चावल मिल के क्लर्क और एक किसान नेता से आगे बढ़कर दक्षिण में पहली बार भाजपा की सरकार के रूप में कमल खिलाने वाले बीएस येदियुरप्पा अपने तीन साल के संकटों भरे कार्यकाल में हर मुसीबत से उबरते रहे हैं लेकिन खनन घोटाले में लोकायुक्त की रिपोर्ट उनके गले की अकाट फांस बन गई और भाजपा संसदीय बोर्ड ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को कह दिया.
बुकंकरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा (68) कर्नाटक में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के रूप में तीन साल दो महीने शासन कर चुके हैं और उनकी बदौलत भगवा पार्टी ने 2008 के विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त जीत दर्ज की थी. हमेशा सफेद सफारी सूट में नजर आने वाले येदियुरप्पा नवम्बर 2007 में जनता दल (एस) के साथ गठबंधन सरकार गिरने से पहले भी कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री रहे थे. येदियुरप्पा ने गठबंधन सरकार गिरने पर इसे जनता दल (एस) के नेता एवं अपने पूर्ववर्ती एचडी कुमारस्वामी द्वारा किया गया ‘विश्वासघात’ करार दिया था.
एक के बाद एक संकटों से उबरकर येदियुरप्पा ने खुद को राजनीतिक धुरंधर के रूप में साबित किया. वह खुद अपनी पार्टी के भीतर की प्रतिकूलता और कथित भूमि घोटाले को लेकर उन्हें अपदस्थ करने की कांग्रेस-जनता दल (एस) की संयुक्त कोशिशों को धता बताने में सफल रहे.
नेतृत्व जनाधार और मानव संसाधन प्रबंधन की शुरुआती दीक्षा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हासिल करने वाले लिंगायत का संघर्षों से भरा सफर काफी रोचक रहा है जो हमेशा यह मानते रहे कि भगवान उनके साथ है. राज्य में उन्होंने भूमिहीन किसानों और बंधुआ मजदूरों की समस्याओं को उठाने के लिए बहुत से बड़े आंदोलन किए जिनसे उन्होंने काफी कुछ दक्षता हासिल की.
कोई भी संकट आने पर वह भगवान की शरण में मंदिर चले जाते लेकिन इस बार वह भाग्यशाली नहीं रहे और भ्रष्टाचार पर लोकायुक्त संतोष हेगड़े की रिपोर्ट उनके गले की अकाट फांस बन गई. उनका नाम तुमकुर जिले के येदेयुर में संत सिद्दलिंगेश्वर द्वारा बनवाए गए शैव मंदिर के भगवान के नाम पर रखा गया.
भूमि घोटालों भाई भतीजावाद और अपने नाते रिश्तेदारों के पक्ष में नियमों के उल्लंघन के आरोप लगने के बाद ऐसा लगा था कि येदियुरप्पा की कुर्सी किसी सूरत में नहीं बचेगी लेकिन उस समय उन्होंने अपनी कोशिशों से खुद पर आए संकट के बादलों को छांट दिया था.
येदियुरप्पा अपने वफादारों के साथ अब तक हर दुविधा को पार करने में सफल रहे लेकिन लोकायुक्त की रिपोर्ट के चलते भाजपा आलाकमान ने आखिर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से रुखसत होने को कह दिया. कला में स्नातक येदियुरप्पा ने एक बार केंद्रीय नेतृत्व को चेतावनी दे डाली थी कि उन्हें हटाए जाने से राज्य में पार्टी और भाजपा सरकार खत्म हो जाएगी. उनकी इस धमकी ने वरिष्ठ नेताओं को येदियुरप्पा से इस्तीफे की बात कहने के फैसले पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर दिया था. कई बार उन्होंने लिंगायत कार्ड भी खेला. वह लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जो कर्नाटक की कुल आबादी का पांचवां हिस्सा है और इस समुदाय में भाजपा की अच्छी पकड़ है.
येदियुरप्पा प्रभावशाली साधु संतों को भी अपने पक्ष में करने में सफल रहे. नवम्बर 2010 में येदियुरप्पा पर आरोप लगा कि उन्होंने बैंगलोर में प्रमुख जगहों पर अपने बेटों को भूमि आवंटित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया जिससे वह विवादों के एक और घेरे में आ गए. पांच फरवरी 2011 को उन्होंने अपनी संपत्ति सार्वजनिक की और और कांग्रेस को चेतावनी दी कि वह उनके पास ‘काले धन’ की बात साबित करके दिखाए.
मई 2008 में उन्होंने बहुमत से कम के आंकड़े के साथ शासन की शुरुआत की लेकिन विपक्षी और निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में कर उन्होंने जबर्दस्त बहुमत जुटा लिया जो इस्तीफा देकर उपचुनाव में उतरे. उन्होंने अपने अभियान को ‘ऑपरेशन लोटस’ नाम दिया और 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा बहुमत हासिल करने में सफल रही. लेकिन खनन क्षेत्र से जुड़े प्रभावशाली रेड्डी बंधु जनार्दन और करुणाकर उनके लिए परेशानी का सबब बने रहे. सरकार में उनके खिलाफ असंतोष की एक और लहर उठने से पहले भाजपा आलाकमान येदियुरप्पा के लिए संकटमोचक साबित हुआ.
भाजपा के 11 बागी विधायकों और पांच निर्दलीय विधायकों ने येदियुरप्पा सरकार से समर्थन वापस लेकर उन्हें संकट में डाल दिया. वह बच गये और दो बार विश्वास मत में जीत हासिल की. पहला ध्वनि मत से जीता जिसे राज्यपाल एच आर भारद्वाज ने असंवैधानिक करार दिया. उसके बाद उन्हें एक और शक्ति परीक्षण करना पड़ा जिसमें वह 100 के मुकाबले 106 मतों से विजयी हुए.
भारद्वाज के साथ अकसर मतभेद रखने वाले येदियुरप्पा भारतीय विधायिका के इतिहास में पहले ऐसे मुख्यमंत्री साबित हुए जिन्होंने एक ही सप्ताह में दो बार विश्वास मत जीता. बगावत करने वाले 11 विधायकों को उच्च न्यायालय द्वारा अयोग्य करार दिये जाने के फैसले से संकट टलता देख रहे येदियुरप्पा के सामने फिर से कठिनाई का दौरा शुरू हुआ जब जेडीएस ने उन पर तथा उनके परिवार पर भूमि घोटालों के अनेक आरोप लगाये.
कांग्रेस की धरम सिंह नीत गठबंधन सरकार को हटाने में जेडीएस नेता कुमारस्वामी की मदद करके येदियुरप्पा ऊंचाई पर पहुंचे थे. कुमारस्वामी ने भाजपा की मदद से सरकार बनाई. जेडीएस और भाजपा के बीच समझौता हुआ, जिसके मुताबिक कुमारस्वामी पहले 20 माह तक मुख्यमंत्री रहेंगे, जिसके बाद विधानसभा के 20 महीनों के शेष कार्यकाल में इस पद पर येदियुरप्पा काबिज होंगे.
कुमारस्वामी की सरकार में येदियुरप्पा को उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री मनोनीत किया गया. बहरहाल अक्तूबर, 2007 में जब येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो कुमारस्वामी ने अपने पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया. इसके बाद येदियुरप्पा व उनकी पार्टी के सभी मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया तथा पांच अक्तूबर को राज्यपाल से मिलकर सरकार से भाजपा का औपचारिक समर्थन वापस ले लिया. कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगाया गया, जिसे सात नवंबर को हटा दिया गया.
राष्ट्रपति शासन की अवधि के दौरान जेडीएस और भाजपा ने अपने मतभेद दूर करने का फैसला किया और येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने. उन्होंने 12 नवंबर 2007 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. जेडीएस ने मंत्रालयों के प्रभार को लेकर उनकी सरकार को समर्थन देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद 19 नवंबर, 2007 को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
प्रदेश के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर 27 फरवरी 1943 को जन्मे येदियुरप्पा ने चार साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था. 1972 में उन्हें शिकारीपुरा तालुका जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया. 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ राजनीति में उनका कद और बढ़ गया.
उनके वास्तविक राजनीतिक करियर की शुरूआत 1983 में हुई जब वह पहली बार विधानसभा में पहुंचे और तब से अब तक पांच बार शिकारीपुर से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं. वह दो बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. उनके दो पुत्र और तीन बेटियां हैं. वर्ष 2004 में उनकी पत्नी का निधन रहस्यमयी परिस्थिति में एक कुएं में गिरने से हो गया था.
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