आरटीआई एक्टिविस्ट शहला मसूद की हत्या के मामले में सवाल उठ रहा है कि वो किसी वर्चस्व की लड़ाई में तो नहीं मारी गई? कहीं आरटीआई के तहत मांगी जा रही जानकारियां ही तो उसकी दुश्मन नहीं बन गईं?
नर्मदा समग्र बीजेपी के राज्य सभा सांसद अनिल दवे का एनजीओ है, जिसके बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट शहला मसूद तमाम जानकारियां इकट्ठा कर रही थीं. आरटीआई एप्लिकेशन के जरिये शहला ने इस एनजीओ की आमदनी और खर्चे का ब्योरा मांगा था.
5 अगस्त को भोपाल स्थित इनकम टैक्स दफ्तर में आवेदन दे कर शहला ने आरोप लगाया था कि नर्मदा समग्र एनजीओ ने सरकारी पैसे का भारी दुरुपयोग किया है. और इसमें राज्य के नेताओं के साथ-साथ कई नौकरशाह भी शामिल हैं. शहला का आरोप था कि बीजेपी सांसद अनिल दवे ने अपने पद का दुरुपयोग किया है और उनके एनजीओ ने टैक्स की चोरी की है.
16 अगस्त को जबकि इस मामले की सुनवाई होनी थी, उसी दिन शहला की हत्या हो गई.
इस मामले को इनकम टैक्स विभाग तक पहुंचाने से पहले शहला ने अपने आरोपों से जुड़े सवाल सीधे इसी एनजीओ से पूछे. लेकिन नर्मदा समग्र ने ये कहते हुए शहला के सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया था कि एनजीओ आरटीआई के दायरे में नहीं आते.
शहला बीजेपी एमपी तरुण विजय के एनजीओ के लिए काम करती थी और बीजेपी के ही एमपी अनिल दवे के एनजीओ की पड़ताल में लगी हुई थी. ऐसे में सवाल उठता है कि वो पार्टी के अंदर किसी वर्चस्व की लड़ाई का शिकार तो नहीं हो गई.