विदेश सचिव निरूपमा राव ने कहा है कि आतंकवाद से निपटने के पाकिस्तान के नजरिए में ‘बदलाव’ आया है जो एक ‘ठोस’ घटनाक्रम है जिसका भारत को संज्ञान लेना चाहिए.
निरूपमा ने एक निजी के कार्यक्रम में कहा ‘इस मुद्दे को वे :पाकिस्तान: जिस नजरिए से देखते रहे हैं वह निश्चित तौर पर बदला है.’ वह इस सवाल का जवाब दे रही थीं कि क्या भारत ने हाल में संपन्न विदेश सचिव स्तर की वार्ता में आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान के नजरिए में बदलाव देखा है.
यह पूछे जाने पर कि क्या यह सकारात्मक घटनाक्रम है निरूपमा ने कहा कि यह एक ऐसी बात है जिसका भारत को संज्ञान लेना चाहिए.
उन्होंने कहा ‘मेरा मानना है कि जब वे इस तथ्य की बात करते हैं कि इस संबंध में सरकार से इतर तत्वों से निपटने की आवश्यकता है तो हमें पनाहगाहों को देखना चाहिए हमें फर्जी मुद्रा को देखना चाहिए हमें आतंक से जुड़े सभी पहलुओं को देखना चाहिए मेरा मानना है कि यह एक ठोस घटनाक्रम है.’
निरूपमा ने हालांकि कहा कि वह पाकिस्तानी अधिकारियों से उम्मीद नहीं करतीं कि वे पाकिस्तान सरकार के तत्वों चरमपंथ और आतंकवाद के बीच रणनीतिक संबंध होने के बारे में बात करेंगे . यह पूछे जाने पर कि क्या उनके समकक्ष सलमान बशीर ने मुम्बई हमलों के आरोपी डेविड कोलमैन हेडली द्वारा शिकागो अदालत में किए गए खुलासे को स्वीकार किया निरूपमा ने कहा कि पाक सरकार के तत्वों उग्रवाद और आतंकवाद के बीच रणनीतिक संबंधों को तोड़े जाने की आवश्यकता है .
पाक सरकार के तत्वों और आतंकी संगठनों के बीच रणनीतिक संबंधों की बात को क्या बशीर ने स्वीकार किया निरूपमा ने कहा ‘वह मुझसे ऐसा नहीं कहने जा रहे . मेरा मानना है कि मेरे लिए यह सोचना गलत होगा कि पाकिस्तान के विदेश सचिव ऐसा कहेंगे.’ निरूपमा ने कहा कि उन्होंने मुम्बई हमलों में आईएसआई की भूमिका के बारे में हेडली द्वारा किए गए खुलासे पर चर्चा की थी और बशीर को बताया कि भारत इस गठजोड़ के बारे में संतोषजनक उत्तर चाहता है.
उन्होंने कहा ‘लेकिन मैं कहना चाहूंगी कि हम आतंकवाद और समूचे क्षेत्र के लिए इसकी जटिलताओं के जिस तथ्य पर चर्चा कर रहे हैं मेरा मानना है कि यह एक घटनाक्रम है जिसका हमें संज्ञान लेना चाहिए.’ विदेश सचिव ने इस बात को खारिज किया कि वह पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया रखती हैं . उन्होंने कहा ‘यह मेरी विवेचना नहीं है और मैं नहीं मानती कि यह राजनयिक चर्चा को इस तरह पेश करने का ढंग है. मेरा मानना है कि हमें यथार्थवादी होना चाहिए. हमें क्षेत्र की जटिलताओं को समझना चाहिए.’