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अरुणा मामले में दया-मृत्यु याचिका खारिज

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में एक 60 वर्षीया नर्स की ओर से इच्छामृत्यु के लिए दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया. यह नर्स मुम्बई के एक अस्पताल में बर्बरतापूर्ण दुराचार के बाद 37 साल से बेहोशी की हालत में है.

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उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में एक 60 वर्षीया नर्स की ओर से इच्छामृत्यु के लिए दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया. यह नर्स मुम्बई के एक अस्पताल में बर्बरतापूर्ण दुराचार के बाद 37 साल से बेहोशी की हालत में है.

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न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने केईएम अस्पताल की नर्स अरुणा रामचंद्र शानबाग की ओर से दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हालांकि ‘एक्टिव यूथेंसिया’ (ऐसी इच्छामृत्यु, जिसमें रोगी का जीवन कोई इंजेक्शन इत्यादि देकर खत्म किया जाए) अवैध है ‘‘फिर भी असाधारण परिस्थितियों में ‘पैसिव यूथेंसिया’ (ऐसी इच्छामृत्यु, जब रोगी का इलाज बंद कर दिया जाए या उसे जीवनरक्षक उपकरणों से हटा लिया जाए) की इजाजत दी जा सकती है.’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि अरुणा के मामले में तथ्य और परिस्थितियां चिकित्सा साक्ष्य तथा अन्य सामग्री से पता चलता है कि पीड़ित को इच्छामृत्यु दिए जाने की जरूरत नहीं है.

पीठ ने हालांकि कहा कि क्योंकि वर्तमान में देश में इच्छामृत्यु पर कोई कोई कानून नहीं है, लेकिन मरणासन्न हालत वाले रोगी को ‘‘असाधारण मामलों में पैसिव यूथेंसिया दिया जा सकता है.’’ पीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक संसद कानून नहीं बनाती, तब तक इसका फैसला इच्छामृत्यु के दोनों तरीकों (एक्टिव और पैसिव यूथेंसिया) पर लागू रहेगा.{mospagebreak}

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अब 60 साल की हो चुकी अरुणा पर मुम्बई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में 27 नवम्बर 1973 को अस्पताल के ही एक कर्मचारी ने बर्बर तरीके से हमला किया था. अरुणा को इच्छामृत्यु देने के लिए लेखिका पिंकी विरानी ने याचिका दायर की थी. उन्होंने न्यायालय को बताया कि अस्पताल के एक सफाईकर्मी ने अरुणा की गर्दन में कुत्ते की चेन लपेटकर इसे झटक दिया, जिससे वह कोमा में चली गई.

याचिका के अनुसार इस कर्मचारी ने पीड़ित से बलात्कार करने की कोशिश की, लेकिन यह जानने के बाद कि वह मासिक धर्म से है, उसने नर्स के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म किया. अरुणा विरोध नहीं कर पाए, इसलिए आरोपी ने उसकी गर्दन से चेन लपेटकर उसे झटक दिया. जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद वह मौके से फरार हो गया.

विरानी ने कहा कि गला घोंटे जाने से अरुणा के मस्तिष्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो गई और उसका कार्टेक्स क्षतिग्रस्त हो गया. ग्रीवा रज्जु में चोट के साथ ही मस्तिष्क नलिकाओं में भी अंदरूनी चोट पहुंची.{mospagebreak}

याचिकाकर्ता के अनुसार घटना के बाद पिछले 37 साल में अरुणा का वजन बहुत कम हो गया है और उसकी हड्डियां चरमरा गई हैं. बिस्तर पर पड़े रहने के कारण उसकी त्वचा में संक्रमण हो गया है. उसकी कलाइयां अंदर की ओर मुड़ गई हैं, दांत नष्ट हो चुके हैं और उसे केवल मथा हुआ भोजन दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अरुणा लगातार बेहोशी की हालत में है. उसका मस्तिष्क असल में मृत हो चुका है और उसे दुनिया की कोई सुध नहीं है.

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याचिकाकर्ता ने अरुणा के लिए इच्छामृत्यु की मांग करते हुए कहा कि न तो वह सुन सकती है न देख सकती है और न ही किसी भी तरह से खुद को व्यक्त कर सकती है. पीठ ने इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों के तर्क सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

इच्छामृत्यु की अनुमति देने के विवादास्पद मुद्दे पर तर्क देने वालों में अटार्नी जनरल जीई वाहनवती अदालत की मदद के लिए नियुक्त वकील टीआर अंध्यारुजिना अस्पताल की ओर से बल्लभ सिसोदिया और याचिकाकर्ता विरानी की ओर से पेश शेखर नफाडे शामिल रहे.{mospagebreak}

जिरह के दौरान सरकार ने यह रुख अपनाया कि कानूनी या संवैधानिक तौर इच्छामृत्यु का कोई प्रावधान नहीं है. सिसोदिया ने याचिका का यह कहकर विरोध किया कि अस्पताल के कर्मी खासकर डाक्टर और नर्सें पिछले 37 साल से अरुणा की काफी अच्छी देखभाल कर रहे हैं और वे उसे मारे जाने के आग्रह के खिलाफ हैं.

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