कांग्रेस ने तो बड़े दावों और सोच-समझ के साथ महाराष्ट्र की गद्दी के लिए नए नाम का एलान किया. ये सोचकर कि पुराने चव्हाण की वजह से भ्रष्टाचार के जो दाग दामन पर लगे हैं, वो ये चव्हाण धो देंगे लेकिन सियासत में जब गड़े मुर्दे उखड़ते हैं, तो ना जाने क्या-क्या हो जाता है. मामला 2003 का है और आरोप हैं कि पृथ्वीराज चव्हाण ने सस्ते फ्लैट लेने के लिए गलत दस्तावेज सौंपे थे.
अर्बन लैंड सीलींग एक्ट के तहत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने 2003 में ये फ्लैट पृथ्वीराज चव्हाण को एलॉट किया था. आजतक के पास जो कागजात हैं उसके अनुसार लगता है कि इस फ्लैट को पाने के लिए पृथ्वीराज ने कई तरह के झूठ बोले. झूठ ये कि चव्हाण ने फ्लैट लेने के लिए खुद को आमदार यानि महाराष्ट्र का एमएलए बताया था जबकि उस वक्त वो मध्यप्रदेश में थे.
झूठ ये कि चव्हाण ने ये फ्लैट पाने के लिए तब अपनी सालाना कमाई सिर्फ 76,000 रु बताई थी जबकि एक सांसद को साल भर में कितनी सैलरी मिलती है ये सब जानते हैं.
दरअसल, कहानी ये है कि महाराष्ट्र अर्बन लैंड सीलींग एक्ट के तहत मुख्यमंत्री विशेष कोटा में पांच फीसदी फ्लैट कम कीमत पर अलॉट कर सकते हैं लेकिन स्कीम के तहत पिछले सोलह साल में करीब 85 फीसदी फ्लैट नेताओं या उनके रिश्तेदारों को ही बांटे गए. कुल मिलाकर अगर भक्ति पार्क की फाइल की जांच की जाए तो यहां भी भ्रष्टाचार के दलदल यहां भी मिलेंगे और कीचड़ के कुछ छींटे पृथ्वीराज चव्हाण पर भी गिरेंगे.