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म्यांमार: उपचुनाव में सू की को मिली जीत

म्यांमार में एक लम्बे समय से लोकतंत्र बहाली की लड़ाई लड़ रही नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने रविवार को हुए संसदीय उप चुनाव में जीत हासिल की है. वह निचले सदन के लिए निर्वाचित हुई हैं.

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आंग सान सू की
आंग सान सू की

म्यांमार में एक लम्बे समय से लोकतंत्र बहाली की लड़ाई लड़ रही नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने रविवार को हुए संसदीय उप चुनाव में जीत हासिल की है. वह निचले सदन के लिए निर्वाचित हुई हैं.

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समाचार एजेंसी 'सिन्हुआ' के अनुसार, 66 वर्षीया सू की ने यंगून के नजदीक कावमू टाउनशिप क्षेत्र से जीत दर्ज की. उनके पक्ष में 75 प्रतिशत मतदान हुआ.

संसद की 45 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में 17 राजनीतिक दलों के 157 प्रत्याशियों ने हिस्सा लिया था.

चुनाव प्रक्रिया की निगरानी के लिए यूरोपीय संघ, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, भारत तथा आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस) से 150 पर्यवेक्षक यहां पहुंचे हुए हैं.

चार बजे चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही निर्वाचन अधिकारियों, उम्मीदवरों के प्रतिनिधियों एवं आम जनता की ओर से 10 गवाहों की मौजूदगी में मतगणना की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इसके बाद परिणामों की घोषणा की गई.

इससे पहले, संसद की 45 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में हजारों मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.

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उपचुनाव में करीब 60 लाख मतदाता 17 राजनीतिक दलों के 157 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे. संसद की 45 सीटों के लिए उपचुनाव नौ क्षेत्रों में हुए. चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ सॉलिडरिटी एंड डेवेलपमेंट पार्टी तथा एनएलडी के बीच है.

चुनाव प्रक्रिया की निगरानी के लिए यूरोपीय संघ, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, भारत तथा आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस) से 150 पर्यवेक्षक यहां पहुंचे हुए हैं.

एक दिन पहले हुए सर्वेक्षण के दौरान 60 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा था कि वे सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के पक्ष में मतदान करेंगे. एनएलडी सभी 45 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

वर्ष 1990 के बाद एनएलडी पहली बार चुनाव में शिरकत कर रही है. वर्ष 1990 में हुए चुनाव में एनएलडी को जबरदस्त सफलता मिली थी, लेकिन सैनिक शासन ने इसे मानने से इनकार कर दिया था. यहां अब भी सैनिक शासन है. लेकिन वर्ष 2010 के बाद सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई है.

कई राजनीतिक कैदियों को रिहा किया गया, मीडिया पर प्रतिबंध कम किए गए और सू की तथा उनकी पार्टी एनएलडी को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने की अनुमति दी गई.

सू की पिछले 20 वर्षों से घर में ही नजरबंद थीं. उन्होंने वर्ष 2010 के चुनाव में भाग लेने से इनकार कर दिया था.

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