पाकिस्तान में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी सहित संकटग्रस्त नेताओं के भाग्य का फैसला सोमवार को होगा जब सुप्रीम कोर्ट मेमो मामले पर और रसूख वाले लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने संबंधी एक परिवाद पर सुनवाई करेगा.
परेशानियों में घिरी सरकार ने समर्थन के लिए संसद का रूख किया है.समझा जाता है कि संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली में उस प्रस्ताव पर कल मतदान होगा जिसमें लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए राजनीतिक नेतृत्व द्वारा किए गए प्रयासों पर मंजूरी और समर्थन मांगा गया है.
एक ओर जहां संसद इस प्रस्ताव पर विचार करेगी वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट की 17 सदस्यीय पीठ रसूख वाले लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने संबंधी एक परिवाद पर सुनवाई फिर से शुरू करेगी.
रसूख वाले लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को वर्ष 2007 में तत्कालीन सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने राष्ट्रीय सुलह सहमति अध्यादेश :एनआरओ: के तहत बंद कर दिया था.
पाकिस्तान में पिछले साल आशंकित सैन्य विद्रोह को रोकने के लिए अमेरिका से मदद मांगने संबंधी रहस्यमय मेमो की जांच के लिए शीर्ष अदालत द्वारा गठित एक न्यायिक आयोग कल भी सुनवाई जारी रखेगा.
पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी उद्योगपति मंसूर इजाज ने इस मेमो को सार्वजनिक कर राजनीतिक हलकों में तूफान खड़ा कर दिया. इजाज कल आयोग के समक्ष गवाही देने वाले हैं. हालांकि उनके पाकिस्तान आगमन को लेकर संदेह बरकरार है. पिछले सप्ताह शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार एनआरओ मुद्दे पर उसके आदेश की अवज्ञा करती रहेगी तो प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
अदालत ने कहा था कि गिलानी पद ग्रहण करते समय ली गई शपथ का सम्मान न करने के कारण ईमानदार व्यक्ति नहीं हो सकते. शीर्ष अदालत ने यह भी चेतावनी दी थी कि अगर राष्ट्रपति अपने पद संबंधी शपथ का उल्लंघन करते हैं तो उनको भी इसी नतीजे का सामना करना पड़ सकता है.
न्यायपालिका से बढ़ते दबाव के बीच, सरकार मेमो मामले में शक्तिशाली सेना से टकराव टालने के लिए प्रयासरत है.
शीर्ष अदालत ने सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी का मामले की स्वतंत्र जांच कराने संबंधी अनुरोध स्वीकार कर लिया और सरकार की यह दलील ठुकरा दी कि यह जांच एक संसदीय पैनल द्वारा कराई जानी चाहिए.
सरकार और सेना के बीच टकराव पिछले सप्ताह तब चरम पर पहुंच गया जब प्रधानमंत्री गिलानी ने कहा कि सेना और खुफिया प्रमुखों ने सरकार की मंजूरी लिए बिना मेमो मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट मे हलफनामा दाखिल कर ‘असंवैधानिक और गैरकानूनी’ तरीके से काम किया है.
कुछ दिन बाद सेना ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए बयान दिया कि प्रधानमंत्री की टिप्पणियों के गंभीर नतीजे हो सकते हैं. इसके जवाब में गिलानी ने रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल :अवकाश प्राप्त: खालिद नईम लोधी को बख्रास्त कर दिया जो कयानी के विश्वस्त माने जाते हैं. प्रधानमंत्री ने उन पर ‘कदाचार’ और सरकार तथा सेना के बीच गलतफहमियां पैदा करने का आरोप लगाया.
सरकार और सेना के बीच गतिरोध के दरम्यान कल गिलानी ने सेना के पास पहुंचने की कोशिश की लेकिन बताया जाता है कि कयानी ने कड़ा रूख अपनाया. वह चाहते हैं कि प्रधानमंत्री सेना के लिए गंभीर समझे जाने वाले बयान वापस ले.
गिलानी ने कहा कि सभी प्रतिष्ठानों को अपनी अपनी भूमिका निभाने की अनुमति होगी.
शीर्ष अदालत ने एनआरओ रद्द करने के बाद से ही सरकार पर दबाव बना रखा है. एनआरओ के चलते वर्ष 2009 में राष्ट्रपति जरदारी तथा 8,000 अन्य लोगों को फायदा हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट का सरकार पर दबाव है कि वह स्विस अधिकारियों को जरदारी के खिलाफ धनशोधन के मामले फिर से खोलने के लिए पत्र लिखे. लेकिन सरकार ने यह कहते हुए ऐसा करने से इंकार कर दिया कि राष्ट्रपति को संविधान के तहत छूट मिली हुई है.
जरदारी खुद कह चुके हैं कि सरकार तब तक स्विस अधिकारियों से संपर्क नहीं करेगी जब तक वह पद पर हैं क्योंकि यह कदम उनकी दिवंगत पत्नी पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के खिलाफ सुनवाई जैसा होगा. एनआरओ से लाभान्वित होने वालों में बेनजीर भी शामिल थीं. सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के कुछ सहयोगियों और पूर्व मंत्री ऐतजाज अहसन जैसे पार्टी के कुछ नेताओं का सुझाव है कि सरकार मामले फिर से खोलने के लिए स्विस अधिकारियों को पत्र लिख कर अपने उपर पड़ रहा दबाव कुछ कम कर सकती है.
अहसन ने कल कहा था कि ऐसे किसी भी कदम का राष्ट्रपति पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वियना संधियों के तहत उन्हें पाकिस्तान से बाहर भी छूट मिली हुई है.
शुक्रवार को संसद में पीपीपी की मुख्य सहयोगी अवामी लीग पार्टी ने लोकतंत्र के लिए समर्थन मांगने वाला प्रस्ताव पेश किया. पीपीपी के अन्य सहयोगी दल जैसे मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट और पीएमएल क्यू ने इसका समर्थन करने की घोषणा की.
जरदारी पर पद छोड़ने के लिए दबाव बनाने और शीघ्र आम चुनाव का रास्ता साफ करने के लिए दबाव बनाने की खातिर पीएमएल . एन ने जमात ए इस्लामी और जमायत उलेमा ए इस्लाम जैसे विपक्षी दलों के साथ विचारविमर्श शुरू कर दिया है.