प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस महीने की 22 तारीख से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से कुछ ताल मेल बिठाने की कवायद में उसके वरिष्ठ नेताओं को कल रात दावत का न्यौता दिया है.
तृणमूल कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद बहुमत बनाए रखने की कोशिश में जुटी सरकार के मुखिया इससे पहले अपने शासन को बाहर से समर्थन दे रहे सपा नेता मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख मायावती से अलग-अलग भोज बैठकें पहले ही कर चुके हैं.
शुक्रवार को उनके निवास 7 रेस कोर्स रोड पर यूपीए के घटक दल के नेताओं की भोज बैठक थी. सिंह ने शनिवार रात के भोज पर भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली को आमंत्रित किया है.
वैसे प्रधानमंत्री आम तौर से हर संसद सत्र से पहले मुख्य विपक्षी दल के वरिष्ठ सदस्यों को भोज पर बुलाते हैं. प्रधानमंत्री की इस भोज कूटनीति को इस संदर्भ में देखा जा रहा है कि वह विवादास्पद खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति देने संबंधी अहम विधेयक को आगे बढ़ाते हैं तो उसे पारित कराने लायक सदन के सदस्यों का समर्थन मिल पाता है या नहीं.
भाजपा सदस्यों से लोकपाल विधेयक, भ्रष्टाचार के मुद्दों और मंहगाई आदि मुद्दों पर भी चर्चा की संभावना है. तृणमूल कांग्रेस के यूपीए से समर्थन वापस ले लेने के बाद भी 545 सदस्यीय लोकसभा में सरकार के पास अभी बहुमत के लिए जरूरी 273 से अधिक सदस्यों का समर्थन सुनिश्चित दिख रहा है.
अगर उसे बाहर से समर्थन दे रहे सपा और बसपा के कुल 43 सदस्य भी साथ बने रहते हैं तो यह आंकड़ा 300 को पार कर जाएगा. लेकिन अगर एफडीआई पर मतदान होता है तो प्रधानमंत्री को यह सुनिश्चित करना होगा कि यूपीए के समर्थन का यह आंकड़ा बना रहे.
यूपीए में शामिल 18 लोकसभा सदस्यों वाली द्रमुक ने एफडीआई पर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. उसके बिना एफडीआई के पक्ष में अभी सदन में 243 सदस्यों को माना जा सकता है. विपक्ष के 205 सदस्य अभी तक एफडीआई के विरुद्ध कड़ा रवैया अपनाए हुए हैं.
ऐसे में द्रमुक के 18, बसपा के 21, सपा के 22, अकाली दल के चार, बीजद के 14 और 17 अन्य सदस्य खेल का पास पलट सकते हैं. 273 का जादुई आंकड़ा पार करने के लिए सरकार को इनमें से सिर्फ 30 के समर्थन की जरूरत है.
दूसरी ओर अगर द्रमुक, सपा और बसपा एफडीआई पर मतदान में हिस्सा नहीं लेते हैं तो सरकार को इसे पारित कराने के लिए 273 की बजाय 243 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी. ऐसे में उसे केवल 13 अन्य सदस्यों का समर्थन जुटाने का प्रयास करना पड़ेगा.