छह साल से रोज आठ घंटे अभ्यास करती आ रहीं सायना नेहवाल ने तीन सप्ताह में तीन बड़े टूर्नामेंट जीते. तेजी और ताकत के असाधारण मेल वाली इस खिलाड़ी की नजरें अब नंबर वन बनने पर टिकीं हैं. लेकिन विश्व चैंपियन बनाना बहुत मुश्किल काम है. जब सायना पहली बार 2004 में गोपीचंद की बैडमिंटन एकेडमी में पहुंचीं तब उन्होंने उस पतली-दुबली काया में एक चैंपियन को भांप लिया.
2003 में चेकोस्लोवाकियाई जूनियर ओपन जीत चुकीं सायना आगे बढ़ने को तैयार थीं. पूर्व ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियन गोपीचंद को, जिन्होंने ब्रिटेन, जर्मनी और इंडोनेशिया में अपना कौशल निखारा, मालूम है कि समग्र रवैया अपना कर ही किसी खिलाड़ी की प्रतिभा को बेहतर ढंग से निखारा जा सकता है. उन्होंने सायना के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास पर चरणबद्ध ढंग से काम शुरू कर दिया. गोपीचंद का प्रशिक्षण अंततः कसरत और कोर्ट पर अभ्यास की थकाऊ योजना के रूप में सामने आया.
सायना ताकत, लचीलापन और क्षमता- के लिए 10 से 70 मिनट तक ट्रेडमिल पर दौड़ती हैं. वह फेफड़ों की ताकत के लिए सप्ताह में कम से कम दो बार तैराकी करती हैं. इससे उन्हें देर तक खेलने और थके बिना थकाऊ मैच खेलने में मदद मिलती है. वे पूरे शरीर की कसरत के लिए दिन में करीब दो घंटे तक वेट ट्रेनिंग की 23 कसरत करती हैं.
वह मांस खाती हैं क्योंकि यह प्रोटीन का समृद्ध स्त्रोत है. शाकाहारी सायना ने दो साल पहले ही मांसाहार शुरू किया. सायना रात में 10 बजे सो जाती हैं और सुबह 5.30 पर उठ जाती हैं. वे सुबह 6.15 बजे एकेडमी पहुंच जाती हैं जहां वे अभ्यास के बाद कसरत करती हैं. शाम को 7.15 बजे घर लौटने से पहले खाने और आराम के लिए छुट्टी लेती हैं.{mospagebreak} सायना कोर्ट पर प्रैक्टिस और प्रशिक्षण में गलतियों और कमियों को दुरुस्त करने के लिए रोजाना चार घंटे लगाती हैं. प्रतिस्पर्धा के दौरान प्रतिद्वंद्वी के प्रदर्शन के आधार पर अपनी रणनीति ठीक करती हैं. रविवार को घर पर आराम करती हैं और थोड़ी देर टेलीविजन देखती हैं. वह सभी टूनार्मेंट के बाद एकेडमी में अपने खेल का वीडियो विश्लेषण करती हैं.
मानसिक शक्ति को मजबूत बनाने के लिए सायना एकेडमी में सप्ताह में कम से कम दो बार योग, ध्यान और एयरोबिक्स करती हैं. वह खेल से जुड़ी सभी योजना में माता-पिता समेत सभी बाहरी हस्तक्षेप से बचती हैं. कोच और संरक्षक के रूप में गोपीचंद ही उनकी कसरत और खेल की रणनीतियों से जुड़े सारे फैसले करते हैं.
सायना 2010 में इंडिया ओपन ग्रां प्रि गोल्ड, सिंगापुर ओपन सुपर सीरीज, इंडोनेशिया सुपर सीरीज जीत कर तीन गुना ताकतवर हुईं. 2009 में वह विश्व की नंबर 3 खिलाड़ी, चीन की लिन वांग को इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरीज ग्रां प्रि में हरा कर बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन सुपर सीरीज जीतने वाली पहली भारतीय बनीं. सबसे खतरनाक प्रतिद्वंद्वी को 48 मिनट में 12-21, 21-18, 21-9 से हराया.
2008 में वह वर्ल्ड जूनियर चैंपियन बनीं, बीजिंग ओलंपिक में एशियाई खेलों की चैंपियन, विश्व की नं. 6 खिलाड़ी, हांगकांग के वांग चान को हरा कर क्वार्टर फाइनल में पहुंचीं. बाद में
इंडोनेशिया की मारिया क्रिस्टीन युलियांटी से हार गईं. 2007 में उन्होंने नेशनल सीनियर चैंपियनशिप जीती. नेशनल सर्किट में सीनियर लेवल पर पहली जीत. इसके बाद गुवाहाटी में नेशनल गेम्स में स्वर्ण जीता.
उनके कॅरियर में मोड़ तब आया जब 2008 के बीजिंग ओलंपिक में अंतिम आठ खिलाड़ियों में शुमार हुईं. इसने उनमें यह विश्वास भर दिया कि वे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को हरा सकती हैं.