लोकपाल पर हुई सर्वदलीय बैठक में यह सहमति बनी कि संसद के मानसून सत्र में ‘मजबूत और प्रभावशाली’ विधेयक लाया जाना चाहिये जो संसद के प्रभुत्व और स्थापित प्रक्रियाओं को बनाये रखने की आम सहमति पर आधारित हो.
बहरहाल, प्रस्तावित विधेयक के विभिन्न प्रावधानों पर मतभेद भी सामने आये. अन्नाद्रमुक को छोड़कर कई क्षेत्रीय दलों ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने का पक्ष लिया लेकिन उच्च न्यायपालिका को इस दायरे में रखने के वे पक्ष में नहीं दिखे. भाजपा ने लोकपाल से जुड़े विवादास्पद मुद्दों पर अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. मुख्य विपक्षी दल ने कहा कि संयुक्त मसौदा समिति में शामिल केंद्र के पांच मंत्रियों द्वारा तैयार मसौदे में उल्लेखित लोकपाल के अधिकार क्षेत्र और उसके चयन तथा उसे हटाने की प्रक्रिया के संदर्भ में हमारे और सरकार के बीच गंभीर मतभेद हैं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा अपने आधिकारिक आवास पर बुलायी गयी यह बैठक करीब तीन घंटे चली. बैठक के बाद एक प्रस्ताव पारित किया गया जो कहता है, ‘सर्वदलीय बैठक में यह सहमति बनी कि सरकार निर्धारित प्रक्रियाओं का अनुपालन करते हुए संसद के अगले सत्र में एक मजबूत और प्रभावकारी लोकपाल विधेयक पेश करे.’ बैठक में यह आम सहमति बनी कि लोकपाल की स्थापना इस तरह से नहीं हो कि कानून बनाने की स्थापित संसदीय प्रक्रिया का महत्व कम हो जाये.
सरकार ने गांधीवादी अन्ना हज़ारे के नेतृत्व वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं से बातचीत करने के दो महीने बाद यह सर्वदलीय बैठक की है. हज़ारे पक्ष के मसौदे में प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के अंदर सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने के प्रावधान करने का जिक्र है. ये तीनों ही बिंदु विवादास्पद हैं. बैठक का रुख तय करते हुए सिंह ने कहा कि सरकार उच्च स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिये मजबूत और प्रभावशाली लोकपाल के गठन के लिये प्रतिबद्ध है, लेकिन इसे अन्य संस्थानों और कानूनों के साथ सामंजस्य बिठाकर तथा संविधान की रुपरेखा के दायरे में काम करना होगा.
प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद के आगामी मानसून सत्र में लोकपाल विधेयक लाने के लिये सरकार प्रतिबद्ध है लेकिन यह प्रस्तावित संस्थान हमारे लोकतांत्रिक ढ़ांचे में मौजूद अन्य संस्थाओं की तर्कसंगत भूमिका और उनके प्राधिकार को कमतर नहीं करे. सिंह ने अपने शुरुआती संबोधन में कहा कि हमारा संविधान एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में परस्पर संतुलन की व्यवस्था पर कायम है और लोकपाल के संस्थान को इसी ढ़ांचे में अपनी उचित जगह तलाशनी होगी.
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने बैठक में कहा कि सरकार को संसद के मानसून सत्र में एक मजबूत लोकपाल विधेयक लाने के दौरान स्थापित संसदीय प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिये. भाजपा की वरिष्ठ नेता ने बैठक के बाद बताया, ‘हमने साफ तौर पर कहा कि भाजपा एक मजबूत और प्रभावकारी लोकपाल चाहती है जिसे पारदर्शी तरीके से चुना जाये और जो स्वतंत्र तरीके से काम कर सके.’ उन्होंने कहा कि विधेयक को संसद में पेश करने के बाद स्थायी समिति के पास भेजा जाये ताकि सभी राजनीतिक दल, राज्य सरकारें और समाज के सदस्य अपने विचार रख सकें. उचित सलाह-मशविरे के बाद विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पारित कराने के लिये फिर पेश किया जा सकता है.
सुषमा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि केंद्र के मंत्रियों द्वारा तैयार मसौदे के कई प्रावधानों से उनके गंभीर मतभेद हैं. जेटली ने कहा, ‘लोकपाल के दायरे में किसे आना चाहिये, उसकी नियुक्ति का तरीका क्या होना चाहिये, कौन नियुक्ति के लिये योग्य रहेगा और लोकपाल को हटाने की प्रक्रिया कौन शुरू करेगा. इस तरह के कई मुद्दों पर हमारे गंभीर मतभेद हैं.’ बहरहाल, भाजपा नेताओं ने प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने जैसे मुख्य विषयों पर अपने विचार स्पष्ट नहीं किये.
राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करने से पहले ही लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में समाज के सदस्यों को शामिल कर लेने पर भी बैठक में सरकार को आड़े हाथ लिया गया. सुषमा ने कहा कि सरकार ने संवैधानिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर दिया और विधेयक को समाज के सदस्यों के साथ मिलकर तैयार करने की कोशिश की. उन्होंने सरकार से कहा, ‘जब आप फंस गये, तभी आपने हमें याद किया.’ राजद, बीजद, जदयू और सपा ने भी सरकार को मसौदा बनाने की प्रक्रिया में समाज के सदस्यों को शामिल किये जाने के लिये आड़े हाथ लिया.
सपा के रामगोपाल यादव ने कहा कि वह हज़ारे पक्ष के तैयार मसौदे को देखना और उस पर चर्चा करना भी नहीं चाहते. आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि सरकार किसी भी परिस्थिति में कानून बनाने की स्थापित प्रक्रिया में छेड़छाड़ नहीं चाहती. उन्होंने कहा कि सरकार का समाज के सदस्यों से संवाद सलाह-मशविरा करने की एक अतिरिक्त कोशिश थी और एक नया प्रयोग था. उन्होंने कहा कि जब विधेयक संसद में पेश होगा तो वह संसद की संपत्ति होगा.
संप्रग के अहम घटक दल द्रमुक और अगपा, इनेलोद, तेदेपा तथा माकपा जैसे अन्य दलों ने प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने का पक्ष लिया. द्रमुक ने यह तक कहा कि उच्च न्यायपालिका को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाये. अगपा ने कहा कि न्यायपालिका को भी राष्ट्रीय न्यायिक आयोग की जांच के दायरे में रखा जाये. अन्य दलों के विपरीत अन्नाद्रमुक का कहना था कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने से उनके खिलाफ ओछी शिकायतें आने लगेगी और इससे प्रक्रिया पटरी से उतर जायेगी.
इंडियन नेशनल लोक दल के रणवीर सिंह प्रजापति ने कहा, ‘हमारे देश के संविधान में सभी लोगों को बराबरी का दर्जा दिया गया है, इसलिए प्रधानमंत्री को भी इसके दायरे में लाया जाना चाहिए.’ तेलुगू देशम पार्टी :तेदेपा: के नमा नागेश्वर राव ने कहा, ‘‘लोकपाल विधेयक लाने में अब और देरी नहीं की जानी चाहिए और प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए.’ इस सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, केंद्रीय मंत्री..प्रणव मुखर्जी, पी. चिदंबरम, कपिल सिब्बल, एम वीरप्पा मोइली, सलमान खुर्शीद और पवन कुमार बंसल मौजूद थे.
इनके अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, जनता दल यूनाइटेड के शरद यादव, रामसुंदर दास और शिवानंद तिवारी, शिरोमणि अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींढसा, माकपा के सीताराम येचुरी और वासुदेव आचार्य, भाकपा के गुरुदास दासगुप्ता और डी राजा, सपा के रामगोपाल यादव, बसपा के सतीश चंद्र मिश्र और दारासिंह चौहान, राजद के लालू प्रसाद, अन्नाद्रमुक के वी मैत्रयन और एम थम्बीदुरई मौजूद थे. बैठक में राकांपा नेता और कृषि मंत्री शरद पवार, भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल और द्रमुक के टी आर बालू ने भी हिस्सा लिया.