प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि एचआईवी-एड्स जैसी जानलेवा बीमारी के मामलों में भारत पिछले दस साल में पचास प्रतिशत की कमी लाने में सफल हुआ है. लेकिन देश में अभी भी 24 लाख लोग इसके शिकार हैं, इसलिए आत्मसंतोष की कोई गुंजाइश नहीं है.
एचआईवी-एड्स पीड़ितों से किसी तरह का भेदभाव नहीं बरतने के प्रति आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि मनरेगा में ऐसे लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के विशेष प्रयास होने चाहिए. वह यहां एचआईवी-एड्स पर राष्ट्रीय जिला परिषदों के अध्यक्षों और मेयरों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
इस अवसर पर मौजूद संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि इस मंच पर सभी दलों के प्रतिनिधित्व से साफ है कि देश राजनीतिक प्रतिबद्धतताओं से उपर उठकर इस घातक रोग और उससे जुड़े सभी मुद्दों का समाधान चाहता है.
प्रधानमंत्री ने कहा, एचआईवी-एड्स को लेकर किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. किसी बच्चे को स्कूल और कालेजों में दाखिला देने से इसलिए नहीं रोका जाए कि उसे या उसके मां-बाप..किसी को यह रोग है. यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई व्यक्ति इसलिए रोजगार नहीं खोए कि उसे एचआईवी-एड्स है. इसके लिए किसी का सामाजिक बहिष्कार नहीं हो. यह भी कि महिलाएं दोहरी तोहमत का शिकार नहीं बनें. ऐसे लोगों को इज्जत की जिंदगी जीने का माहौल देना चाहिए.
सोनिया ने इस घातक रोग पर काबू पाने के लिए इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने की मुहिम को और तेज करने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि समाज में जो सबसे वंचित वर्ग है उसके लोग इस बीमारी के ज्यादा शिकार हैं, अत: ऐसे वर्गों पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है.
सिंह और सोनिया दोनों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि एचआईवी-एड्स नियंत्रण कार्यक्रम को सफल बनाने में समाज की अहम भूमिका है. सोनिया ने इस बात की सराहना की कि समाज का एक बड़ा वर्ग इस रोग की रोकथाम में सक्रिय है. सिंह ने कहा, जनता के लाभ के लिए स्वास्थ्य को अगर सही मायनों में जन आंदोलन बनाना है तो उसमें समाज तथा पंचायती राज की भागीदारी महत्वपूर्ण होगी.
प्रधानमंत्री ने कहा कि एड्स पर काबू पाने के लिए देश में अभी ऐसे 4.2 लाख रोगियों को मुफ्त उपचार मुहैया कराया जा रहा है. लेकिन इससे और प्रभावशाली ढंग से निपटने के लिए बहु-आयामी सहयोग बनाना होगा. विभिन्न मंत्रालयोंे को आपसी ताल मेल से काम करना होगा.
उन्होंेने कहा कि प्रवासी और लगातार गतिशील आबादी पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे लोगों के इस रोग की चपेट में आने के खतरे बहुत होते हैं. उन्होंने कहा कि इस रोग की रोकथाम के लिए ऐसी आबादी पर अभी तक अलग से ध्यान नहीं दिया जा सका है, अत: भविष्य के कार्यक्रमों पर इसका खास ख्याल रखा जाए.
सिंह ने कहा कि आबादी के जिस हिस्से के इस रोग का शिकार होने की अधिक आशंकाएं हैं, उन पर विशेष ध्यान दिया जाए.