टीम अन्ना के तीसरे और चौथे चाणक्य हैं, शांति भूषण और प्रशांत भूषण. सिविल सोसयटी के ये वो मज़बूत सदस्य हैं जो कानून की हर पैंतरेबाज़ी समझते हैं. अन्ना के साथ शांति भूषण का जुड़ना ही बड़ी बात है, तो प्रशांत भूषण अन्ना को कानून की हर पेचीदगी की सलाह देते हैं.
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भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की जो आग पूरे देश में फैल चुकी है उसके पीछे छिपा है एक ऐसा चेहरा जिसे हिंदुस्तान की जनता पिछले पचास सालों से जानती आ रही है. नाम है शांति भूषण, पूर्व कानून मंत्री और वकील. लोकपाल पर विचार के लिए बनी संयुक्त समिति के को-चेयरमैन.
पूर्व कानून मंत्री और सामाजिक कार्यकर्ता शांति भूषण अन्ना के आंदोलन की सबसे मबजबूत कड़ी हैं. सामाजिक जीवन का लंबा अनुभव और कानून की बारीक जानकारी समझ शांति भूषण की वो खासियत है जिसने अन्ना के आंदोलन को सरकार के हर घात से बचाया है.
अन्ना के लोकपाल ड्राफ्ट के दायरे में न्यायपालिका को शामिल किए जाने का प्रस्ताव शांति भूषण की सक्रियता का ही परिणाम है. 80 साल के शांति भूषण, सीजेएआर यानी कैंपेन फॉर ज्यूडीशियल एकाउंटबिलिटी एंड ज्यूडीशिल रिफॉर्म्स के बैनर तले पिछले कई सालों से न्यायपालिका में सुधारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं.
लोग बेशक आज शांति भूषण को अन्ना के सहयोगी के तौर पर जानते हैं लेकिन जनता के हक की लडाई शांति भूषण एमरजेंसी के दौर से ही लड़ रहे हैं.जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी, तब उसका विरोध करने वालों में शांति भूषण ही सबसे आगे थे. इतना ही नहीं शांति भूषण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में राजनारायण का मुकदमा भी लड़ा था. जिसमें इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा था. बाद में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब शांति भूषण को कानून मंत्री बनाया गया था.