उत्तर प्रदेश सरकार ने गंभीर आरोप लगाने वाले अधिकारी डीडी मिश्रा को मानसिक रूप से परेशान करार दिया है.
प्रदेश सरकार की ओर से सफाई पेश करते हुए यूपी के प्रमुख सचिव (गृह) फतेह बहादुर ने कहा कि मायावती सरकार को भ्रष्ट बताने वाले डीआईजी डीडी मिश्रा की मानसिक हालत ठीक नहीं है, मेडिकल चेकअप से ऐसी जानकारी मिलती है.
उत्तर प्रदेश के एक सीनियर आईपीएस अधिकारी ने जब यूपी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए, तो पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचा दिया.
दूसरी ओर यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने भी माया सरकार पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया है. प्रकाश सिंह ने शनिवार सुबह को अन्ना हजारे से दिल्ली में मुलाकात की है.
मायावती सरकार लगातार आरोपों से घिरती जा रही है. फायर ब्रिगेड के डीआईजी ने कहा कि माया सरकार महाभ्रष्ट है, तो पुलिस यह कहकर उन्हें दफ्तर से पकड़ ले गई कि इनकी मानसिक हालत ठीक नहीं लग रही है. डीआईजी डीडी मिश्रा गुहार लगा रहे हैं कि मायावती से उनकी जान को खतरा है.
भ्रष्टाचार के आरोप लगाने पर अधिकारी को दिमागी तौर पर दिवालिया करार दे दिया गया. अब तक यूपी सरकार ने मिश्रा के आरोपों की जांच नहीं करवाई है.
डीडी मिश्रा फायर ब्रिगेड के डीआईजी हैं. जब चार साल से प्रमोशन ना मिलने का गुस्सा फूटा, तो उन्होंने फाइलों पर ही लिख डाला, मायावती सरकार महाभ्रष्ट है. इसके बाद दफ्तर में मीडिया को गया बुलाया. जब इस जमावड़े की खबर फैली तो सरकार में हड़कंप मच गया.
जो अन्ना समर्थक अफसर अपने दफ्तर में माया सरकार के खिलाफ आग उगल रहे थे, उसे सिर्फ इतना पता था कि इसका अंजाम क्या होने जा रहा है. डीआईजी के मुताबिक सरकार के घोटालों का खुलासा वो बहुत पहले ही कर सकते थे, लेकिन अन्ना हजारे के आंदोलन से प्रेरणा मिली तो माया सरकार की पोल खोलने की हिम्मत आ गई.
हालांकि अन्ना के इस समर्थक को न जेल भेजा गया, ना उसकी बातें सुनी गईं. पुलिस डीआईजी की दिमागी हालत की तहकीकात में जुट गई. डॉक्टर को बुलाया गया और पुलिस ने एलान कर दिया कि माया सरकार के खिलाफ उंगली उठाने वाले अफसर की दिमागी हालत ठीक नहीं है.
पुलिस का दावा है कि मायावती सरकार पर आरोप लगाने से पहले डीडी मिश्रा ने दफ्तर में खुद को बंद कर लिया था और परिवार वालों के मनाने पर भी घर लौटने को तैयार नहीं थे. यी ही वजह है कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा.
इसके बावजूद सवाल उठता है कि दफ्तर को घेरकर अधिकारी को जबरन अस्पताल पहुंचाना क्या जायज है? प्रशासन के इस कदम से क्या सरकार के इरादों पर सवाल नहीं उठते? क्या मिश्रा के आरोपों की जांच की कोई कोशिश हुई है? अगर वास्तव में मिश्रा की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, तो इसपर भी सरकार ने क्या कदम उठाए?
उनकी हालत ठीक कराने की कोशिश क्यों नहीं की गई? अगर मिश्रा की दिमागी हालत सही नहीं है तो वे लगातार सर्विस में कैसे बने हुए थे?