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हमें आजादी के दूसरे संघर्ष की आवश्यकता: राष्‍ट्रपति

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को उन्होंने कहा कि हमें आजादी के दूसरे संघर्ष की आवश्यकता है. इस बार यह सुनिश्चित करने के लिए दूसरा स्वतंत्रता संग्राम लड़ना होगा कि भारत भूख, बीमारी और गरीबी से हमेशा के लिए मुक्त हो जाए.

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प्रणब मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को उन्होंने कहा कि हमें आजादी के दूसरे संघर्ष की आवश्यकता है. इस बार यह सुनिश्चित करने के लिए दूसरा स्वतंत्रता संग्राम लड़ना होगा कि भारत भूख, बीमारी और गरीबी से हमेशा के लिए मुक्त हो जाए. मुखर्जी ने पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हवाले से कहा कि आर्थिक प्रगति लोकतंत्र की परीक्षाओं में से एक होती है.

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राष्‍ट्रपति ने आगाह किया कि यदि लोकतांत्रिक संस्थाओं पर प्रहार हुआ तो देश में अव्यवस्था फैल जाएगी. अन्ना हजारे और रामदेव के भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का सीधा उल्लेख किए बिना राष्ट्रपति ने संसद जैसी संस्थाओं को कमतर आंकने के खतरों को रेखांकित किया.

देश के 66वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में मुखर्जी ने कहा कि भ्रष्टाचार की महामारी के खिलाफ गुस्सा और आंदोलन जायज़ है क्योंकि यह महामारी हमारे देश की क्षमता का ह्रास कर रही है. उन्होंने कहा कि कभी कभार जनता अपना धैर्य खो देती है लेकिन इसे हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर प्रहार का बहाना नहीं बनाया जा सकता.

राष्ट्रपति ने कहा कि ये संस्थाएं संविधान के दर्शनीय स्तंभ हैं और यदि इन स्तंभों में दरार आयी तो संविधान का आदर्शवाद नहीं रह सकता. उन्होंने कहा कि सिद्धांतों और जनता के बीच ये संस्थाएं ‘मिलन बिंदु’ का काम करती हैं. हो सकता है कि हमारी संस्थाएं समय की सुस्ती का शिकार हों लेकिन इसका जवाब यह नहीं है कि जो निर्मित किया गया है, उसे ध्वस्त किया जाए. बल्कि करना यह चाहिए कि उन्हें फिर से तैयार किया जाए ताकि वे पहले के मुकाबले अधिक मजबूत बन सकें. संस्थाएं हमारी आजादी की अभिभावक हैं.

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मुखर्जी ने कहा कि विधायिका से कानून बनाने का काम नहीं छीना जा सकता. जनता को अपना असंतोष व्यक्त करने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि जब अधिकारी सत्तावादी बन जाए तो लोकतंत्र पर असर होता है लेकिन जब बात बात पर आंदोलन होने लगें तो अव्यवस्था फैलती है. राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र साझा प्रक्रिया है. हम साथ-साथ ही जीतते या हारते हैं.

लोकतांत्रिक प्रकृति के लिए व्यवहार की मर्यादा और विरोधाभासी नजरियों को बर्दाश्त करना आना चाहिए. संसद अपने कैलेंडर और लय से चलेगी. उन्होंने कहा कि कभी कभार यह लय बिना तान की लग सकती है लेकिन लोकतंत्र में हमेशा फैसले का दिन आता है और वह होता है चुनाव. संसद जनता और भारत की आत्मा है. हम इसके अधिकारों और कर्तव्यों को अपने जोखिम पर चुनौती देते हैं.

मुखर्जी ने कहा कि वह उपदेश देने की भावना से यह बात नहीं कह रहे हैं बल्कि वह उन अस्तित्वपरक मुद्दों की बेहतर समझ की अपील कर रहे हैं, जो सांसारिक मुखौटे के पीछे छिपे रहते हैं. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को जवाबदेही की महान संस्था 'स्वतंत्र चुनावों' के जरिए शिकायतों के समाधान के लिए बेहतरीन अवसर का वरदान प्राप्त है.

मुखर्जी ने कहा कि सीमाओं पर सतर्कता की आवश्यकता है और वह अंदरूनी सतर्कता से मेल खाती होनी चाहिए. हमें अपने राजतंत्र, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के उन क्षेत्रों में विश्वसनीयता बरकरार रखनी चाहिए जहां शायद संतोष, थकान या जनसेवक के गलत आचरण के कारण काम रुका हुआ हो. अर्थव्यवस्था का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि विकास दर 1947 में एक प्रतिशत की वाषिर्क औसत दर से पिछले सात सालों में आठ प्रतिशत तक जा पहुंची है.  

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देश में सूखे और बाढ़ की मौजूदा स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति विशेषकर खाद्य मुद्रास्फीति चिन्ता की वजह बनी हुई है. राष्ट्रपति ने कहा कि खाद्य उपलब्धता अच्छी है लेकिन हम उन लोगों की हालत को नहीं भूल सकते, जिन्होंने सुस्त हालात वाले वर्ष में भी इसे संभव कर दिखाया यानी कि हमारे किसान. वे देश की जरूरत के वक्त उसके साथ खड़े हुए. उनके संकट में देश को भी उनके साथ खडा होना चाहिए.

उन्होंने अपने भाषण में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि 27 साल पहले बना यह मंच आतंकवादियों के खिलाफ लडाई का उपयुक्त जवाब है. मुखर्जी ने कहा कि दक्षेस को अपना जनादेश पूरा करने के लिए जोश हासिल करना चाहिए. आतंकवादियों के खिलाफ साझा लड़ाई में इसे एक बड़े हथियार के रूप में काम करना चाहिए.

असम समझौते पर फिर से चर्चा की जरूरत: प्रणब
हिंसाग्रस्त असम में लोगों के जख्मों पर मरहम रखने की प्रक्रिया शुरू करने पर जोर देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि ऐतिहासिक असम समझौते पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है और इसे न्याय एवं राष्ट्रहित की भावना से मौजूदा परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जाना चाहिए.

स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में मुखर्जी ने कहा कि असम के जख्मों को भरने के लिए ठोस प्रयास किये गये, जिनमें असम समझौता भी शामिल है, जो हमारे युवा एवं प्रिय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का विचार था. हमें उस पर दोबारा चर्चा करनी चाहिए और न्याय एवं राष्ट्रहित की भावना से उसे मौजूदा परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जाना चाहिए.

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जातीय समूहों के बीच तनाव पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश की स्थिरता के लिए खतरा बनने वाली पुरानी आग पूरी तरह बुझी नहीं है. उसमें से अभी भी धुआं निकलना जारी है. मुखर्जी ने कहा कि हमारे अल्पसंख्यकों को आघात से सुरक्षा, तसल्ली और समझ की जरूरत है. हिंसा कोई विकल्प नहीं है बल्कि हिंसा अपने से कहीं बडी हिंसा को आमंत्रित करती है.

उन्होंने कहा कि नयी आर्थिक बेहतरी के लिए क्षेत्र में शांति जरूरी है जो हिंसा की प्रतिस्पर्धी वजहों को शांत कर सकती है. निचले असम के जिलों में बोडो और बांग्लादेशी आव्रजकों के बीच संघर्ष से कम से कम 77 लोग मारे गये और लगभग चार लाख लोग बेघर हो गये.

ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए राष्ट्रपति ने दी खिलाडियों को बधाई
लंदन ओलंपिक में भारत के रिकार्ड प्रदर्शन के लिए खिलाडियों को बधाई देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उम्मीद जतायी कि रियो डि जेनरो में होने वाले अगले ओलंपिक में देश के खिलाड़ी और अधिक पदक जीतेंगे. मुखर्जी ने कहा, ‘जिन लोगों ने हाल ही में संपन्न खेलों में जीतकर और हिस्सा लेकर देश का मान बढ़ाया है, मैं उन्हें बधाई देता हूं.’

उन्होंने स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर कहा कि हो सकता है कि पदकों की संख्या अधिक न हो लेकिन पिछली बार के मुकाबले इस बार उल्लेखनीय सुधार हुआ है. चार साल बाद जब ‘मैं आपको फिर से संबोधित करूंगा तो मुझे यकीन है कि हम इससे कहीं अधिक मेडल जीतने का जश्न मनाएंगे.’ राष्ट्रपति ने मेडल जीतने वाले खिलाड़ी तैयार करने के लिए सशस्त्र बलों की भूमिका की सराहना की जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाया.

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उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है कि सशस्त्र बल न सिर्फ हमारी शांति की गारंटी करते हैं बल्कि ओलंपिक के लिए मेडल जीतने वाले भी तैयार करते हैं. मुखर्जी ने कहा कि उन्हें बहादुर सशस्त्र बलों और पुलिस बलों पर नाज है जिन्होंने बड़े व्यक्तिगत जोखिम उठाते हुए आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए काफी कुछ किया है.

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