देश की प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने सलमान रश्दी का प्रस्तावित भारत दौरा रद्द होने को लोकतंत्र की जीत करार देते हुए कहा है कि सरकार को इस विवादास्पद लेखक के यहां आने पर हमेशा के लिए पाबंदी लगानी चाहिए.
संस्था के कुलपति (मुहतमिम) मौलाना अबुल कासिम नोमानी ने कहा, ‘सलमान रश्दी का भारत नहीं आने का फैसला संतोषजनक है. यह मुल्क के लिए बेहतर है, लेकिन हम चाहते हैं कि जिसने करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, उस इंसान को हिंदुस्तान की सरजमीं पर कभी भी कदम नहीं रखने दिया जाए.’
नोमानी ने कहा, ‘रश्दी का दौरा रद्द होना लोकतंत्र और दारुल उलूम सहित सभी मुस्लिम संगठनों की जीत है.’
उन्होंने कहा, ‘हम सरकार से मांग करते हैं कि इस लेखक के भारत आने पर हमेशा के लिए पाबंदी लगाई जाए क्योंकि ऐसे लोग समाज और मुल्क के लिए ठीक नहीं हैं.’
रश्दी को जयपुर साहित्य महोत्सव में शामिल होना था. दारुल उलूम ने पिछले दिनों भारत सरकार से रश्दी को यहां नही आने देने की मांग की थी. इसके बाद रश्दी की इस यात्रा ने बड़े विवाद का रूप ले लिया था.
लेखक सलमान रश्दी ने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर भारत नहीं आने की घोषणा की. वर्ष 1988 में प्रकाशित अपने उपन्यास ‘द सैटनिक वर्सेज’ के बाद रश्दी अचानक सुखिर्यों और विवाद में आए थे. यह उपन्यास भारत में प्रतिबंधित है. इस पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने 14 फरवरी, 1989 को रश्दी के खिलाफ फतवा जारी किया था.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने रश्दी के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि बेहतर होता कि राजस्थान सरकार अपनी ओर से लेखक को भारत आने से मना करती.
मदनी ने कहा, ‘हम इसका स्वागत करते हैं कि रश्दी भारत नहीं आ रहे हैं. हमें राजस्थान सरकार के रवैये पर अफसोस है. उसने लोगों की मांग पर संजीदगी से अमल नहीं किया. उसे खुद साफ लफ्जों में रश्दी को भारत आने से मना करना चाहिए था.’
उधर, जमीयत की राजस्थान इकाई ने रश्दी की प्रस्तावित यात्रा को लेकर विरोध प्रदर्शन के अपने तय कार्यक्रमों को रद्द कर दिया है.