दिल्ली पुलिस ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर उनके भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के दौरान रामलीला मैदान पर आधी रात को हुई कार्रवाई योगगुरु के आयोजन के ‘पूरी तरह गड़बड़ा जाने’ का नतीजा थी. पुलिस ने कहा कि कार्रवाई के लिये योगगुरु को ही ‘जिम्मेदारी’ लेनी चाहिये.
दिल्ली पुलिस ने आयोजन स्थल पर कानून व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने में गृह मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका को भी जायज ठहराते हुए कहा कि उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह ‘दुर्भावना’ रखते थे क्योंकि क्षमता से अधिक भीड़ जुट जाने के कारण वह निश्चित तौर पर ‘चिंतित’ थे और उनकी कार्रवाई ‘संवैधानिक तौर पर स्वीकार्य’ है.
पुलिस ने कहा, ‘अगर आपके पास रामलीला मैदान पर 50,000 की क्षमता है और संख्या एक लाख तक पहुंच जाये तो गृह मंत्री चिंतित होंगे ही और केंद्र सरकार से व्यवस्था बनाये रखने की अपेक्षा की जायेगी.’ दिल्ली पुलिस के वकील तथा वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ के समक्ष सवाल किया, ‘अगर दिल्ली पुलिस के आयुक्त गृह मंत्री तथा गृह सचिव से संपर्क में थे तो क्या यह बात बदनीयत भरी हो जाती है.’ उन्होंने कहा कि आयोजकों ने इस बारे में सही जानकारी नहीं दी कि आखिर किस तरह स्थिति अराजक हो गयी.
वरिष्ठ अधिवक्ता ने रामदेव और उनके समर्थकों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ‘जो कुछ हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण तथा अप्रिय था लेकिन इसके लिये कौन जिम्मेदार है.’साल्वे ने कहा, ‘रामदेव तथा उनके समर्थकों ने पूरी तरह अराजकता फैला दी थी. पुलिस ने रामदेव के पास जाकर कहा था कि वह ये कारण बतायें कि विरोध प्रदर्शन के लिये दी गयी अनुमति को आखिर क्यों न निरस्त कर दिया जाये और वह क्यों न अपना मौजूदा कार्यक्रम रोक दें.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन वे कूद गये और भागने लगे. रामदेव को जिम्मेदारी लेनी होगी. आयोजन स्थल पर मौजूद लोगों का गैर-जिम्मेदाराना बर्ताव ही आधी रात को हुई तथाकथित कार्रवाई के लिये जिम्मेदार था. पुलिस वहां लोगों को हटाने के लिये नहीं थी.’ दिल्ली पुलिस उच्चतम न्यायालय की 21 नवंबर की तीखी टिप्पणियों पर अपना पक्ष रख रही थी. शीर्ष अदालत ने दिल्ली पुलिस से पूछा था कि आखिर ऐसी क्या वजह थी कि वह पांच जून की सुबह तक इंतजार नहीं कर पायी.
साल्वे ने कहा कि उस घटना से पहले आयोजकों और सरकार के बीच काफी सद्भाव था, जो रामदेव द्वारा प्रधानमंत्री को दो या तीन जून को लिखे पत्र से झलकता है. उन्होंने दिल्ली पुलिस पर सवालिया निशान खड़े करने वाले आयोजकों पर ही प्रश्न उठाते हुए कहा कि उसी बल (दिल्ली पुलिस) को अन्ना हज़ारे पक्ष की ओर से सराहना मिली, जिसने (टीम अन्ना ने) विरोध प्रदर्शन के लिये उसी जगह (रामलीला मैदान) को चुना था.
साल्वे ने कहा, ‘रामदेव के आंदोलन के बाद अन्ना हज़ारे ने वहां विरोध प्रदर्शन किया. हज़ारे-पक्ष ने दिल्ली पुलिस को छोड़कर बाकी सभी की आलोचना की.’ दिल्ली पुलिस ने उन घटनाक्रमों और परिस्थितियों को स्पष्ट किया जिनकी वजह से चार और पांच जून की दरमियानी रात को रामलीला मैदान पर अत्यधिक बल प्रयोग और आंसू गैस के गोले दागने पड़े थे. उच्चतम न्यायालय ने छह जून को हुई पुलिस कार्रवाई पर स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र तथा दिल्ली पुलिस से यह स्पष्ट करने को कहा था कि उसने मध्यरात्रि को इस तरह की कार्रवाई क्यों की.
रामदेव के नेतृत्व वाले भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने आरोप लगाया था कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को कुचल देने की कोशिश के तहत मध्यरात्रि को कड़ी कार्रवाई की गयी. उन्होंने इस घटना की तुलना जर्मनी में नाजी शासन के समय के अत्याचारों से की और आरोप लगाया कि रामलीला मैदान की कड़ी कार्रवाई के लिये चिदंबरम जिम्मेदार हैं, जिसमें एक महिला की मौत हो गयी तथा कई अन्य घायल हो गये.
जेठमलानी ने कहा था, ‘क्या हम नाजी शासन की तानाशाही में जी रहे हैं कि बाबा रामदेव को उनका विरोध प्रदर्शन नहीं करने दिया जाता और दिल्ली में नहीं रूकने दिया जाता.’ दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में आरोपों का खंडन किया और दावा किया कि आंसू गैस के गोले तभी दागे गये जब रामदेव के समर्थक हिंसक हो गये और उन्होंने पुलिस पर पथराव किया.
अपनी कार्रवाई को जायज ठहराते हुए पुलिस ने कहा था कि प्रशासन ने रामदेव को योग शिविर चलाने के लिये ही रामलीला मैदान का इस्तेमाल करने की इजाजत दी थी. यह अनुमति किसी और उद्देश्य के लिये नहीं दी गयी थी.