हिमाचल प्रदेश के राजकीय पक्षी तीतर अब विलुप्त नहीं होंगे. तीतरों में प्रजनन शुरू होने से उनकी संख्या में वृद्धि होने लगी है, जिससे यहां के वन्य अधिकारी काफी उत्साहित हैं. तीतर की घटती संख्या को देखते हुए इसे विलुप्त होती प्रजाति की सूची में डाल दिया गया था. वन अधिकारी बताते हैं कि वेस्टर्न ट्रैगोपन प्रजाति के इन तीतरों के नौ जोड़े 2010 में बैक्टीरिया के संक्रमण के शिकार हो गए थे, लेकिन दो साल बाद अब न केवल वे इस बीमारी से उबर चुके हैं बल्कि इनकी संख्या भी बढ़ रही है.
मुख्य संरक्षक (वन्य जीव) आर.के. सूद ने बताया, ‘सहारन पक्षी केंद्र में तीन सप्ताह पहले सात चूजों ने जन्म लिया था और वे स्वस्थ हैं.’
ये तीतर 2010 में ई.कोलाई नामक बैक्टिरिया से संक्रमित हो गए थे. इस वजह से तीन तीतरों की मौत भी हो गई थी. इसके बाद से केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की सहायता से सहारन में चल रही देश की एकमात्र संरक्षित प्रजनन परियोजना पर भी सवाल खड़े होने लगे थे. वन्यजीव अधिकारियों ने कुछ समय के लिए इनकी प्रजनन प्रक्रिया बाधित कर दी थी.
सूद बताते हैं कि इस मौसम में मादा तीतरों ने 40 अंडे दिए हैं. एक अधिकारी के अनुसार, ‘पिछली बार की तरह इस बार अंडों से चूजों को बाहर निकालने के लिए मुर्गियों का प्रयोग भी नहीं किया गया और यह प्रक्रिया भी मादा तीतरों ने ही पूरी की.’
पहली बार इन पक्षियों के स्वास्थ्य और खुराक की देखभाल के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान की मदद भी ली गई. तीतरों की यह प्रजाति सामान्यत: मई से जुलाई के बीच प्रजनन करती है.
अधिकारियों के मुताबिक, 1993 से अब तक इन सात नवजात तीतरों के अलावा कुल 22 तीतर जन्म ले चुके हैं जिनमें से पांच की स्वाभाविक मौत हुई.
संख्या में लगातार हो रही कमी के चलते वेस्टर्न ट्रैगोपान को लुप्त होती वन्यजीवों की सूची इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के 'रेड डाटा बुक' में शामिल किया गया था.
हिमाचल प्रदेश के वन्य अधिकारियों का कहना है कि वे अक्सर कुल्लू की घाटी स्थित गेट्र हिमालयन नेशनल पार्क में तीतर को देखते हैं. शर्मीले स्वभाव के ये पक्षी 2000 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड के वनों में पाए जाते हैं.