उच्चतम न्यायालय उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला निरस्त करने के शीर्ष अदालत के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिका पर अब खुली अदालत में सुनवाई करेगा.
न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने पुनर्विचार याचिका नौ अक्टूबर को न्यायालय में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है.
सामान्यतया, न्यायालय के किसी भी निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिका न्यायाधीशों के चैंबर में ही विचारार्थ सूचीबद्ध होती हैं और इस कार्यवाही में वकीलों को भी उपस्थित रहने की अनुमति नहीं होती है.
मायावती के मामले में उच्चतम न्यायालय के छह जुलाई के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए उत्तर प्रदेश निवासी कमलेश वर्मा ने यह याचिका दायर की है. कमलेश वर्मा ने मूल मामले में एक पक्ष बनने के लिए हस्तक्षेप किया था.
कमलेश वर्मा ने पुनर्विचार याचिका में कहा था कि सिर्फ लोकसेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को तकनीकी आधार पर निबटाया नहीं जा सकता है. लोक नीति की आवश्यकता है कि यदि जांच में कोई तकनीकी त्रुटि हो तो भी उसे मायावती के खिलाफ जांच एजेंसी द्वारा एकत्र ढेर सारे साक्ष्यों पर तवज्जो नहीं दी जा सकती है.
न्यायालय ने मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप में दर्ज नौ साल पुराना मामला रद्द करते हुए जांच ब्यूरो की खिंचाई की थी. न्यायालय ने कहा था कि जांच एजेंसी ने उचित निर्देश के बगैर ही प्राथमिकी दर्ज करके अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया था.
न्यायालय ने कहा था कि मायावती के खिलाफ यह मामला अनावश्यक था और जांच एजेंसी ने न्यायिक आदेशों को सही तरीके से समझे बगैर ही उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी थी. न्यायालय ने यह भी कहा था कि ताज गलियारा प्रकरण से संबंधित आदेश उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बगैर मंजूरी के 17 करोड़ रुपए के भुगतान के मामले तक ही सीमित था.