अनिल अंबानी की रिलायंस इंफोकॉम ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में इन आरोपों को खारिज किया कि उसने समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह का फोन गैर-कानूनी तरीके से टेप किया था. कंपनी ने दावा किया कि उसे सरकारी एजेंसियों ने इस काम के लिये अधिकृत किया था.
शीर्ष न्यायालय ने कंपनी की खिंचाई की थी क्योंकि उसने एक ऐसे अधिकृत करने वाले पत्र के जरिये सिंह के फोन की टेपिंग की जिसमें तमाम त्रुटियां थीं. कंपनी ने कहा कि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उसे भेजा गया पत्र फर्जी था क्योंकि पूर्व में उसे भेजे गये पत्रों में भी इसी तरह की त्रुटियां थी जबकि पूर्व में भेजे गये सभी पत्र असली थे.
इस सिलसिले में एक हलफनामा दाखिल करने वाली रिलायंस इंफोकाम ने कहा कि सेवा प्रदाता को अनुरोध पर तुरंत कार्रवाई करनी पड़ती है. यदि हिज्जों की त्रुटियों के कारण अनुरोध का पालन नहीं किया जाता तो आतंकवादी हमले के गंभीर खतरे की आशंका भी खड़ी हो सकती है. {mospagebreak}
न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की पीठ के सामने पेश अपने हलफनामे में रिलायंस इंफोकॉम ने कहा कि उसने अधिकृत करने संबंधी पत्र के सिलसिले में दिल्ली पुलिस के संयुक्त आयुक्त और राष्ट्रीय राजधानी सरकार के गृह सचिव के निर्देशों पर प्रामाणिक ढंग से काम किया. पत्र के बारे में आरोप लगाया जा रहा है कि यह फर्जी था.
रिलायंस इंफोकॉम की यह प्रतिक्रिया तब आयी है जब अमर सिंह का फोन टेप किए जाने के मामले में न्यायालय ने पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान कंपनी की खिंचाई की थी. उच्चतम न्यायालय के सवालों का जवाब देते हुए कंपनी ने कहा कि यह मानने का कोई कारण नहीं था कि अधिकारियों द्वारा उसके पास भेजा गया पत्र फर्जी था क्योंकि पूर्व के पत्रों में भी समान प्रकार की त्रुटियां थी. वे पत्र असली थे.
कंपनी ने कहा, ‘मैं इस न्यायालय के समक्ष नमूने के तौर पर कुछ दस्तावेज पेश कर रही हूं जिसमें कंपनी को भेजे गये पत्रों में हिज्जे की गलतियां और अन्य त्रुटियां हैं.’ कंपनी ने कहा कि इन्हीं पत्रों के आधार पर उसने पूर्व में विभिन्न लोगों के फोन टेप किये हैं. {mospagebreak}
हलफनामे में कहा गया, ‘बातचीत को बीच में सुनने का अनुरोध जब प्राप्त होता है तो सेवा प्रदाता को उस पर तुरंत अमल करना पड़ता है. ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि वह इस तरह के अनुरोधों को नामंजूर कर दे.’ कंपनी ने कहा, ‘हिज्जों की गलती जैसी महत्वहीन त्रुटियों के कारण निर्देशों का पालन नहीं करने से गंभीर आतंकवादी हमले जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है और उसका दोष हम पर आ जायेगा.’
रिलायंस इंफोकाम ने उच्चतम न्यायालय में इस मामले में अपने बचाव के लिए प्रख्यात फौजदारी वकील राम जेठमलानी को रखा है. न्यायालय ने पिछली सुनवाई में सरकार को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया था कि उसने एक फर्जी दस्तावेज के आधार पर फोन टेपिंग करने वाली कंपनी का लाइसेंस क्यों नहीं रद्द किया.
पीठ ने कहा, ‘यह पत्र वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, गृह सचिव की ओर से भेजे गये. पत्र के पूरे ब्यौरे की जन सुरक्षा के लिए लिहाजा से समीक्षा की जानी चाहिए थी. यह बेहद गंभीर मामला है. इस तरह के आदेश पर सेवा प्रदाता को काम करना चाहिए था. इस देश के नागरिकों की कोई सुरक्षा नहीं है. उनकी बातें विवेकहीन सेवा प्रदाताओं द्वारा बीच में सुनी जाती हैं.’ {mospagebreak}
रिलायंस इंफोकाम ने 22 अक्तूबर से 21 दिसंबर 2005 के बीच अमर सिंह के टेलीफोन की टैपिंग की थी. कंपनी ने यह टैपिंग ‘अधिकृत अधिकारियों’ के दो पत्रों के आधार पर की थी. इस पत्र में व्याकरण संबंधी कई त्रुटियां थीं. बाद में पाया गया कि अधिकारियों के हस्ताक्षर फर्जी थे. कंपनी ने अमर सिंह की फोन टैपिंग के सिलसिले में कहा कि उसने ‘पूरी ईमानदारी, सतर्कता और सावधानी से काम किया.’