टीम अन्ना की सदस्य किरण बेदी ने लोकपाल पर सरकार की मंशा पर शक जाहिर करते हुए कहा कि लोकपाल विधेयक पर संसद की स्थाई समिति की सिफारिशें लोकपाल को सिर्फ जांच पाल बनाने का काम करेंगी जिसके पास कोई शक्ति नहीं होगी.
बेदी ने कहा कि अन्ना हजारे और उनके समर्थकों ने इस तरह के भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र के लिए तो लड़ाई नहीं लड़ी थी.
बेदी ने कहा, ‘लोकपाल विधेयक पर स्थाई समिति की रिपोर्ट अत्यंत निराशाजनक है. लोकपाल को जांच पाल बनाया जा रहा है.’ यह तर्क देते हुए कि उन्होंने ‘एक और सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयोग)’ के लिए तो आंदोलन नहीं किया था जिसके पास कोई शक्ति नहीं हो बेदी ने कहा, ‘सीबीआई के बिना लोकपाल एक जांच पाल होगा. रिपोर्ट के अनुसार सीबीआई मुख्य खानसामा होगा, जो पकाने (जांच) का काम करेगा और लोकपाल वह पदाधिकारी (अभियोजन) होगा, जो पके हुए को परोसेगा.’
उन्होंने कहा, ‘सीबीआई असहाय है. इसे स्वतंत्र करने की जरूरत है. इसके वर्तमान स्वरूप को सहायता की आवश्यकता है. सरकार सीबीआई को ढील क्यों नहीं दे रही? सरकार को सीबीआई का नियंत्रण खोने का डर है.’
बेदी ने कहा कि गेंद अब विपक्ष और हमारे भी पाले में है. उन्होंने कहा, ‘क्या हमें इस दासता को जारी रहने देना चाहिए? या परविर्तन के लिए संघर्ष करना चाहिए? मैं प्रार्थना करती हूं कि विपक्ष सीबीआई की भ्रष्टाचार विरोधी इकाई को लोकपाल के दायरे में लाने के लिए एकजुट हो.’ अगली कार्रवाई से संबंधित कदम के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हजारे पहले ही आंदोलन शुरू करने की घोषणा कर चुके हैं.
संसद के लगातार ठप होने के संदर्भ में बेदी ने कहा कि जरूरत पड़ने पर सरकार को लोकपाल विधेयक पारित करने के लिए एक विशेष सत्र बुलाना चाहिए. टीम अन्ना जोर दे रही है कि विधेयक संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में पारित होना चाहिए.
स्थाई समिति ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में शामिल करने के मुद्दे पर अपने सदस्यों में गहरे मतभेदों के बीच लोकपाल विधेयक पर विचार विमर्श पूरा कर लिया है.
आईपीएस अधिकारियों को एक खुले पत्र में बेदी ने कहा, ‘आईपीएस अधिकारियों को सीबीआई को स्वतंत्र किए जाने के लिए खड़ा होना चाहिए. अभी एक अवसर है. यह अभी होगा या फिर भगवान जानता है कि कब होगा?’
उन्होंने कहा कि स्थाई समिति की रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि सीबीआई सरकार के साथ रहेगी और लोकपाल आरोपियों के लिए सभी सुरक्षा उपायों के साथ मात्र एक प्रारंभिक जांच एजेंसी होगा, जिसके बाद यह मामले को जांच के लिए सीबीआई को सौंप देगा. यह सीबीआई को असहाय करता है.
बेदी ने कहा, ‘मित्रो कृपया समझिए यदि सीबीआई खुद को राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त रखना चाहती है और लोकपाल के बराबर सदस्य बनना चाहती है तो आज यह सीबीआई के लिए लोकपाल का हिस्सा होने का मौका है.’
टीम के एक दूसरे सदस्य मनीष सिसौदिया ने कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर करने के पीछे का कारण उनकी समझ में नहीं आया.
उन्होंने कहा, ‘आप कहना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री के पद पर रहते उनके भ्रष्टाचार के बारे में कोई नहीं बोल सकता. पद छोड़ने के बाद के नियम का क्या मतलब है? इसलिए यदि एक प्रधानमंत्री सत्ता में लौटता है तो आप प्रधानमंत्री को नहीं छू सकते.’