प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पर्यावरण अनुकूल प्रगति की वकालत करते हुए कहा कि पर्यावरण को क्षति पंहुचाने से रोकने के लिए उचित नियामक मानदंड लागू करने के साथ ही यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि लाइसेंस परमिट राज नहीं लौटने पाए.
सिंह ने कहा कि मानदंडों का उल्लंघन करके प्रदूषण फैलाने वालों से कीमत वसूलने का सिद्धांत भी लागू किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहूंगा कि मानदंड बनाना ही काफी नहीं है. उन्हें लागू भी किया जाना चाहिए, जो अक्सर मुश्किल होता है.’ दिल्ली सतत विकास शिखर बैठक 2011 के अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि किसी भी सतत विकास को सुनिश्चित करने की रणनीति का केन्द्रीय सिद्धांत यह है कि आर्थिक पहलुओं का फैसला करने वाले सभी लोगों या संगठनों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाए कि वे पर्यावरण अनुकूल बातों को हमेशा ध्यान में रखें.
इस शिखर बैठक में अन्य विशेषज्ञों के अलावा अफगानिस्तान, डोमिनिकन रिपब्लिक और सेशल्स के राष्ट्रपति भी हिस्सेदारी कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री का यह बयान ऐसे समय आया है जब पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन करने वाली करोड़ों डालर की कई बड़ी परियोजनाओं को लाल झंडी दिखाई है.
सिंह ने कहा, हमें ऐसी ढांचागत नियामक नितियां बनानी होंगी जो पर्यावरण को क्षति पंहुचाने वाले आचरण पर रोक लगा सके. नियामक मानदंडों को बना कर और उन्हें लागू करके हम ऐसा ही करने का प्रयास कर रहे हैं.
{mospagebreak} जलवायु परिवर्तन के संबंध में प्रधानमंत्री ने कहा औद्योगिक देशों को उत्सर्जन कटौती के लक्ष्यों को पाने की पक्की प्रतिबद्धतता जतानी चाहिए जिससे कोपेनहेगन जलवायु शिखर सम्मेलन में तय किए गए लक्ष्यों को हासिल किया जा सके. सिंह ने कहा कि भारत, चीन और कई अन्य विकासशील देशों ने प्रदूषण उत्सर्जन में कटौती लाने के लिए स्वैच्छिक लक्ष्य और विशिष्ट योजनाएं बनाई हैं.
उन्होंने के कहा, इस मामले में अगर हमें वैश्विक जड़ता तोड़नी है तो 2020 के लिए तय किए गए कोपेनहेगन उत्सर्जन कटौती के लक्ष्यों को हासिल करने के वास्ते औद्योगिक देशों को स्पष्ट प्रतिबद्धतता दर्शानी होगी.
प्रधानमंत्री ने खेद प्रकट किया कि औद्योगिक देशों की ओर से अभी तक इस दिशा में कोई ठोस आश्वासन प्राप्त नहीं हुआ है.
उन्होंने कहा कि भारत अगर अपना सारा का सारा ग्रीनहाउस उत्सर्जन भी रोक दे तो उससे कोई खास अंतर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि यह विश्व के कुल उत्सर्जन का सिर्फ चार प्रतिशत ही है.
औद्योगिक देशों पर इसकी बड़ी जिम्मेदारी डालते हुए सिंह ने कहा, हमारा मानना है कि ग्रीनहाउस गैस के लिए जो देश प्राथमिक रूप से जिम्मेदार हैं और जिनमें इस पर नियंत्रण करने की सबसे अधिक क्षमता है, वे इसकी जिम्मेदारी उठाएं.