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पटना की युवतियां अब भी 'दबंग' की दीवानी

पटना के पुलिस अधीक्षक (नगर) के रूप में शिवदीप लांडे ने सिर्फ 10 महीने काम किया, लेकिन वह लोगों और खासतौर पर लड़कियों के दिलों पर ऐसे छा गए कि उनके अररिया स्थानांतरण के बाद भी उन्हें यहां याद किया जा रहा है.

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शिवदीप लांडे
शिवदीप लांडे

पटना के पुलिस अधीक्षक (नगर) के रूप में शिवदीप लांडे ने सिर्फ 10 महीने काम किया, लेकिन वह लोगों और खासतौर पर लड़कियों के दिलों पर ऐसे छा गए कि उनके अररिया स्थानांतरण के बाद भी उन्हें यहां याद किया जा रहा है. यहां तक कि ये युवतियां अब भी उन्हें फोन व एसएमएस कर उनके सामने प्रेम व विवाह का प्रस्ताव भेज रही हैं.

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जेडी वीमेंस कॉलेज की छात्रा दीप्ति यह नहीं समझ पा रही हैं कि यदि अब लड़कियों पर मुसीबत आएगी तो उन्हें बचाने कौन आएगा, वे किसे फोन करेंगी. ऐसा केवल दीप्ति के साथ ही नहीं है और लड़कियों का भी यही हाल है.

पटना वीमेंस कॉलेज की छात्रा संध्या को भी 'दबंग' पुलिस अधीक्षक के जाने का दुख है. संध्या के अनुसार, लांडे का स्थानांतरण रुकवाने के लिए लड़कियों ने कैंडल मार्च भी निकाला था, लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई. लांडे का स्थानांतरण 30 नवम्बर को हुआ.

लांडे के प्रति पटना की युवतियों में दीवानगी का कारण यह है कि अपने 10 माह के छोटे से कार्यकाल में उन्होंने लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं को गम्भीरता से लेते हुए मनचलों की खूब खबर ली थी. साथ ही, तेज रफ्तार से मोटरसाइकिल चलाने पर भी ब्रेक लगा दिया था.

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महाराष्ट्र के अकोला जिले के परसा गांव में एक किसान के घर जन्मे लांडे वर्ष 2006 के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी हैं. वह दो भाइयों में से बड़े हैं. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने भारतीय राजस्व विभाग में भी नौकरी की. बिहार कैडर के अधिकारी लांडे की पहली नियुक्ति मुंगेर जिले के नक्सल प्रभवित जमालपुर में हुई थी.

लांडे के प्रति पटना की युवतियों की दीवानगी उनके अररिया पुलिस अधीक्षक के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद भी कम नहीं हुई है. लेकिन लड़कियों के फोन व एसएमएस पर बड़ी शालीनता से वह कहते हैं, 'लोगों का भरोसा मुझ पर है, इसलिए वे अब भी मुझे फोन या एसएमएस करते हैं.'

लांडे कहते है कि उन्हें मीडिया ने 'दबंग' पुलिस अधिकारी की छवि जरूर दी है, लेकिन वह दबंग नहीं हैं. दरअसल, उनके साथ दो बार दुर्घटना हो चुकी है और उनका मानना है कि काले चश्मे ने ही हर बार उन्हें बचा लिया.

लांडे अपनी ड्यूटी पर जितना सख्त नजर आते हैं, वह उतने ही विनम्र हैं. वह अपने वेतन का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) युवा संगठन को दान कर देते हैं. इसके अलावा कई सामाजिक कार्यो में भी वह सहयोग करते हैं. लांडे को करीब से जानने वाले कहते हैं कि उन्होंने कई गरीब लड़कियों की सामूहिक शादी भी करवाई.

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