विश्व बैंक का मानना है कि भारत के ग्रामीण इलाकों में रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकार की अगुआई में चल रही ‘मनरेगा ’योजना अभिनव है और इसका दायरा भी काफी बड़ा है. उसने कहा ,लेकिन विभिन्न राज्यों में उसका क्रियान्वयन असमान है और इसमें कुछ हद तक धन के दुरुपयोग जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है.
विश्व बैंक की नई रिपोर्ट ‘सोशल प्रोटेक्शन फॉर ए चैंजिंग इंडिया’ में कहा गया है कि योजना के तहत काम पाने को लेकर लोगों में अधिक जागरुकता सुनिश्चित कराने और कड़ी निगरानी तथा मूल्यांकन प्रक्रिया से कार्यक्रम के और सफल क्रियान्वयन में मदद मिलेगी.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का दायरा पहले के कार्यक्रमों से काफी बड़ा है और इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचति जनजातियों तथा महिलाओं का प्रभावी समावेश (क्रमश: 31 प्रतिशत, 25 प्रतिशत और 50 प्रतिशत) है.
रिपोर्ट का कहना है कि भविष्य के अन्य सुधार कार्यक्रमों के लिए मनरेगा को आदर्श के तौर रखा जा सकता है.
साथ ही रिपोर्ट में सभी राज्यों में मनरेगा के असंतुलित क्रियान्वयन का जिक्र भी किया गया है. राजस्थान में गांवों में रहने वाले 90 प्रतिशत परिवारों ने जहां इसका लाभ हासिल किया और मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में 60 से 80 प्रतिशत इसके दायरे में आए वहीं पंजाब, हरियाणा, केरल और गुजरात जैसे राज्यों में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से कम रहा.
भारत में गरीबी के खिलाफ की गई इस शुरुआत की यह पहली विस्तृत रिपोर्ट है, जिसे योजना आयोग की गुजारिश पर 2004 में शुरु किया गया और इसके लिए मंत्रालयों के आकड़ों, राष्ट्रीय सेंपल सर्वेक्षणों और विश्व बैंक के अध्ययनों का इस्तेमाल किया गया.
विश्व बैक के सोशल प्रोटेक्शन के अगुवा अर्थशास्त्री जॉन ब्लोम्क्विस्ट ने कहा ‘स्थानीय सर्वेक्षणों में भी धनराशि के दुरुपयोग और पंचायत को धन देर से मिलने के प्रमाण मिले हैं.’