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रैगिंग रोकने के अपर्याप्त उपायों को लेकर संसदीय समिति नाराज

देश भर के कॉलेजों में रैगिंग रोकने के लिए तैयार किए गए दिशानिर्देशों को अपर्याप्त और निष्प्रभावी बताते हुए संसद की एक स्थायी समिति ने गहरी नाराजगी जाहिर की है.

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देश भर के कॉलेजों में रैगिंग रोकने के लिए तैयार किए गए दिशानिर्देशों को अपर्याप्त और निष्प्रभावी बताते हुए संसद की एक स्थायी समिति ने गहरी नाराजगी जाहिर की है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने रैगिंग रोधी हेल्पलाइन को निराश छात्रों की ओर से किए गए फोन कॉल्स के विश्लेषण न किए जाने पर भी नाखुशी जताई है.

कांग्रेस के ऑस्कर फर्नांडिज की अगुवाई वाली इस समिति को लगता है कि यदि इन फोन कॉल्स का अध्ययन किया जाए तो नए छात्रों को निशाना बनाने वाली इस बुराई से निपटने के लिए बेहतर रणनीति तैयार करने में मदद मिल सकती है.

समिति ने कहा कि रैगिंग के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए वर्तमान तंत्र पर्याप्त नहीं है.

हाल ही में संपन्न एक बैठक में समिति ने उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के बारे में उच्च शिक्षा विभाग की सचिव विभा पुरी से पूछताछ की.

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समझा जाता है कि विभा ने समिति के सदस्यों को रैगिंग रोकने के लिए कॉलेजों में उठाए गए विभिन्न कदमों की जानकारी दी. इन कदमों में 24 घंटे चालू रहने वाली एक रैगिंग रोधी हेल्पलाइन तथा छात्रों के लिए एक ई.मेल सुविधा शामिल है जिससे जरिये वे रैगिंग की घटना की शिकायत दर्ज करा सकते हैं और मदद मांग सकते हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने वर्ष 2009 में उच्च शिक्षा संस्थानों में रैगिंग रोकने के लिए नियामक तय किए थे.

इन नियामकों के तहत सभी शिक्षण संस्थानों को रैगिंग की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए एक रैगिंग रोधी समिति बनाने का आदेश दिया गया था. इसके अलावा, शैक्षिक संस्थानों को अपराध की गंभीरता के अनुसार, दोषियों को सजा देने का अधिकार दिया गया था.

रैगिंग की घटना में लिप्त छात्रों को निलंबित किया जा सकता है, उन्हें कक्षा में जाने से रोका जा सकता है, संस्थान से निष्कासित किया जा सकता है और तो और उन पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए जा सकते हैं.

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