उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को ‘‘भारतीय राजनीति का भद्र पुरुष’’ बताते हुए कहा कि वे ‘‘सादगी और नि:स्वार्थता’’ की प्रतिमूर्ति थे.
प्रसाद की 47वीं जयंती पर अंसारी ने कहा, ‘‘प्रसाद की निजी जिंदगी की शैली और ईमानदारी उनकी महान संपत्ति थी और इसी कारण उन्हें भारतीय राजनीति का भद्र पुरुष कहा गया और गांधीजी ने उन्हें अजातशत्रु :जिसका कोई दुश्मन नहीं हो: कहा.’’ अंसारी ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि उनमें ‘‘जवाहरलाल नेहरू की तरह वाक्पटुता नहीं थी, वल्लभ भाई पटेल की तरह वास्तविकता को समझने की कला नहीं थी और राजगोपालाचारी की तरह वाद-विवाद की क्षमता नहीं थी’’ लेकिन महान विधिशास्त्री, एक महान विद्वान और मशहूर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण था. गणतंत्र के प्रारंभिक दिनों में लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रगाढ़ करने के लिए राष्ट्र उनका आभारी रहेगा.
अंसारी ने नवंबर 1949 में संविधान सभा में प्रसाद के संबोधन को याद किया. उन्होंने कहा था, ‘‘निर्वाचित लोग अगर सक्षम, चरित्रवान एवं ईमानदार हों तो वह गलत संविधान को भी अच्छा बनाने में सक्षम होंगे.’’ उन्होंने कहा था, ‘‘अगर उनमें इन चीजों की कमी हो तो संविधान से देश को सहयोग नहीं मिलेगा. यह हम पर है कि हम स्वतंत्रता की रक्षा करें और इसका लाभ आम आदमी को मिले.’’