अभी पिछले हफ्ते की ही बात है. दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में मीडिया वालों को इंटरव्यू देने के दौरान योग गुरु बाबा रामदेव को बीच में दो मिनट की मोहलत मिली तो उन्होंने जोर से अंगड़ाई ली. कैमरे वालों के फ्लैश एकाएक चमक उठे. बाबा ने मुस्कराकर शिकवा किया, ''आप लोग मुझे अंगड़ाई भी नहीं लेने देते. उसकी भी फोटो खींच लेते हो.''
इस घटना ने बहुत कुछ कह दिया. उनकी एक-एक भंगिमा आज की तारीख में जनमानस के लिए ही नहीं, पूरे सरकारी अमले के लिए जिज्ञासा का विषय बन गई है.
उन्होंने तीन बड़े मुद्दों-जिनके ब्यौरों में और बीसियों मुद्दे गुंथे हुए हैं-पर 4 जून को तड़के पांच बजे से दिल्ली के रामलीला मैदान पर आमरण अनशन का ऐलान कर दिया है. केंद्र सरकार की जान सांसत में है क्योंकि इन मांगों को मानने के लिए 'क्रांतिकारी' बदलाव करने होंगे. इसमें 400 लाख करोड़ रु. का काला धन वापस लाने और 100, 500 और 1,000 रु. के नोट चलन से हटाने जैसी भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर डालने वाली मांगें भी शामिल हैं, जो जनता की नब्ज को भी छू रही हैं.
राजस्थान में नागौर के छोटे-से कस्बे लादड़िया के एक चाय विक्रेता चैनाराम अब छोटे नोट ही मांगते हैं. ''मैं तो ग्राहकों से साफ कहता हूं कि भैया बड़े नोटों की जरूरत ही क्या है?'' दिल्ली आइआइटी से एमटेक और डीएनए की नैनो टेक्नॉलॉजी पर जर्मनी में शोध कर रहे बहराइच (उ.प्र.) के युवक अवधेश द्विवेदी बाबा और उनके बौद्धिक सहयोगी रहे राजीव दीक्षित के भाषण यूट्यूब पर सुन-सुनकर आंदोलित हुए और जल्द ही लौटकर अपने जिले में ही कुछ बड़ा स्वदेशी उपक्रम शुरू करने की योजना बना रहे हैं. गोवा हवाई अड्डे से पणजी के बीच टैक्सी चलाने वाले रोड्रिग्स की सुनिए, ''नेता लोग सब लूटकर खा गया. मैं यहां बाबा को सुना. वो जरूर कुछ करेगा, अइसा मेरे को लगता है.''
विभिन्न आयुवर्ग और तबकों में बाबा के विचारों के बढ़ते असर को देखकर ही सरकार घबराहट में है. उसी का नतीजा है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के मुखिया सुधीर चंद्र ने 20 मई को आधी रात के बाद देर तक चाणक्यपुरी में बाबा के एक ठिकाने पर उनके साथ बैठक की और सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों का ब्यौरा दिया.
प्रधानमंत्री कार्यालय के अलावा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी उनसे संपर्क में हैं. बताते हैं कि सरकार कृषि विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों और उच्च शिक्षा के दूसरे तकनीकी संस्थानों में हिंदी के अलावा दूसरी प्रमुख भारतीय भाषाओं में पढ़ाई शुरू करवाने को राजी हो गई, हालांकि सरकार की ओर से कोई घोषणा नहीं है. सरकार को अंदाजा है कि रोज 1 से 2 लाख लोगों से रू-ब-रू हो रहे रामदेव देश भर में भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के व्यवस्थित संगठन तंत्र के बूते अनशन को कहां तक ले जा सकते हैं.
पर अप्रैल में जन लोकपाल के मुद्दे को लेकर जंतर-मंतर पर समाजसेवी अण्णा हजारे के अनशन के बाद बाबा का यह समानांतर अनशन क्यों? असल में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पिछले साल 14 नवंबर को संसद मार्ग और फिर 4 मार्च को रामलीला मैदान पर रैली ट्रस्ट की अगुआई में हुई, जिसमें अण्णा के अलावा किरण बेदी, सूचना के अधिकार आंदोलन के अरविंद केजरीवाल और दूसरे कई प्रमुख लोग शामिल हुए.
इसके बाद अण्णा ने 5 अप्रैल को अनशन पर बैठने का ऐलान कर दिया. यहीं मतभेद पैदा हो गए. हरिद्वार में राम नवमी के विशेष आयोजन में बाबा की व्यस्तता के नाते अण्णा को (12 अप्रैलः राम नवमी तक) एक हफ्ता रुकने को कहा गया. सूत्रों के मुताबिक, जवाब आया कि बाबा बाद में आ जाएं.
खैर, बाबा साफ करते हैं, ''मतभेदों पर हम अभी बात नहीं करना चाहते. अण्णा जी हमारे साथ आएंगे.'' 11 मई को अपने अहमदनगर प्रवास के दौरान बाबा अण्णा से मिलने उनके गांव रालेगण सिद्धि भी गए. करीब घंटे भर की बातचीत में उन्होंने उनसे अपने अनशन में शरीक होने का आग्रह किया. बताते हैं, अण्णा ने कोई हामी नहीं भरी. दक्षिण भारत के प्रवास के क्रम में 4 जून को अण्णा कोच्चि में हैं और करीबी सूत्रों के मुताबिक इन निर्धारित कार्यक्रमों के टलने की संभावना नहीं.
क्या यह व्यक्तित्व की टकराहट है? अण्णा के करीबियों में शुमार केजरीवाल कहते हैं, ''रामदेव जी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी रहे हैं. हम निरंतर उनके संपर्क में और पूरी तरह उनके साथ हैं.'' हालांकि अनशन में केजरीवाल भी शामिल नहीं होंगे. दूरियों की वजह क्या है? दोनों की बातचीत में अण्णा ने रामदेव से कहा बताते हैं कि उन्हें अनशन के लिए कोई स्पष्ट मांग रखनी चाहिए, जैसे कि अण्णा ने जन-लोकपाल विधेयक की रखी. अण्णा के करीबियों की मानें तो बाबा की मांगें स्पष्ट नहीं, न ही वे समस्याओं के समाधान के उपाय सुझती हैं.
जो भी हो, इन दो योद्धाओं के जिहाद को मिल रहे जनसमर्थन का ही असर है कि मोटी चमड़ी वाली सरकारी मशीनरी, जिस पर जनहित से जुड़ी छोटी-मोटी मांगों का कोई असर नहीं पड़ता, अब हरकत में है. भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन मंजूर करने को सरकार विवश हुई है.
बाबा पिछले नौ महीने से सफर पर हैं. पिछले साल दो सितंबर को द्वारका से शुरू उनकी यात्रा अपने पहले चरण के एक लाख किमी पूरे करने वाली है. खास तौर पर ग्रामीण भारत पर केंद्रित इस यात्रा से दूरदराज तक के जनमानस की थाह लेने और उन तक अपनी बात पहुंचाने में उन्हें मदद मिली है. सुबह तीन बजे से आधी रात तक वे खटते रहे हैं.
दो दर्जन चैनलों पर रोज कुल करीब 24 घंटे योग के उनके कार्यक्रमों का प्रसारण होता है. उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण की देखरेख में ट्रस्ट और पतंजलि योग समिति के कुल 21 संगठनों के 600 जिलों में खूब सदस्य बनाए गए हैं. दावा है कि, यह संख्या दस करोड़ तक है. देशभर में योग की रोज एक लाख कक्षाएं चलती हैं, जिनमें 50 लाख से ऊपर लोग आते हैं. बिहार जैसे कम असर वाले प्रदेश में भी 8,732 कक्षाएं लगती हैं.
देश भर में 2,000 पतंजलि आयुर्वेद अस्पतालों कव् जरिए रोज 50,000 लोगों को मुफ्त चिकित्सा परामर्श मुहैया कराए जाने का भी दावा है. देश भर से 200 उच्च शिक्षित युवा जीवनव्रती के रूप में बाबा के आंदोलन से आ जुटे हैं (देखें बॉक्स). रामदेव और बालकृष्ण के गुरु रहे स्वामी प्रद्युम्न उन्हें चाणक्य नीति और तमाम भारतीय दर्शन पढ़ाकर तैयार कर रहे हैं. इसी तरह 200 गृहस्थ भी वानप्रस्थी योजना के तहत पूरे समय के लिए आए हैं.
उनके दूसरे प्रयासों का भी फल दिख रहा है. केंद्र के आयुर्वेद-योग-प्राकृतिक चिकित्सा-यूनानी-सिद्ध और होम्योपैथीविभाग ने अपनीदवाओं की खूबियां प्रचारित करने के लिए अभियान चलाया है तो यह कुछ हद तक रामदेव के योग-आयुर्वेद अभियान का भी नतीजा है.
जयपुर स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के डॉ. असित पांजा मानते हैं कि ''बाबा रामदेव के बार-बार आग्रह के बाद देश में लोग खासकर औषधीय पौधों के उपयोग पर ध्यान देने लगे हैं.'' अब आयुर्वेद अपने प्रति दोयम दर्जे के बर्ताव से उबर रहा है.
भोपाल के शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय से बीएएमएस करने के बाद नाज एडवांस आयुर्वेद सेंटर चला रहे डॉ. अबरार मुल्तानी की सुनिए, ''छह साल पहले हमने कॉलेज में दाखिला लिया था तब आयुर्वेद को लेकर आम आदमी में ऐसी जागरूकता नहीं थी. पढ़ाई के बाद सरकारी नौकरी का ही विकल्प था. अब आयुर्वेद सेंटर खोलना बड़ी चुनौती नहीं.
सरकारी अस्पतालों में भी आयुर्वेद डॉक्टरों की भर्तियां बढ़ी हैं.'' उज्जैन जैसे 5 लाख की आबादी वाले शहर में अकेले पतंजलि आरोग्य केंद्रों के जरिए ही साल में सवा करोड़ से ज्यादा की बिक्री हो रही है. हालांकि आयुर्वेद में गहन अनुसंधान की दरकार अब भी है.
''इस देश के 84 करोड़ लोग तो सुदामा का ही जीवन जी रहे हैं और हमारे पैसे पर बड़े मुल्क ऐश कर रहे हैं.'' बाबा के इस तरह के बयान सीधे तौर पर लोगों को प्रभावित कर रहे हैं.'' 2011 के अंत तक देश के हर गांव में योग समितियां बना लिए जाने का दावा है. इस तरह तेजी से बढ़ते एक आंदोलन के लिए 4 जून की तारीख अपने अगुआ के असर की परीक्षा की तारीख बन गई है. पूरा संगठन कई अंदेशों को ध्यान में रखते हुए तैयारियों में जुटा है.
50,000 लोगों को उत्तराखंड से और 75,000 लोगों को उत्तर प्रदेश से ही लाने की योजना है. ट्रस्ट के दिल्ली के प्रभारी पवन कुमार कहते हैं, ''जगह कम पड़ी तो लोग सड़कों पर लेटेंगे.'' इस आंदोलन से आध्यात्मिक समाजवाद का पहलू भी जुड़ा है. यह वेदांत, गांधीवाद, सर्वोदय और स्वदेशी आदर्शवाद का एक कॉकटेल है, जिसके बारे में बाबा के जीवनीकार आइआइटी (दिल्ली) से पढ़े अशोक राज ने लाइफ ऐंड टाइम्स ऑव बाबा रामदेव में तफसील से जिक्र किया है. आंदोलन के साथ उसका भी भविष्य जुड़ा है.
एक बात और. अण्णा और रामदेव सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार पर हमले कर रहे हैं, दूसरी ओर निजीकरण के बाद भ्रष्टाचार के ऐसे तरीके ईजाद हुए हैं जिन पर इन दोनों की नजर कम गई है.
केंद्रीय जांच ब्यूरो में संयुक्त निदेशक पद से हाल ही हटे एक अधिकारी, जो भ्रष्टाचार के कई मामलों की पड़ताल से जुड़े रहे हैं, कहते हैं, ''निजीकरण के बाद सरकारी क्षेत्र से बाहर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला है. तमामनिजी शिक्षण संस्थाओं में मामूली रकम चेक से लेने के बाद अधिकांश नकद ली जाती है और उसकी रसीद भी नहीं दी जाती. काले धन के प्रवाह के लिए जिम्मेदार ऐसे ब'तेरे लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियानों में सक्रियता से जुड़ते हैं और राजनीति में भी सक्रिय हैं.''
खैर, अनशन की तैयारियों को देखते हुए सवाल उठता है कि बाबा का भावी एजेंडा क्या है. महीने भर पहले तक वे जून, 2011 में एक राजनैतिक ढांचे को अंतिम रूप देने की बात करते आ रहे थे. पर अब अपरिहार्य कारणों से पीछे हट गए हैं. शायद इल्हाम हुआ हो कि राजनीति में कूदने की योजना को जितना प्रचारित करेंगे, सियासी तबका उन पर उतना ही धावा बोलेगा.
उनके एक करीबी कहते भी हैं, ''बाबा को अब राजनैतिक लोगों से सावधान रहने की जरूरत है.'' उन्होंने सबसे ज्यादा खतरा भाजपा और आरएसएस के लिए पैदा किया है, जिसके कथित शुद्ध भारतीय दर्शन के एजेंडे को ही उन्होंने हाइजैक कर लिया है. आरएसएस की मार्च में पुत्तूर (कर्नाटक) में हुई प्रतिनिधि सभा की बैठक में साफ तौर पर यह कहा गया कि व्यवस्था परिवर्तन के मुद्दे पर संगठन बाबा के साथ है पर राजनीति में कोई साझेदारी नहीं होगी.
अब देखना है कि 64 साल के घुटे हुए नेता-नौकरशाह तंत्र को योग गुरु किस हद तक झुकाकर कोई ठोस वादा ले पाते हैं. विदेशों में जमा भारतीयों का मोटा काला धन बाबा की कोशिशों से लौटने की शुरुआत होती है तो हिंदुस्तान का कुंडलिनी जागरण अपने आप होने लगेगा. नहीं तो भ्रष्टाचार की कुंडली सारी शक्ति मूलाधार में जकड़े रहेगी. तब शायद बाबा के लिए यही कहने को बचेगा, ''गोल-गोल घुमाओ और गोल-गोल घूमो.''
-साथ में पीयूष बबेले, सीता पांडे, विजय महर्षि, अशोक प्रियदर्शी और महेश शर्मा