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उच्चतम न्यायालय ने उठाए थॉमस की नियुक्ति पर सवाल

उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्रीय सर्तकता आयुक्त (सीवीसी) के पद पर पी जे थॉमस की नियुक्ति पर सवाल उठाए. न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार का मामला लंबित होने के बावजूद थॉमस पद पर कैसे बने रह सकते हैं? हालांकि, उच्चतम न्यायालय के सवालों पर केंद्र सरकार ने कहा कि यदि दोष-रहित निष्ठा योग्यता का एक मानदंड है तो सभी न्यायिक एवं संवैधानिक नियुक्तियां जांच के दायरे में होंगी.

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उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्रीय सर्तकता आयुक्त (सीवीसी) के पद पर पी जे थॉमस की नियुक्ति पर सवाल उठाए. न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार का मामला लंबित होने के बावजूद थॉमस पद पर कैसे बने रह सकते हैं? हालांकि, उच्चतम न्यायालय के सवालों पर केंद्र सरकार ने कहा कि यदि दोष-रहित निष्ठा योग्यता का एक मानदंड है तो सभी न्यायिक एवं संवैधानिक नियुक्तियां जांच के दायरे में होंगी.

मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने यह भी कहा कि सीवीसी के तौर पर थॉमस अपने खिलाफ आपराधिक मामला लंबित होने के कारण खुद ही हर मामले में उस वक्त शर्मिंदा महसूस करेंगे जब सीबीआई उनसे विचार-विमर्श करेगी.

एटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवती की ओर से एक सीलबंद कवर में थॉमस की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज सौंपे जाने के बाद न्यायालय ने कहा ‘फाइल देखे बिना ही हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि एक आपराधिक मामले में आरोपित व्यक्ति सीवीसी के तौर पर कैसे काम करेगा.’ पीठ ने कहा कि वह फाइल देखेगी और मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते के बाद करेगी.

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न्यायाधीश न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और स्वतंत्र कुमार की सदस्यता वाली पीठ ने कहा ‘हम एक साथ बैठेंगे और पूरी फाइल देखेंगे.

पामोलिन निर्यात से संबंधित एक मामले में थॉमस का नाम आरोप पत्र में है. शीर्ष अदालत की पीठ ने अपने समक्ष फाइल रखे जाने के बाद कहा कि वह जानना चाहेगी कि क्या योग्यता के मापदंडों का पालन किया गया.

पीठ ने अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती से कहा कि जब थॉमस का नाम किसी आरोप पत्र में है तो वह कैसे कार्य कर पाएंगे यह मुद्दा हर समय उठेगा.

वाहनवती ने स्पष्ट करना चाहा कि पामोलिन निर्यात मामले में थॉमस की कोई संलिप्तता नहीं है और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है.{mospagebreak}

पीठ ने हालांकि कहा ‘ऐसा हो सकता है कि हर समय यह कहा जाए कि सीवीसी के रूप में आप कोई फाइल आगे नहीं बढ़ा सकते क्योंकि आप एक आपराधिक मामले में आरोपी हैं. आप सीवीसी के रूप में कैसे काम करेंगे?’ न्यायालय की पीठ ने कहा ‘हर मामले में सीबीआई को उसे (सीवीसी को) रिपोर्ट करनी होती है.’

पीठ ने कहा ‘सेवा शर्त के तहत यहां तक कि किसी ऐसे व्यक्ति के नाम पर पदोन्नति के लिए विचार नहीं किया जा सकता जिसके खिलाफ आरोप पत्र लंबित हो.’ इसने कहा ‘‘इस चरण में उनके खिलाफ 2002 से आरोप पत्र लंबित है उनके नाम पर पदोन्नति के लिए भी विचार नहीं किया जा सकता. हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि क्या वह सीवीसी के रूप में कार्य करने में सक्षम होंगे. यह खुद भी उनके लिए शर्मिन्दगी की बात होगी.’ न्यायालय ने कहा ‘‘क्योंकि यह मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है हम अपना आदेश इसी आधार पर देंगे.’ पीठ ने स्पष्ट किया कि यह मामले की गुणवत्ता नहीं बल्कि सिर्फ यह जानना चाहती है कि क्या सीवीसी के रूप में थॉमस की नियुक्ति के समय योग्यता मापदंडों सहित समूची प्रक्रिया का पालन किया गया.

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यह उल्लेख करते हुए कि समूची प्रक्रिया का पालन किया गया वाहनवती ने न्यायालय से कहा कि यदि इस तरह के आरोपों पर विचार किया गया तो प्रत्येक न्यायिक नियुक्ति निगरानी के दायरे में आ सकती है.

पीठ ने कहा कि पामोलिन मामला सीवीसी की राज्य इकाई द्वारा संचालित किया गया और थॉमस केंद्रीय संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं.{mospagebreak}

अटार्नी जनरल ने कहा कि याचिका दायर करने वाले जे एम लिंगदोह ने खुद ही थॉमस की वाषिर्क गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) तैयार की थी और उसमें उन्होंने थॉमस की निष्ठा को संदेह से परे बताया था.

सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन और कॉमन कॉज द्वारा दायर याचिका में लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए वाहनवती ने कहा कि याचिका में दिए गए बयान सही नहीं हैं. याचिका में थॉमस की सीवीसी के रूप में नियुक्ति पर सवाल उठाए गए हैं.

इससे पूर्व शीर्ष अदालत ने यह कहकर थॉमस की नियुक्ति से संबंधित फाइल का निरीक्षण करने का फैसला किया कि वह जानना चाहती है कि क्या योग्यता मापदंडों का पालन किया गया. थॉमस का नाम कथित रूप से 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को ढकने में भी शामिल है.

पीठ ने कहा कि वह यह भी जानना चाहेगी कि क्या सलाह मशविरा प्रक्रिया का पालन किया गया.

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याचिका में तर्क दिया गया कि नेता विपक्ष की ओर से आपत्ति उठाए जाने के बावजूद महत्वपूर्ण पद के लिए थॉमस के नाम पर विचार किया गया . याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि थॉमस को ‘त्रुटिहीन सत्यनिष्ठ’ व्यक्ति नहीं माना जा सकता क्योंकि पामोलिन निर्यात मामले में उनका नाम आरोप पत्र में उस समय आया जब वह राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय में सचिव थे और उन्हें एक स्थानीय अदालत से जमानत मिली थी.

जनहित याचिका में कहा गया कि ‘हितों के टकराव’ को देखते हुए थॉमस को सीवीसी के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि हाल ही में वह दूरसंचार मंत्रालय में सचिव के रूप में काम कर रहे थे और उन पर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे जिसमें याचिकाकर्ताओं के अनुसार राजकोष को 70 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.{mospagebreak}

याचिका दायर करने वाले संगठनों ने न्यायालय से यह निर्देश देने का आग्रह किया कि थॉमस की नियुक्ति इस आधार पर अवैध है कि इसमें कथित तौर पर केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम की धारा चार का उल्लंघन हुआ क्योंकि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने नेता विपक्ष की आपत्ति के बावजूद थॉमस के नाम पर जोर दिया जिससे पता चलता है कि सरकार पहले ही उनके नाम पर फैसला कर चुकी थी.

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याचिका में आरोप लगाया गया ‘प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने नेता विपक्ष की ओर से आपत्ति उठाए जाने के बावजूद थॉमस के नाम की सिफारिश की. इसलिए नेता विपक्ष अपनी असहमति दर्ज कराने के लिए विवश हुईं. इसलिए नियुक्ति में उनकी मौजूदगी व्यर्थ हो गई.’ इसमें आगे कहा गया ‘जब देश की सर्वोच्च अदालत (उच्चतम न्यायालय) और संसद ने यह व्यवस्था कर दी कि सीवीसी की नियुक्ति तीन सदस्यीय समिति द्वारा की जाएगी जिसमें नेता विपक्ष भी शामिल हों तो यह स्पष्ट है कि समिति एकमत या आम सहमति से फैसला करेगी. यह कहीं नहीं कहा गया कि समिति बहुमत से फैसला करेगी.’

याचिका में कहा गया ‘अगर ऐसे ही होता है तो नेता विपक्ष की मौजूदगी व्यर्थ हो जाएगी और हमेशा प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री की ही चलेगी और नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति सरकार द्वारा नामांकित होगा. इसलिए जिस तरह थॉमस की नियुक्ति हुई वह अवैध है और यह कानून के अनुरूप नहीं है.’

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