जनता पार्टी के प्रमुख सुब्रह्मण्यम स्वामी के 2जी स्पेक्ट्रम मामले में ए राजा के खिलाफ अभियोजन के अनुरोध को ‘गलत एवं समय पूर्व’ करार देते हुए सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि अदालत में शिकायत करने से पहले ही अनुमति मांगी गयी थी.
अटार्नी जनरल जी ई वाहनवती ने न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की पीठ से कहा, ‘जब मामला ही दायर नहीं किया गया हो तो मंजूरी देने के बारे में कोई सवाल ही नहीं उठता. यह मान्य नियम है कि महज शिकायत होने के आधार पर मंजूरी देने का सवाल ही नहीं उठता.’ उन्होंने कहा, ‘आज की तारीख तक याचिकाकर्ता (स्वामी) ने किसी सक्षम अदालत में शिकायत तक दायर नहीं की है. ऐसी परिस्थिति में मंजूरी देने का सवाल ही नहीं उठता.’
वाहनवती ने शीर्ष न्यायालय में स्वामी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह दलील दी. याचिका में अनुरोध किया गया है कि प्रधानमंत्री को राजा के खिलाफ अभियोजन चलाने की मंजूरी देने का निर्देश दिया जाये. स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर विवाद छिड़ने के बाद राजा ने दूरसंचार मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
सरकार के सबसे वरिष्ठ कानून अधिकारी वाहनवती ने कहा कि स्वामी के 29 नवंबर 2008 के पत्र में किया गया अनुरोध पूरी तरह से गलत था. एक याचिकाकर्ता ने किसी सक्षम अदालत में शिकायत दाखिल करे बिना ही अभियोजन चलाने की अनुमति मांग ली.
वाहनवती ने कहा कि मंजूरी देने की नौबत तब आती है जब अदालत इस सवाल पर गौर करना चाहे कि क्या शिकायत पर संज्ञान लिया जा सकता है. अटार्नी जनरल ने कहा कि संज्ञान लेने की प्रक्रिया कार्यवाही शुरू करने से बिल्कुल अलग है. ‘संज्ञान लेना ऐसी स्थिति है जो मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश द्वारा कार्यवाही शुरू किये जाने के पहले आती है.’{mospagebreak}
उन्होंने कहा, ‘संज्ञान मामलों का लिया जाता है न कि व्यक्तियों का. अन्य शब्दों में संज्ञान का मतलब है कि मामले की न्यायिक सुनवाई.’ वाहनवती ने कहा कि लिहाजा जब तब अदालत में शिकायत नहीं की जाती संज्ञान लेने का सवाल ही नहीं उठता. आरोपी यह दावा कर सकता है कि मंजूरी की जरूरत है और यदि ऐसा हुआ तो मजिस्ट्रेट संज्ञान लेने से पहले मंजूरी लेने को कहेगा.
वाहनवती ने कहा कि अदालत में शिकायत के बिना तथा शिकायत के बारे में अदालत द्वारा न्यायिक ढंग से विचार किये बिना संज्ञान लेने का सवाल ही नहीं उठता.
अटार्नी जनरल ने कहा, ‘‘इन दोनों ही आधारांे पर स्वामी की अर्जी गलत थी.’ वाहनवती ने कहा कि शिकायत दाखिल करने के बाद ही संज्ञान लेने की स्थिति आती है.
उन्होंने कहा, ‘ऐसी परिस्थितियों में शिकायत दाखिल करने से पहले मंजूरी देने का सवाल पूरी तरह से समय से पहले उठाया गया कदम है.’ उन्होंने कहा कि स्वामी के मामले में शिकायत दाखिल नहीं की गयी तथा मंजूरी देने का सवाल ही नहीं उठता.
उन्होंने कहा कि इस संबंध में कानून बेहद स्पष्ट है. उन्होंने कहा कि यह स्थिति तब से ही बनी हुई है जब नवंबर 2008 में स्वामी ने पहला पत्र प्रधानमंत्री को लिखा था. उसके बाद उन्होंने कई और पत्र लिखे.
अटार्नी जनरल जब अपनी दलीलें पेश कर रहे थे उसी समय पीठ ने कहा, ‘आपके अनुसार सही प्रक्रिया क्या है.’ पीठ ने कहा कि दलीलें पेश करते समय या कानून का सवाल उठाते समय व्यक्ति को सक्षम अदालत के समक्ष शिकायत दाखिल करनी चाहिए.{mospagebreak}
अटार्नी जनरल ने अपनी दलीलें पूरी करते हुए कहा कि सक्षम अदालत में शिकायत दाखिल करने के लिए किसी भी पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं है.
स्वामी ने अटार्नी जनरल के दावे का विरोध करते हुए कहा कि वह किसी मंत्री के खिलाफ अभियोजन के लिए प्रधानमंत्री से सीधे संपर्क कर सकते हैं. हालांकि उनके पास अदालत में जाने का भी वैकल्पिक अधिकार है.
जनता पार्टी प्रमुख ने कहा, ‘मेरे लिए दोनों ही विकल्प खुले हैं.’ उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून नागरिक को अभियोजन शुरू करने का अधिकार प्रदान करता है.
उन्होंने सरकार के इस रूख पर आपत्ति जतायी कि ‘वह महत्वपूर्ण नहीं हैं तथा मंत्री के खिलाफ अभियोजन चलाने की अनुमति देने की उनकी शिकायत पर प्रधानमंत्री कार्रवाई क्यों करें.’ स्वामी ने कहा, ‘समय आ गया है कि जब कानून को इस विषय पर बिल्कुल स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए.’ उनको टोकते हुए पीठ ने स्पष्ट किया कि अटार्नी जनरल ने स्वामी के अधिकार पर सवाल नहीं उठाया है.
पीठ ने कहा, ‘अटार्नी जनरल महज यह कह रहे हैं कि आपको अदालत में शिकायत करने का अधिकार है. अदालत मंजूरी प्रदान करने के लिए शिकायत पर गौर करेगी.’