांकि अपनी बहन की जान बचाने का पूरा प्रयास किया लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सकी और इसमें दोनों की मौत हो गई. घटना दो नवम्बर 2009 की है. उस दिन चम्पा के माता पिता घर पर नहीं थे.

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चम्पा अपने भाई-बहनों के साथ खेल रही थी. तभी उसने देखा कि उनकी झोपड़ी में आग लग गई है. झोपड़ी को आग की लपटों में घिरा देखकर सभी बच्चे बाहर भागे लेकिन इस प्रयास में चम्पा की बहन सात महीने की पूनम अंदर ही छूट गई. अपनी बहन को आग में घिरा देखकर चम्पा आग में कूद गई लेकिन दोनों आग की चपेट में आ गई. इस दुर्घटना में चम्पा और उसकी बहन दोनों की मौत हो गई.{mospagebreak}

वहीं छह वर्षीय श्रवण कुमार ने अपने प्राण संकट में डालकर आग से दो बच्चों की जान बचायी. घटना 26 अक्तूबर 2009 की है. राजस्थान के समेश्वर गांव निवासी झालाराम की झोपड़ी में अचानक आग लग गई. जिस समय आग लगी उस समय उनकी दो बेटियां और 10 बकरियां झोपड़ी में ही थीं.

श्रवण झोपड़ी से करीब 200 मीटर दूर खेल रहा था. आग का धुआं उठते देखकर श्रवण झोपड़ी की ओर दौड़ा. झोपड़ी के पास आकर श्रवण ने देखा कि बकरियां आग में घिरी हुई हैं और दोनों बच्चियां चारपायी पर पड़ी सहायता के लिए चिल्ला रहीं हैं. श्रवण अपनी जान की परवाह किये बिना झोपड़ी में घुस गया और एक वर्षीय छोटी बच्ची को गोद में उठाया और ढाई वर्षीय दूसरी बच्ची का हाथ पकड़कर बाहर निकाल लाया.

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श्रवण उन्हें सुरक्षित अपने घर छोड़कर झालाराम को इसकी सूचना देने के लिए दौड़ा. आग लगने की सूचना पाकर बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए लेकिन तब तक झोपड़ी में बंधी बकरियों की मौत हो चुकी थी और घर का सामान भी जलकर राख हो चुका था.

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