2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन के मूल्यांकन करने के कैग के तौर तरीकों को गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए सरकार ने शुक्रवार को कहा कि इसके आवंटन में कोई ‘राजस्व नुकसान’ नहीं हुआ और ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की टेलीकाम नीति वाजपेयी सरकार ने बनाई थी.
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने संवाददाताओं से कहा, ‘2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन का मूल्यांकन करने में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की ओर से अपनाये गए तौर तरीकों से हमें काफी दु:ख हुआ है और इसमें दिखाये गए राजस्व नुकासन का कोई आधार नहीं है.’
कैग ने अपनी रिपोर्ट में स्पेक्ट्रम आवंटन में 1.76 लाख करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान दिखाया है लेकिन सिब्बल ने दावा किया कि वास्तव में करदाताओं को कोई नुकसान नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि कैग की रिपोर्ट के कारण पहले सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा और अब तथ्य सामने आने के बाद विपक्ष विशेष तौर पर भाजपा को असहज स्थिति का सामना करना पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि 1999 में पेश टेलीकाम नीति वास्तव में वाजपेयी के नेतृत्व वाली अल्पमत सरकार ने पेश की थी जबकि पूर्व राष्ट्रपति नारायणन के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और शिव सेना नेता बाल ठाकरे तक ने इसका विरोध किया था. लेकिन वाजपेयी ने इस नीति को सही करार दिया था. {mospagebreak}
मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए सिब्बल ने कहा, ‘अब हम उन्हीं की नीति का अनुसरण कर रहे हैं तो 1.76 लाख करोड़ के राजस्व नुकसान की बात कही जा रही है, जो वास्तव में जनता के बीच भ्रम फैलाने का प्रयास है.’
मंत्री ने कहा कि दिसंबर 2002 में राजग सरकार के समय पेश 10वीं योजना के दस्तावेज में टेलीकाम क्षेत्र को आधारभूत संरचना का क्षेत्र घोषित करते हुए उसे प्रोत्साहन प्रदान करने की प्रकृति का बताया और इस संबंध में राजस्व अर्जन को मुख्य निर्धारत नहीं बनाने का जोर दिया गया था. लेकिन आज भाजपा अपनी ही नीति का विरोध करती दिख रही है.
कैग की रिपोर्ट में 2007-08 में स्पेक्ट्रम आवंटन में 122 लाइसेंस और दोहरे उपयोग वाले 35 प्रौद्योगिकी लाइसेंस आवंटन में करदाताओं को 1,76,645 करोड़ रुपये का नुकसान दिखाया गया. विपक्ष इस मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग पर अड़ी है जिसके कारण संसद के शीतकालीन सत्र में कामकाज ठप रहा था. सिब्बल ने कहा, ‘हम सभी संस्थाओं का पूरा सम्मान करते हैं लेकिन कैग के आंकलन में गंभीर खामी और उसे कोई तकनीकी इल्म नहीं है.’ {mospagebreak}
उन्होंने कहा कि 122 लाइसेंस 4.4 मेगा हर्ट्ज के दायरे के थे लेकिन कैग का आकलन 6.2 मेगा हर्ट्ज के तहत था. कैग ने आकलन 2010 में किया जबकि लाइसेंस 2008 में प्रदान किये गए थे. सिब्बल ने प्रश्न किया कि, 2010 के मूल्य के अनुरूप आप 2008 का आकलन कैसे कर सकते हैं. इसी प्रकार से लाइसेंस पर अमल होने में भी एक वर्ष का समय लगा.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम सम्पूर्ण आकलन को व्यवस्थित ढंग से करें तो स्पेक्ट्रम आवंटन में कर दाताओं को कोई राजस्व नुकसान नहीं हुआ.’ मंत्री ने कहा कि मुख्य विषय यह है कि राजग के शासनकाल के दौरान लाइसेंस के लिए राजस्व हिस्सेदारी की दर को किस प्रकार 15 प्रतिशत से घटाकर पहले 10 प्रतिशत और बाद में 8 प्रतिशत कर दिया गया. इससे किसको फायदा मिला, यही प्रश्न है.
संचार मंत्री के रूप में रामविलास पासवान के कार्यकाल में 41 लाइसेंस, प्रमोद महाजन के कार्यकाल में 18 लाइसेंस और अरुण शौरी के कार्यकाल में 26 लाइसेंस जारी किये गए. जबकि दायनिधि मारण के कार्यकाल में 25 लाइसेंस और ए राजा के कार्यकाल में 122 लाइसेंस जारी हुए. सिब्बल ने कहा कि 1994 में मोबाइल से प्रति कॉल की दर 32 रुपये थी, 1998-99 में यह घटकर 16 रुपये, 2000 में छह रुपये 70 पैसे और आज यह 30 पैसे प्रति कॉल हो गई है. {mospagebreak}
उन्होंने कहा, ‘स्पेक्ट्रम आवंटन से किसको फायदा हुआ यह सब लोगों के सामने है और विपक्ष का आरोप निराधार है. स्पेक्ट्रम आवंटन के कारण देश के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले बिहार, यूपी के लोगों को काफी फायदा हुआ है और उन्हें 1,200 रुपये मासिक बचत तक हो रही है.’
उन्होंने कहा कि टेलीकाम क्षेत्र से सरकार को 30 प्रतिशत राजस्व की प्राप्ति हो रही है. इससे किसानों और मछुआरों को समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को जबर्दस्त लाभ हुआ है और विपक्ष 1.76 लाख करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान की बात कर रही है जो वास्तव में है ही नहीं. सिब्बल ने कहा, ‘कैग ने हमारे (सरकार) साथ अन्याय किया है, और विपक्ष आम आदमी के साथ अन्याय कर रही है. क्योंकि इससे आम आदमी को फायदा हुआ है.’