राज्यसभा ने एक नया इतिहास रचते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ धन की हेराफेरी और कदाचार के आरोप में महाभियोग प्रस्ताव आवश्यक दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दिया.
माकपा सदस्य सीताराम येचुरी द्वारा पेश किये गये महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में 189 और विरोध में 17 मत पड़े. उच्च सदन में बहुजन समाज पार्टी के सदस्यों ने इस प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया.
उच्च सदन में न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ दो दिन तक चली महाभियोग कार्यवाही के दौरान उन्हें अपना पक्ष रखने के लिये कल राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी ने करीब दो घंटे का समय दिया था. न्यायमूर्ति सेन ने अपने खिलाफ सारे आरोपों को न न केवल खारिज किया, बल्कि भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ भी टीका-टिप्पणी की.
मार्क्सवादी येचुरी ने इस संबंध में सदन में दो प्रस्ताव पेश किये थे. उनमें से एक में आरोप था कि न्यायाधीश ने कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें रिसीवर नियुक्त किये जाने के बाद धन की हेराफेरी की और दूसरा उन्होंने तथ्यों को सही ढंग से पेश नहीं किया. प्रस्ताव में राष्ट्रपति से अनुरोध किया गया है कि वह न्यायमूर्ति सेन को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद से हटाये जाने का आदेश पारित करें.
उच्च न्यायपालिका के किसी भी न्यायाधीश को हटाने के लिये महाभियोग प्रस्ताव का संसद के समान सत्र में दोनों सदनों में पारित होना जरूरी है. अगर इसी सत्र में लोकसभा भी दो तिहाई बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित कर देती है तो न्यायमूर्ति सेन को पद से हटाने का रास्ता साफ हो जायेगा.
राज्यसभा द्वारा न्यायमूर्ति सेन को हटाये जाने संबंधी प्रस्ताव पारित कर देने के बाद अब यह प्रस्ताव अगले सप्ताह लोकसभा में पेश हो सकता है. निचले सदन द्वारा इस प्रस्ताव पर 24 और 25 अगस्त को चर्चा होने की संभावना है.
संसद के इतिहास में इससे पहले मई 1993 में लोकसभा में उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश वी. रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था लेकिन कांग्रेस सदस्यों द्वारा मतदान में भाग नहीं लेने के कारण वह गिर गया था. सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति पी. डी. दिनाकरन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिये भी राज्यसभा सभापति ने न्यायिक समिति का गठन किया था लेकिन महाभियोग कार्यवाही शुरू होने से पहले इस वर्ष 29 जुलाई को ही न्यायमूर्ति दिनाकरन ने इस्तीफा दे दिया.
राज्यसभा में न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को 58 सदस्यों ने अनुमोदित किया था. इसके बाद सभापति ने इसे स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी, न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल और प्रख्यात विधिवेत्ता फाली एस नरीमन की सदस्यता वाली जांच समिति का गठन किया. समिति ने अपनी रिपोर्ट में न्यायमूर्ति सेन को धन की हेराफेरी और कदाचार का दोषी पाया.
न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर उच्च सदन में हुई चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि न्यायमूर्ति सेन ने उच्च सदन को ‘गुमराह’ किया है. उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति सेन ने जानबूझकर जांच प्रक्रिया में सहयोग नहीं दिया.
उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि बेहतर योज्ञता और ईमानदारी वाले न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये राष्ट्रीय न्यायिक आयोग गठित किये जाने की जरूरत है.
क्या है महाभियोग?
महाभियोग का अर्थ अनाचार के लिए आरोपित किया जाना होता है. संविधान के अनुसार उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों व मुख्य न्यायाधीशों को तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों व प्रधान न्यायाधीश को अनाचार और अयोग्यता के आरोप साबित होने पर संसद के दोनों सदनों में एक प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है.
क्या है प्रक्रिया?
राज्यसभा का हर सदस्य न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर मतदान करेगा. राज्यसभा में महाभियोग की कार्यवाही का सामना करने वाले सेन दूसरे न्यायाधीश हैं. चूंकि सांसद जूरी के सदस्य के रूप में काम करेंगे, लिहाजा उन्हें व्हिप का सामना नहीं करना होगा.
महाभियोग प्रस्ताव तभी पारित होगा, जब कम से कम 50 प्रतिशत सांसद उपस्थित होंगे और उसमें से दो-तिहाई प्रस्ताव के पक्ष में वोट देंगे. यदि राज्यसभा में प्रस्ताव पारित हो गया, तो यह एक सप्ताह के भीतर लोकसभा में जाएगा.
क्या है जस्टिस सेन पर आरोप?
न्यायमूर्ति सेन पर 1990 के दशक में लगभग 24 लाख रुपये के गबन का आरोप है. उस समय वे वकील थे और कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उन्हें रिसीवर नियुक्त किया था.
महाभियोग के अन्य प्रस्ताव?
देश में महाभियोग की कार्यवाही का पहला मामला सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामास्वामी का था. उनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था लेकिन यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया था, क्योंकि सत्ताधारी कांग्रेस ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था. सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने उस समय लोकसभा में न्यायमूर्ति रामास्वामी का बचाव किया था.